व्यास पूर्णिमा-विक्रम सम्वत् 2080

Shree Ram Sharnam Gwalior

श्री राम शरणम्

राम सेवक संघ, ग्वालियर

श्री स्वामी जी महाराज का विराट योग

17th Jun 2023

श्री स्वामी जी महाराज का विराट योग

पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानंद जी महाराज ने भक्ति- प्रकाश में विराट योग का वर्णन किया है। राम-नाम का सिमरन करते हुए अपने सभी कर्तव्यों का पालन करते रहना विराट योग है ।

(1) मुख में राम हाथ में काम

(2) राम-राम भजकर श्रीराम, करिये नित्य ही उत्तम काम ।

(3) सिमरन और सेवा

(4) स्मरण और युद्ध

ये सब विराट योग के अन्तर्गत है । श्री स्वामी जी के अनुसार –

“हरि को सिमरो ध्यान से, चलते-फिरते बाट । काम-काज में सिमरिये, सुखकर योग विराट ॥

योग रीति यह सुगम है, फल है परम अपार । अति विश्वास का काम है, श्रद्धा की है कार ॥ 

(भक्ति-प्रकाश)

साधक मार्ग में चलते फिरते एवं काम-काज करते हुए ध्यानपूर्वक परमात्मा का सिमरन करे । सिमरन का अर्थ है कि परमात्मा सर्वत्र विद्यमान है, यह अनुभूति निरन्तर बनी रहे । भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को विराट रूप का दर्शन कराके यही संदेश दिया था कि कण-कण में ‘मैं’ ही हूँ। श्री स्वामी जी महाराज हमें सरल विराट योग में यही संदेश दे रहे हैं कि अपनी प्रत्येक गतिविधि में परमात्मा को अंग-संग मानकर काम करेंगे तो परमात्मा से सतत् योग बना रहेगा । अतः परमात्मा का कभी भी विस्मरण न हो । यह सुखकारी विराट योग है। परमात्म-मिलन की यह सरलतम विधि है और इसका फल अपरम्पार है । यह साधन अति विश्वास एवं श्रद्धा का मार्ग है । अतः आत्मकल्याण का यह सरलतम पथ विराट योग है।

“कर्म करो त्यों जगत के धुन में धारे राम । हाथ पाँव से काम हो, मुख में मधुमय नाम ॥

एक पंथ दो काज यों, होवें निश्चय जान । भक्ति धर्म का मर्म है, योग युक्ति ले मान ॥”

(भक्ति-प्रकाश)

जगत के सभी कर्म करते हुए राम-राम की धुन लगी रहे । हाथ- पाँव से कार्य करते हुए भी मुख में मधुर राम-नाम का जाप होता रहे। इस प्रकार निश्चय से एक पंथ दो कार्य होते जाते हैं । इसे ही भक्ति धर्म का रहस्य एवं आत्म- परमात्म मिलन की सुगमत रीति समझिये। ‘मुख में राम हाथ में काम’ यह श्री स्वामी जी महाराज का विराट योग है ।

“राम-राम भजकर श्रीराम, करिये नित्य ही उत्तम काम । जितने कर्तव्य कर्म कलाप, करिये राम-राम कर जाप ॥

करिये गमनागम के काल, राम-जाप जो करता निहाल । सोते-जगते सब दिन याम, जपिये राम-राम अभिराम ॥ 

(अमृतवाणी)

” सिमरन और सेवा का यह उत्तम व्यवहारिक रूप है ।” भगवान श्रीकृष्ण का अमर संदेश- हे अर्जुन, सब समय में तू मुझे स्मरण कर और युद्ध कर। (अर्थात नाम-स्मरण करते हुए सभी कर्तव्य कर्मों का पालन करता चल) इस प्रकार मन और बुद्धि मुझमें अर्पित किये हुए सदेहरहित, तू मुझको ही प्राप्त कर लेगा ।

 (गीता अध्याय – 8/7)

यही श्री स्वामी जी महाराज का विराट योग है । इस प्रकार साधक विराट योग का नित्य पालन करता रहे तो अन्तकाल में उसकी मति सुधर जाती है, वह शुभ गति को प्राप्त हो जाता है ।

“अन्तकाल में जिसकी मति सुधर जाये उसकी गति सुधर जाती है। मति को सुधारने का सबसे सुगम साधन नाम-स्मरण और नाम-ध्यान है।”

 (गीता अध्याय – 8/10)

‘अन्तकाल को जन जपे, जन्म जीत वह जाय । वेदागम का मर्म है, समझो निश्चय लाय ॥   

(भक्ति- प्रकाश)

“हे देहधारियों में श्रेष्ठ! यहाँ देह में (प्राणियों में ) शुभ कर्म रूप यज्ञ का अधिष्ठाता मैं हूँ और अन्तकाल में जो मनुष्य, मुझे ही स्मरण करता हुआ देह को त्यागता है वह मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है। इसमें कोई भी संशय नहीं । ”

(गीता अध्याय – 8 /5)

साधक नित्य, निरंतर, नियमपूर्वक नाम-जप व ध्यान का अभ्यास करता रहे तो अन्त समय में उक्त अवस्था को प्राप्त हो जाता है । साधना करने की यह विधि ही विराट योग है। विराट योग साधकों के लिए श्री स्वामी जी महाराज की सरलतम एवं श्रेष्ठतम पद्धति है। साधक गृहस्थ धर्म का भली-भांति पालन करते हुए अपने जीवन में इस पद्धति को अपनाकर अपना कल्याण कर सकता है।