पूज्यश्री प्रेम जी महाराज के निर्वाण दिवस (29 जुलाई) पर विशेष
29th Jul 2024
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आध्यात्मिक सेमीनार-महाविद्यालयीन विद्यार्थियों के लिये
12th Aug 2023आध्यात्मिक सेमीनार
[पूज्यश्री (डॉ.) विश्वामित्र जी महाराज ]
[ स्थान : श्री माधव सत्संग आश्रम, ग्वालियर : 22 जनवरी, 2009]
(महाविद्यालयीन विद्यार्थियों के लिये )
[1]
परम प्रिय विद्यार्थियो,
एक विद्यार्थी अपने सहपाठियों को हाथ जोड़कर नमस्कार अर्ज करता है। आपका हार्दिक स्वागत है । जैसे आप विद्यार्थी हैं, ऐसे ही मैं भी विद्यार्थी हूँ । आप’ अपरा’ विद्या के- संसारी विद्या के विद्यार्थी हैं, मैं ‘परा’ विद्या का विद्यार्थी हूँ । दो ही विद्यायें हैं। दोनों ही अनिवार्य हैं। एक व्यक्ति के पेट पूजा के लिये जरूरी है, दूसरी परमात्मा की – पूजा के लिये जरूरी है। सफल जीवन के लिये इन दोनों ही विद्याओं का समन्वय अनिवार्य है | जितना आप मेरे बारे में सुन चुके हुये हैं, थोड़ा और उसमें मैं add करूँ। मैं संन्यासी नहीं हूँ। मैंने संन्यास नहीं लिया हुआ है। कपड़े बदले हुये हैं। ये भी इसलिये, एक मेरे दादा – गुरु स्वामी सत्यानन्द जी का चिन्ह है। ये मेरे आध्यात्मिक गुरु पूज्य श्री प्रेम जी महाराज का चिन्ह है। इन बातों की भी आवश्यकता नहीं थी ।
प्रत्येक प्राणी की एक ही मौलिक माँग है । हर एक सुख चाहता है। जो चाहिये वह तो सुख बहुत उच्च क्वालिटी (Quality) का है, जैसा सुख चाहिये । यदि मेरे विद्यार्थी बच्चो, यह जान लो कि कैसा सुख चाहिये आपको, तो आगे की यात्रा आपकी बहुत सहज हो जायेगी। यात्रा शुरू करनी है । कैसा सुख चाहते हो आप ? जो सबसे मिले। सब जगह मिले और हर समय मिले। ऐसा तो नहीं है कि आप अभी सुखी हो, थोड़ी देर के बाद दुखी हो जाओ। ऐसा सुख आपको नहीं चाहिये। ऐसा भी नहीं चाहिये आपको, यहाँ बैठे हो तो सुखी हो और होस्टल जाओगे तो दुख मिले, ऐसा सुख भी आपको नहीं चाहिये। तो ऐसा सुरख चाहिये जो सबसे मिले, सब जगह मिले, सब समय मिले।
[2]
बच्चियो ! एक राज कन्या है। अपनी सखियों के साथ स्नान करने के लिये गयी है। सरोवर के किनारे कपड़े उतारे हैं । राजकन्या के पास नौलखा हार है। उसकी कीमत नौ लाख रुपये उस वक्त होगी । आज पता नहीं क्या है ? अपने कपड़ों के पास उसे भी उतार कर रख दिया है। स्नान कर रहीं हैं सारी सखियाँ बाहर निकलीं हैं। कपड़े डाले हैं। वह हार नहीं मिल रहा। नौलखा हार गुम हो गया है। खोज करने के बावजूद भी कहीं मिल नहीं रहा है। राज कन्या ने जाकर राजा से बात की। मेरा नौलखा हार गुम हो गया है। तत्काल घोषणा हुई। जो कोई उस नौलखा हार की सूचना देगा, उसे एक लाख रुपया इनाम मिलेगा | सूचना देने के साथ ही यदि हार वापस लाकर देगा तो उसे और भी अधिक इनाम मिलेगा। सभी ने प्रयत्न करना शुरू किये, लेकिन हार मिल नहीं रहा । कहीं नहीं मिला।
