व्यास पूर्णिमा-विक्रम सम्वत् 2080

Shree Ram Sharnam Gwalior

श्री राम शरणम्

राम सेवक संघ, ग्वालियर

पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज की साधना-पद्धति

निष्काम प्रार्थना एवं उद्देश्य

“वृद्धि-आस्तिक भाव की, शुभ मंगल संचार।
अभ्युदय सद्धर्म का, राम नाम विस्तार।।”

उक्त दोहे की व्याख्या-
विश्व में ईश्वर के प्रति आस्था एवं ईश्वरीय ज्ञान के प्रति श्रद्धा, विश्वास बढ़े। विश्वभर में शुभ एवं मंगल व्याप्त हो। सच्चे धर्म का उदय हो तथा राम- नाम का विस्तार (फैलाव) हो ।

Explanation : May with the Grace and Benevolence of the Supreme Soul – SHRI RAM, the world be led into abiding faith and knowledge of the all-pervasive godliness, goodness and well-being ! Let true spirituality permeate the universe and the holiest of the holy Ram-Naam transcend (rise above) all barriers!’

 

अवधारणा एवं सिद्धान्त 

पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज की साधना-पद्धति नामोपासना की है। नामोपासना के अंतर्गत हम ध्यान व सिमरन द्वारा आत्म-ज्ञान, आत्म-कल्याण, आत्म-जागृति लाभ करते हैं। जीवन में समुन्नति के लिये निष्काम भाव से सभी कर्त्तव्य कर्म करते हुए, आत्म-ज्ञान प्राप्त करने हेतु साधना-पथ पर अग्रसर होते जाना है।


पूज्यश्री स्वामी जी महाराज की सन्त परम्परा में नाम का आराधन एक रहस्यवाद है। इस का ऊपर का स्वरूप तो नाम की रटन ही है परन्तु इस के अन्दर योग का सम्पूर्ण रूप- बीज में वृक्ष की भांति – निहित है। इस रहस्यवाद के मार्ग में नाम आराधन, सब से श्रेष्ठ कहा गया है। रहस्य-पथ के पथिक जन, पुरुषोत्तम के परम पावन नाम को महाशक्ति का कोष तथा केन्द्र मानते आए हैं। इस सन्त परम्परा में साधक को नाम देना साधन-सम्पन्न की दृष्टि में उस के आत्म भाव को जाग्रत करना है। उस की प्रसुप्त शक्ति को जगा देना है, उस की अविद्या की ग्रन्थि को भेदन कर देना है तथा उस पर पड़े माया के आवरण को उठा कर, उस की चेतना को चैतन्य बनाना है। यह रहस्य पथ परम विश्वास का पथ है तथा परम प्रभु की कृपा का मार्ग है । 


पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज की साधना-शैली अति सरल, सहज व शीघ्र लाभ करने वाली है। ध्यान, सिमरन, सत्संग, स्वाध्याय एवं सेवा – ये उनकी उपासना पद्धति के प्रमुख अंग हैं ।

 

राम सेवक संघ का परिचय

पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज द्वारा संस्थापित रामसेवक संघ का इतिहास :

परम संत, पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानंद जी महाराज द्वारा 02 मई, 1936 में श्री स्वामी सत्यानंद धर्मार्थ ट्रस्ट का गठन लाहौर (विभाजन पूर्व पंजाब) में किया गया। साथ ही इस ट्रस्ट की नियमावली भी बनाई। ट्रस्ट में 5 सदस्य बनाये गये। इस ट्रस्ट का मुख्य कार्य पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज के बनाए गए नियमोंनुसार सत्संग के सभी प्रकार के कार्य – प्रबंधन, पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज के ग्रंथों का प्रकाशन एवं उनका सुव्यवस्थित वितरण करना इत्यादि था । विभाजन पश्चात् वर्तमान में यह ट्रस्ट नई दिल्ली में कार्यशील है। कुछ समय पश्चात् पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज द्वारा रामनाम के प्रचार- प्रसार हेतु एवं सत्संग के सभी कार्यक्रमों के आयोजन करने हेतु एक आध्यात्मिक संस्था ‘रामसेवक संघ’ की स्थापना की गई। राम- सेवा के इस कार्य में कुछ साधक सध जायें, इसके लिए पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज ने सर्वप्रथम पांच साधकों स्वामी रामानन्द जी (उत्तरप्रदेश) स्वामी राजा राम जी, श्री भगत हंसराज जी ( गोहाना), श्री वैष्णव दास, श्री राम कृष्ण (जम्मू) को हरिद्वार में सप्त सरोवर गंगा तट पर व्रत दिलवाया एवं उन सभी को पांच बिन्दु के प्रारूप वाले प्रतिज्ञा – पत्र पर हस्ताक्षर कराकर प्रतिज्ञा दिलाई और उन्हें रामसेवक संघ का सदस्य बनाया गया। पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज ने प्रवचन पीयूष के पृष्ठ क्रमांक- 383 पर इसके बारे में वर्णन किया है एवं श्री भक्ति प्रकाश के पृष्ठ – 28 पर दोहा ‘भक्ति भाव से हो भरा, राम सुसेवक संघ’ के छः दोहों में भी रामसेवक संघ के संदर्भ में उल्लेख किया है।

