व्यास पूर्णिमा-विक्रम सम्वत् 2080

Shree Ram Sharnam Gwalior

श्री राम शरणम्

राम सेवक संघ, ग्वालियर

नवीन दीक्षित साधकों के लिये

‘देव-दया जब होनी चाहे, सहज से सब सुयोग बनाये।’
‘संत सुघड़ जिसको मिल जाते, पुण्य उदय उसके हो आते।।’

(वाल्मीकीय रामायणसार)

हमें बड़े ही भाग्य से दुर्लभ मानव-जन्म मिला है। जब सौभाग्य का सूर्य उदय  होता है तभी राम-कृपा होती है और सत्संग मिलता है, तब सच्चे सन्त का मिलाप होता है और वे करुणा करके हमारे कल्याण के लिए भक्ति-योग प्रदान करते हैं। यह सब ‘श्री राम कृपा’ का सुफल ही मानना चाहिए।

बधाई हो! आज आप एक महान संत से दीक्षित हुए हैं। परम सौभाग्य से आज आपके अन्दर ‘राम’ नाम का बीज स्थापित हुआ है। आज के बाद सतत् जप व ध्यान की खाद व पानी जीवन भर देते रहेंगे तो यह मंत्र आपके जीवन को महानता से भर | देगा। आपको अद्भुत सुख व शांति प्रदान करेगा। अगर भावपूर्ण जप व सिमरन जारी रहा तो आपको ऐसा लगेगा, मानो किसी ने आपके जीवन के दुःख-दर्द बांट लिए हों। अगर आप व्यस्त हैं तो ऐसी व्यस्तता भी किस काम की जिसमें आधा घंटा राम नाम का सिमरन न हो और मृत्यु के बाद के सारे जन्म ही बिगड़ जाएं। अधिक व्यस्तता के बावजूद भी आप जप, ध्यान व अमृतवाणी का पाठ अवश्य करें।

– पूज्य डॉ. श्री विश्वामित्र जी महाराज 

प्रारम्भिक छः मास का काल

श्री महाराज के कथनानुसार नवीन साधकों के लिए प्रथम छः मास का काल गुरु-कृपा का समय होता है। इसी काल में गुरु कृपा से “राम-कृपा ” का अवतरण साधक पर होता है। इस कृपा को साधन के द्वारा और बढ़ाने का प्रयत्न करना चाहिये । उस समय साधक को कृपा-स्वरूप जो भी उपलब्धियाँ तथा अनुभूतियाँ होती हैं, वह आध्यात्मिक लाभ है। अतः साधक उस समय अपने-आपको संभाल कर रखे, सिकोड़ कर रखे, व सम्पर्क बनाये रखे।

  • संभाल कर रखे – साधक धैर्य रखे, डांवांडोल व भ्रमित न हो। अपनी अनुभूतियों की गुरु के अलावा अन्यत्र चर्चा न करे।
  • सिकोड़ कर रखे- वह प्रदर्शन न करे। अपनी साधना का जहाँ-तहाँ बखान न करे व डींग न मारे ।
  • संपर्क बनाये रखे- अपने मार्गदर्शक से समय-समय पर मिलता रहे। पत्र द्वारा भी संपर्क रखकर मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार उपरोक्त सावधानी न रखने से साधक मिलने वाले लाभ से वंचित रह सकता है। उसे जो उपलब्धि हुई है, वह भी कम हो सकती है।

भोजन करने में कम समय लगता है लेकिन पचाने में अधिक समय लगता है। किन्तु वमन (उल्टी) करने में कुछ ही क्षण लगते हैं। इसी प्रकार दीक्षा लेने में कम समय लगता है। पचाने की क्रिया की भांति उसे हृदयंगम करने में अधिक समय लगता है। कृपा का प्रदर्शन करके, चर्चा करके, वमन (उल्टी) करने की भांति कम समय में ही साधक अपनी प्राप्त शक्ति को गंवा देता है।

साधना-सत्संग

नवीन साधक को दीक्षा लेने के पश्चात् कम से कम एक बार तो साधना-सत्संग में अवश्य सम्मिलित होना चाहिये। श्री स्वामी जी महाराज ने दीक्षित साधकों की उन्नति हेतु उन्हें सिधाने के लिए “साधना-सत्संग” शिविर लगाने आरम्भ किये, जो साधकों के लिए उनकी अनुपम देन है।

ये सत्संग पाँच – रात्रि या तीन-रात्रि के लगाये जाते हैं, जहाँ साधक कुछ समय के लिए सांसारिक बंधनों से हटकर व परिवार से दूर जाकर क्रियात्मक (Practical) साधना करते हैं। इससे उनकी उन्नति के मार्ग की बाधायें दूर होती हैं। यह एक पाठशाला के समान है। जहाँ वे अनुशासन व नियमों का पालन करना सीखते हैं, साथ ही भजन करने का स्वभाव बनाते हैं। ‘युक्ताहार विहारस्य, युक्त चेष्टस्य कर्मषु’ के अनुसार जीवन बनाते हैं।