आज एक लकड़हारा उस सरोवर पर पानी पीने के लिये गया है। क्या देखता है, नीचे तल पर वह हार दिखाई दे रहा है। मिल गया। उसकी प्रसन्नता की कोई सीमा न रही। डुबकी लगानी आती थी, सो उसने डुबकी लगायी और ढूँढने की कोशिश कर रहा है लेकिन हार हाथ में नहीं आता, कीचड़ हाथ में आता है। वह तालाब से बाहर निकला । पानी जब स्थिर हुआ तो वह हार फिर दिखाई देने लगा । उसने पुनः डुबकी लगायी। फिर से हाथ में कीचड़ आई । हार हाथ में नहीं आ रहा है । जाकर सूचना दी राजा साहब को । अमुक सरोवर में हार है, लेकिन वह पकड़ में नहीं आ रहा है। विशेषज्ञ बुलाये गये । उन्होंने डुबकी लगायी, गोताखोरों ने भी डुबकी लगायी। उनको भी हार दिखायी देता है पर हाथ में नहीं आता है। सब चकित हैं। एक संत महात्मा वहाँ आये। क्या बात है ? क्यों सब लोग परेशान खड़े हो ? कहा- महाराज इस सरोवर में एक हार दिखाई दे रहा है। जो राजकन्या का गुम हो गया है, लेकिन वो पकड़ में नहीं आ रहा । वह संत कुशाग्र बुद्धि थे, उन्हें समझने में कोई देर नहीं लगी। ऊपर देखा । एक पेड़ की शाखा पर एक घोंसला है। उस घोंसले पर वह हार लटक रहा है।
बिंब ऊपर लटक रहा है, प्रतिबिंब जल में नीचे दिखाई दे रहा है, तो प्रतिबिंब हाथ में कैसे आये ? प्रतिबिम्ब को पकड़ना चाहते हो तो बिंब को पकड़ना होगा जिसका वह प्रतिबिंब है। चाहते हो परम सुख – बिंब और पकड़ रहे हो प्रतिबिंब को । कैसे हाथ में आयेगा ? चाहते हैं वह सुख, जिसे शाश्वत सुख कहा जाता है, Eternal happiness जिसे कहा जाता है, अनश्वर सुख जिसे कहा जाता है। आप उलझे हुये हैं नश्वर सुख (नाशवान सुख) की प्राप्ति में उलझे हुये हैं प्रतिबिंब में उस परम सुख की प्राप्ति कैसे हो ? इतनी ही जानकारी बेटा, याद रखना।
अपनी यात्रा शुरू करो । प्रतिबिंब को नहीं, उस बिंब को पाना है । कैसे पाना है ? दो विद्यायें हैं ना । एक, जो आप पढ़ रहे हो । एक, जो मैं पढ़ रहा हूँ। ऐसा नहीं कहने के लिये आया आपको। न मेरा सुझाव है, न होगा कि वो विद्या बन्द करके ये विद्या पढ़नी शुरू कर दीजियेगा । ना, बिलकुल नहीं। वह विद्या पढ़ते हुये इस विद्या का साथ में मिश्रण करना है । जिन्दगी सफल हो जायेगी ।
[3]
इंसान को इंसान की तरह जीना अध्यात्म सिखाता है !