रामसेवक संघ का विस्तार तथा उद्देश्य

सन् 1950 के लगभग पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज ने कुछ सुपात्र साधकों को रामसेवक संघ का सदस्य बनाया, जिसमें हिसार के पंडित श्री लक्ष्मीदत्त शर्मा, हाँसी के श्री गोविन्दराम सैनी, बुलन्दशहर के डॉ. हरीनारायण बेरी, लुधियाना के श्री हरिवंश शास्त्री एवं श्री नरकेवल बेदी, पानीपत की श्रीमती शकुन्तला देवी, हिमाचल के प्रो. श्री श्यामसुन्दर जी, जालंधर के प्रो. श्री अग्निहोत्री जी, दिल्ली से पूज्य श्री प्रेम जी महाराज, लाला भगवान दास कत्याल, श्री गंगाविशन जी, श्रीमती शारदा जी, श्रीमती कलावती देवी (मौसी जी), पंजाब की श्रीमती लक्ष्मी देवी जी, ग्वालियर (मुरार) से श्री देवेन्द्र सिंह बेरी इन सभी साधकों को रामसेवक संघ का सदस्य बनाया । तत्समय कुछ अन्य स्थानों के साधक भी इसके सदस्य बनाए गए।

सन् 1959 में पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज ने ग्वालियर से छः साधकों जिनमें श्री अविनाश कुमार गुप्ता, श्री श्यामनारायण निगम, श्री सतराम दास कथूरिया, श्री गुलाब चंद बंसल, श्री दौलतराम गुप्ता, श्री मूलचंद गुप्ता एवं दिल्ली के श्री सत्यप्रकाश चोपड़ा को रामसेवक संघ का सदस्य बनाया। इस हेतु इन सभी साधकों को श्रावणी सत्संग हरिद्वार में पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज ने विशेष साधना एवं प्रार्थना करने हेतु पन्द्रह दिवसीय विशेष प्रशिक्षण भी दिया, साथ ही एक करोड़ राम नाम जाप एक वर्ष में पूर्ण करने का संकल्प भी दिलाया। 25 जुलाई, 1959 को इन सभी साधकों को प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर कराकर राम-सेवा कार्य करने की शपथ दिलवाई। प्रशिक्षण उपरान्त पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज ने सभी को अपने-अपने स्थानों पर जाकर प्रति मंगलवार सांय 5 से 6 बजे तक प्रार्थना करने का निर्देश / आदेश भी दिया।

पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज प्रतिवर्ष होली पर्व पर देवल ( नांगल ) में रामसेवक संघ के सदस्यों की बैठक कर उन्हें मार्गदर्शन दिया करते थे । आपके पश्चात् पूज्यश्री प्रेम जी महाराज भी प्रतिवर्ष | होली पर्व पर श्रीरामशरणम् दिल्ली में सभी स्थानों के रामसेवक संघ के सदस्यों की बैठक कर रामनाम के प्रचार-प्रसार हेतु परामर्श व दिशा-निर्देश दिया करते थे ।

पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज का मुख्य उद्देश्य है-

‘वृद्धि आस्तिक भाव की, शुभ मंगल संचार ।

अभ्युदय सद्धर्म का, राम-नाम विस्तार ।।’

इस प्रकार रामसेवक संघ रामनाम का प्रचार-प्रसार एवं पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज के इस राम-नाम मिशन का कार्य सुचारू रूप से सभी स्थानों पर करता रहा है।