ये पाँच-रात्रि साधना-सत्संग बड़े ही महत्वपूर्ण होते हैं। लगातार पाँच दिन गुरु के निकट सम्पर्क में रहने से शेष 360 दिन के लिए सार्थक जीवन जीने की कला सीखने को मिलती है, जो हमारे व्यवहारिक जीवन के निर्माण में सहायक होती है।

यहाँ से ही हम स्वच्छता, नियमितता, शिष्टाचार, सेवा, संयम, विनम्रता आदि मानवीय गुण सीखते हैं अर्थात् हम सच्चे मानव बनने की ओर अग्रसर होते हैं। हमारी दिनचर्या साधना-सत्संग के अनुसार होनी चाहिए। ग्वालियर में प्रतिवर्ष तीन-रात्रि साधना – सत्संग नवम्बर मास में लगाया जाता है।

ध्यान

ध्यान एक वैज्ञानिक सूक्ष्म क्रिया है। ध्यान से विवेक जाग्रत होता है, मन एकाग्र होता है व बुद्धि निर्मल होती है। साधक आत्मिक प्रसन्नता व शान्ति का उत्तरोत्तर लाभ प्राप्त करता है। ध्यान द्वारा ही आत्मा-परमात्मा का मिलन होता है। अतः नवीन साधक को नित्य प्रातः व सायंकाल नियत समय पर ध्यान में अवश्य बैठना चाहिए। प्रारंभ में वह 15 मिनिट तक बैठें। धीरे-धीरे यह समय 30 मिनिट तक बढ़ा लेना चाहिये। दीक्षा के समय जो ध्यान की विधि बताई जाती है या जिस विधि से ध्यान कराया जाता है, उसी विधि से ध्यान करना चाहिये। ध्यान करने के पूर्व श्री अधिष्ठान जी के सम्मुख बैठकर, परमेश्वर का आह्वान करने हेतु नमस्कार-सप्तक बोलकर ध्यान में बैठना चाहिये एवं समाप्ति पर भी परमेश्वर को नमस्कार करके उठना चाहिये।

जाप

श्री स्वामी जी महाराज के अनुसार प्रत्येक साधक को प्रतिदिन दस हजार से कुछ अधिक राम-नाम का जाप करना चाहिये। नये साधक को अपनी सुविधा के अनुसार नाम-जाप की संख्या नियत करनी चाहिये। कालान्तर में 10-12 हजार तक व उससे अधिक संख्या बढ़ा लेनी चाहिये। जाप चलते फिरते, बैठे हुये अथवा काम- काज करते हुये भी किया जा सकता है अर्थात् “मुख में राम हाथ में काम” ।

पाठ

साधकों को अमृतवाणी का नित्य पाठ करना चाहिये। नित्य पाठ से संकट तथा विपदाओं का निवारण होता है तथा शुभ-मंगल का संचार होता है। ‘स्थितप्रज्ञ के लक्षण’‘भक्ति व भक्त के लक्षण’ का नित्य पाठ करने से लाभ प्राप्त होता है।

स्वाध्याय

गीता, रामायण आदि सद्ग्रंथों का भावना से स्वाध्याय करते रहना चाहिये। स्वाध्याय से अपने साधन की जानकारी प्राप्त होती है। साधन करने में रुचि बढ़ती है। स्वाध्याय व मनन के लिये अपनी दिनचर्या में कम से कम 10 मिनट का समय तो अवश्य नियत करना चाहिये।

अनन्य – भाव

साधक को श्री राम के प्रति एवं अपने गुरुजनों व उनके पथ के प्रति अटूट श्रद्धा व विश्वास होना चाहिए साथ ही समर्पण का भाव होना भी आवश्यक है। साधक को एक इष्ट, एक गुरु, एक मंत्र, एक ग्रंथ, एक पथ, एक विधि तथा एक साधन पर दृढ़ रहना चाहिए।

सत्संग

नये साधक को स्थानीय साप्ताहिक, दैनिक व विशेष सत्संगों में यथासंभव सम्मिलित होते रहना चाहिए, जिससे वह साधन से जुड़ा रहे। इन सत्संगों से ही नवीन प्रेरणा तथा उत्साह प्राप्त होता है, श्रद्धा व विश्वास बढ़ता है, मन की शान्ति प्राप्त होती है एवं तनाव दूर होता है।

सहज मार्ग

श्री स्वामी जी महाराज की “राम-नाम” की उपासना बड़ी सुखद, सुलभ, सुगम और अधिक फलदायक है। इसमें घर-परिवार व काम-धंधों का त्याग नहीं किया जाता है। गृहस्थ-जीवन में रहकर सभी कर्त्तव्य-कर्म करते हुए साधना की जाती है।