आज एक बहुत बड़े वैज्ञानिक अमेरिका से आये हुये हैं। कोई सेमीनार था । सुन रखा था, भारत में कुछ संत-महात्मा होते हैं। Scientific sessions जिन्हें कहा जाता है, वे सारे के सारे खत्म हो गये । उन वैज्ञानिक ने संत-महात्मा के साक्षात् दर्शन करने, मिलने की इच्छा व्यक्त की। मध्य प्रदेश की ही बात है। किसी ने सुझाव दिया- अमुक जंगल में एक निर्जन स्थान पर महात्मा रहते हैं । दर्शन योग्य हैं । दर्शन मात्र से शांति मिलती है। सुख मिलता है । मन थोड़ी देर के लिये हल्का महसूस करता है। वैज्ञानिक ने अनेक प्रश्न पूछे। एक दुभाषिया (Translator) साथ ले गये थे, जो बात समझाता जाता था। बहुत Impressive answers, वैज्ञानिक बहुत प्रसन्न है । वैज्ञानिक ने कहा- एक और प्रश्न पूछना है, यदि आप इज़ाजत दें तो उसने कहा- पूछिये । Modern Science के बारे में आपका क्या दृष्टिकोण है ? कहा- मेरी दृष्टि में उसकी बिल्कुल कोई कीमत नहीं । यह सुनकर उसे धक्का लगा। मैं इतना बड़ा वैज्ञानिक ! मुझे बुलाया गया है, Invitation पर आया हूँ और ये व्यक्ति कह रहा है- उसके ज्ञान का मेरी दृष्टि में कोई मूल्य नहीं । क्या आपको विज्ञान की उपलब्धियों का पता है ? विज्ञान ने अनेकों उपलब्धियाँ इस संसार को दी हैं Modern world को । हाँ, पता है, तभी तो कह रहा हूँ इस विज्ञान का कोई मूल्य नहीं है ।
बेटा! मेरी बात का बुरा नहीं मानना । आपकी विद्या, चाहे वो साईंस की विद्या है, Medical Education है, Administration की Education है, Financial education है, किसी भी प्रकार की education है। वह पेट पूजा – के अतिरिक्त और कुछ प्रदान नहीं कर सकती। ये भी अनिवार्य है । मत भूलिये इस बात को । सारी जिन्दगी भर पेट पूजा करनी है। आप एक दिन भी भूखे नहीं रह – सकते। सो पेट – पूजा भी उतनी ही अनिवार्य है, जितनी कि इस विद्या की बात की जा रही है। संत महात्मा कहते हैं- बेशक इस विज्ञान ने बहुत कुछ दिया है। सांसारिक विद्यायें कहियेगा, इन विद्याओं ने बहुत उपलब्धियाँ दीं हैं। कोई शक नहीं है। लेकिन सबसे बड़ी हार है कि वह इंसान को इंसान की तरह जीना नहीं सिरवा सकतीं, ये अध्यात्म सिरवायेगा । मानव में मानवता प्रकट करने की योग्यता सांसारिक विद्याओं में नहीं है । परम सुख क्या है ? ये Anatomy की किताबों में नहीं या Pharmacology की किताबों में नहीं मिलेगा, Nursing की किताबों में नहीं मिलेगा, Economics की किताबों में नहीं मिलेगा, | Political Science की किताबों में नहीं मिलेगा, एक इंसान को अच्छा इंसान किस प्रकार से बनाना है ? वह Education नहीं सिखाती । बेटा, वह अध्यात्म ही सिरवायेगा । आप जरूरत महसूस करते हो कि एक इंसान को इंसान बनना चाहिये । एक इंसान को कैसे एक इंसान के साथ deal करना है ये इंसानियत उसके अन्दर आनी चाहिये। ये आप सब Agree करते हो। ये बोध हमें होना चाहिये । आप ही कहते हो ना, डॉक्टर तो बहुत अच्छा है, लेकिन चरित्र किसी काम का नहीं। तो डॉक्टरी से कहीं उच्च है- चरित्र । भले ही डॉक्टर बनने के लिये उसने बहुत मेहनत की हो। आप कहते हो चरित्रहीन व्यक्ति है। डॉक्टर होगा बहुत अच्छा, लेकिन उसका चरित्र किसी काम का नहीं है ।