उस समय प्रार्थना – केन्द्र केवल दिल्ली व ग्वालियर में संचालित थे। बाद में पूज्य डॉ. श्री विश्वामित्र जी महाराज ने कुछ अन्य नगरों में भी प्रार्थना – कोष नाम से प्रार्थना केन्द्रों की स्थापना की। उन केन्द्रों में प्रार्थनाशील साधकों को सर्वप्रथम तीन माह की विशेष साधना कराकर उन्हें प्रार्थना – कोष का सदस्य बनाया गया। रामसेवक संघ का प्रतिज्ञा – पत्र का प्रारूप एवं प्रार्थना – कोष में प्रार्थनाशील साधकों के लिए तीन माह की विशेष साधना का प्रारूप लिखित में उपलब्ध है। रामसेवक संघ के सदस्य बनने हेतु साधक का जीवन साधनामय, चरित्रवान, पूर्णतः समर्पित एवं उसे राम-नाम का प्रचारक होना चाहिए। वर्तमान में ग्वालियर के 40 साधक रामसेवक संघ के सदस्य हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में राम-नाम का प्रचार कार्य कर रहे हैं । अन्य स्थानों के सत्संग केन्द्र भी ऐसे सुपात्र साधकों को इसका सदस्य बना सकते हैं । प्रार्थना – कोष में प्रार्थनाशील साधकों के लिए पात्रता हेतु मुख्य रूप से उनका साधनामय जीवन होना, चरित्रवान होना व पूर्णतः समर्पित होना तथा पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज द्वारा रचित प्रार्थना और उसका प्रभाव पुस्तक में उल्लेखित योग्यताएँ हैं ।

गुरु-परम्परा में रामसेवक संघ की भूमिका

सन् 1960 में पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज के ब्रह्मलीन होने के पश्चात् रामसेवक संघ के सदस्यों ने पूज्यश्री प्रेम जी महाराज को गुरूपद पर आसीन किया । पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज ने इन्हीं के लिए संकेत अपने जीवनकाल में दिए थे।

पूज्य श्री प्रेम जी महाराज को 29 नवम्बर, 1960 को गुरुपद पर (दिल्ली श्रीरामशरणम् में) आसीन किया गया था। इस मंगल पर्व पर पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज द्वारा स्थापित रामसेवक संघ के अनेक सदस्य भी वहाँ उपस्थित थे (जैसे- दिल्ली के श्री गंगाविशन जी, श्री किशनलाल गुप्ता, श्रीमती शारदा जी एवं श्री लाला भगवानदास कत्याल, श्री सत्यप्रकाश चोपड़ा, श्री बजाज ग्वालियर के श्री मूलचन्द गुप्ता, श्री अविनाश कुमार गुप्ता, श्री गुलाबचंद बंसल, श्री सतराम दास कत्थूरिया, बुलन्दशहर के डॉ. श्री हरिनारायण बेरी, गोहाना के श्री भगत हंसराज जी, साँपला के चौधरी श्री मेहर सिंह, हाँसी के श्री गोविन्दराम सैनी, हिसार के पंडित श्री लक्ष्मीदत्त शर्मा, लुधियाना के श्री नरकेवल बेदी, हिमाचल के प्रो. श्री श्यामसुन्दर जी, गुरदासपुर के प्रो. श्री महावीर अग्निहोत्री इत्यादि) । कार्यक्रम में सर्वप्रथम श्री लाला भगवानदास जी कत्याल व पूज्यश्री प्रेम जी महाराज की पूज्य माता जी तथा तीन-चार वरिष्ठ साधकों ने पूज्य श्री प्रेम जी महाराज को तिलक किया। इसके पश्चात् उपस्थित सभी साधकों ने पूज्य श्री प्रेम जी महाराज को फूल-मालाएँ पहनायीं । इस कार्यक्रम के पश्चात् उपस्थित सभी साधकों ने भोजन प्रसादी (प्रीतिभोज) ग्रहण की। इस प्रकार पूज्य श्री प्रेम जी महाराज का तिलकोत्सव बड़े ही हर्षोल्लास से सम्पन्न हुआ ।

पूज्यश्री प्रेम जी महाराज के परलोक गमन के पश्चात् गुरूपद के चयन हेतु संस्था के वरिष्ठ साधकों में विचार-विमर्श होने लगे। चूँकि तीन- -चार लोग इस पद के दावेदार थे। इसके लिए रामसेवक संघ की तीन – चार बैठकें श्रीरामशरणम् दिल्ली में ट्रस्ट के चेयरमैन श्री सत्यपाल विरमानी जी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुईं लेकिन कोई भी निर्णय नहीं हो सका ।

