आध्यात्मिक जीवन के व्यावहारिक सूत्र सिखाता है : साधना – सत्संग
15th Jun 2023आध्यात्मिक जीवन के व्यावहारिक सूत्र सिखाता है : साधना – सत्संग
स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि ‘अध्यात्म भारत का प्राण तत्व है।’
भारत के इसी आध्यात्मिक प्राण तत्व को जाग्रत करने के लिए पूज्यपाद संत श्री स्वामी सत्यानंद जी महाराज ने साधकों को नाम दीक्षा दी और राम-नाम को उनके जीवन में रमाने तथा बसाने के लिए साधना-सत्संग का विधान किया। सन् 1936 में पहली बार हरिद्वार में साधना – सत्संग लगाया गया जो भीमगोड़े के पास अमृतसर वालों की धर्मशाला में लगा। तीन साधना- सत्संग होशियारपुर, लायलपुर और कपूरथला में लगे। फिर सांपला और हांसी में भी साधना-सत्संग लगे। सन् 1950 से ग्वालियर में नियमित पाँच-रात्रि साधना-सत्संग लगना प्रारम्भ हुए। तत्पश्चात् श्री स्वामी जी महाराज के जन्म-दिन के उपलक्ष्य में चैत्र पूर्णिमा पर सन् 1955 व 1956 में दिल्ली में क्रमशः दो साधना-सत्संग लगे। श्री स्वामी जी ने सन् 1956 में व्यास – पूर्णिमा पर हरिद्वार श्रीरामशरणम् का उद्घाटन किया, फिर श्रीरामशरणम् हरिद्वार में नियमित साधना-सत्संग लगने लगे। तब से पाँच-रात्रि के साधना- सत्संग निरंतर लगाए जाते हैं। विगत कुछ वर्षों से तीन-रात्रि के साधना-सत्संग भी लगने लगे हैं।
श्री स्वामी जी महाराज ने दीक्षित साधकों की उन्नति हेतु, इन्हें सिधाने के लिए ‘साधना-सत्संग’ लगाने आरंभ किए थे, जहाँ साधक कुछ समय के लिए सांसारिक बंधनों से हटकर व परिवार से दूर जाकर क्रियात्मक (Practical) साधना करते हैं। इससे उनकी उन्नति के मार्ग की बाधाएँ दूर होती हैं। यह एक पाठशाला के समान हैं जहाँ वे अनुशासन व नियमों का पालन करना सीखते हैं, साथ ही भजन करने का स्वभाव बनाते हैं, ‘युक्ताहार विहारस्य, युक्त चेष्टस्य कर्मषु’ के अनुसार जीवन बनाते हैं।
साधना-सत्संग पूज्य श्री स्वामी जी महाराज की अनुपम देन है। इसके द्वारा साधक का जीवन नियमित बनता है। इसमें प्रातःकाल चार बजे के जागरण से लेकर रात्रि दस बजे तक उसकी दिनचर्या कैसी होनी चाहिए? यह सिखाया जाता है। अखण्ड जाप में बैठने से नाम बसने लगता है जिससे ध्यान और जाप एक हो जाता है। यह तप बाहर-भीतर दोनों को अच्छा बनाता है। श्री राम-नाम आराधन से बुद्धि, मस्तक, शरीर का आत्मिक बल बढ़ता है, आत्मिक जागृति होती है।
श्री स्वामी जी महाराज का मूल उद्देश्य था राम-नाम का आराधन करके भव-बंधन से छुटकारा दिलाने योग्य बनाना, परंतु इसका अभ्यास व्यक्ति को स्वयं करना होगा इसीलिए उन्होंने कहा “यह साधना है और आप अपने मास्टर आप ही हैं यहाँ से जाकर भी यह बात आपके जीवन में बनी रहे ऐसा भी मैं चाहूँगा।”
साधना – सत्संग श्री स्वामी जी महाराज की साधना-पद्धति का अविभाज्य अंग है जिसके द्वारा एक साधक को आध्यात्मिक व्यक्तित्व में बदलने की कला सिखायी जाती है। वह मनमुखी से गुरुमुखी बनने की ओर अग्रसर होता है। राम नाम का आराधन उसे मन का दास बनने का समय ही नहीं देता। अपने बर्तन स्वयं साफ करना, अपने कपड़े स्वयं धोना, अपने शेष सारे काम स्वयं करना साधक को आत्म-निर्भर बनाते हैं। इससे राग, द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध आदि विकार कम होते जाते हैं। भजन-कीर्तन में गाए जाने वाले संतों के पद साधक की चिंतन-धारा को अध्यात्म की ओर मोड़ते हैं। ऊँच-नीच का भाव, जाति-पाँति का भाव, अमीर- गरीब का भाव समाप्त हो जाता है। स्वच्छता बाहर और भीतर बसने लगती है। जप की अधिकता के कारण नाम स्फुरित होने लगता है जो समस्त पाप-तापों को नष्ट करने का काम करता है।
प्रत्येक नवीन दीक्षित साधक को एक बार साधना सत्संग में अवश्य जाना चाहिए और इस पद्धति को पूर्ण मनोयोग से सीखकर घर पर उसे अपने अभ्यास में लाकर जीवन का अंग बनाना चाहिए। श्री स्वामी जी महाराज के पाँच-रात्रि साधना-सत्संग बड़े ही महत्वपूर्ण होते हैं। लगातार पाँच दिन गुरुजनों के निकट सम्पर्क में रहने से शेष 360 दिन के लिये सार्थक जीवन जीने की कला सीखने को मिलती है। गुरुजनों के माध्यम से साधकों में शक्ति का संचार होता है एवं साधक वर्ष भर के लिये Charge हो जाता है।