इस हेतु अंतिम बैठक ट्रस्ट के चेयरमैन श्री विरमानी जी के निवास-स्थान पर सम्पन्न हुई थी जिसमें दिल्ली के श्री किशन लाल जी, श्री सत्यप्रकाश चोपड़ा, श्री गंगाविशन जी, हिसार के पंडित श्री लक्ष्मीदत्त शर्मा, हाँसी के श्री गोविन्दराम सैनी, लुधियाना के श्री नरकेवल बेदी, हिमाचल के श्री श्यामसुन्दर जी, गुरदासपुर के श्री महावीर अग्निहोत्री, बुलन्दशहर के डॉ. श्री हरिनारायण बेरी, गोहाना के श्री भगत हंसराज जी, पानीपत की श्रीमती शकुन्तला जी, ग्वालियर के श्री मूलचन्द गुप्ता, श्री दौलतराम गुप्ता, श्री श्याम नारायण निगम इत्यादि रामसेवक संघ के आमंत्रित सदस्यगण उपस्थित थे।

गुरु-पद पर आसीन करने हेतु साधक में कौन-कौन सी योग्यताएँ (गुण) व विशेषताएँ होनी चाहिए और ये सभी विशेषताएँ डॉ. श्री विश्वामित्र जी में मौजूद हैं, इस आशय का पत्र ग्वालियर की ओर से ट्रस्ट के चेयरमैन साहब श्री विरमानी जी को दिल्ली में उनके निवास पर आयोजित बैठक में दिया गया। इस पत्र को मीटिंग में पढ़कर सबको सुनाया गया। सभी जनों ने सहर्ष इसे स्वीकार किया और ट्रस्ट के चेयरमैन साहब ने भी कहा कि इस पत्र से मुझे सही व्यक्ति के चयन में बहुत आसानी होगी।

कुछ दिनों पश्चात् ट्रस्ट के चेयरमैन साहब ने गुरुपद हेतु पूज्यश्री डॉ. विश्वामित्र जी महाराज के नाम की घोषणा की। तत्पश्चात् श्री चेयरमैन साहब ने फोन करके ग्वालियर वालों को बधाई दी और धन्यवाद दिया, साथ ही कहा कि आपके पत्र ने मेरा कार्य बहुत आसान कर दिया।

दिनांक 9 दिसम्बर, 1993 को ट्रस्ट के चेयरमैन श्री विरमानी साहब ने पूज्य श्री डॉ. विश्वामित्र जी महाराज को विधिवत् तिलक कर गुरुपद पर आसीन किया।

इस प्रकार दोनों गुरुजनों को गुरुपद पर आसीन करने हेतु रामसेवक संघ ने अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।

रामसेवक संघ, ग्वालियर द्वारा संचालित आध्यात्मिक गतिविधियाँ

इस प्रकार रामसेवक संघ राम-नाम का प्रचार-प्रसार व पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज के मुख्य उद्देश्य ‘राम-नाम के विस्तार’ को उनके अधीन अनुशासनबद्ध रहते हुए अमृतवाणी सत्संग एवं आध्यात्मिक गतिविधियों का निरन्तर आयोजन करता रहा । सन् 1955 से ग्वालियर में भी अमृतवाणी सत्संग एवं अन्य सभी आध्यात्मिक कार्यक्रम रामसेवक संघ के सदस्यों द्वारा पूज्यपाद श्री स्वामी जी की विशुद्ध विचारधारा के अनुसार संचालित होते रहे । पूज्यपाद श्री स्वामी जी के ब्रह्मलीन होने के पश्चात् पूज्यश्री प्रेम जी महाराज एवं उनके पश्चात् पूज्यश्री डॉ. विश्वामित्र जी महाराज के मार्गदर्शन / अनुशासन में अमृतवाणी सत्संग एवं साधना – सत्संग, नाम-दीक्षा व अन्य सभी कार्यक्रम पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज की विशुद्ध विचारधारा के अनुरूप संचालित किये जाते रहे हैं। वर्तमान में भी पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज की विशुद्ध दीक्षा-पद्धति अनुसार नाम-दीक्षा दी जा रही है ।

इस प्रकार ग्वालियर में रामसेवक संघ गुरू- परम्परा के अनुसार प्रारंभ से ही सक्रियतापूर्वक गुरूजनों के प्रति निष्ठावान तथा पूर्णतः समर्पित होकर निरन्तर कार्यशील है।