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29th Jul 2024
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‘उषा-काल’ (ब्रह्म-मुहूर्त) में जागरण का महत्व
30th Apr 2024॥ श्री राम ॥
‘उषा-काल’ (ब्रह्म-मुहूर्त) में जागरण का महत्व
- उषा काल में उठने का अभ्यास करें। यह सूर्य उदय से कुछ पहले का समय होता है। ऐसा कहा जाता है कि उषा काल वह शक्ति है, जो मानव जीवन के सारे तत्व लेकर प्रातः काल पृथ्वी पर उतरती है। उषा काल प्रातः चार बजे के समय को कहा जाता है। इसी को ब्रह्म मुहूर्त भी कहते हैं।
- इस काल में तीनों शरीरों- सूक्ष्म, स्थूल तथा बुद्धि सभी को पोषक तत्व मिलते हैं। ब्रह्म की जिज्ञासा वाले ब्रह्म को और ज्ञान वाले ज्ञान को तथा शरीर वाले शरीर को बलवान बना सकते हैं। जो मनुष्य प्रातः काल उठेगा उसको दो लाभ हैं पहला- रोगी न होगा, दूसरा- दरिद्र नहीं होगा।
- प्राण को गति देने वाली प्राणमय वायु (ऑक्सीजन) इसी समय प्रचुर मात्रा में बहती है। यह वायु शीतल मंद और सुगंधिमय होती है।
- उषा काल (ब्रह्म मुहूर्त) का प्रकाश सूर्य के समान तेज या गर्मी नहीं देता, वह तो आनन्द और ज्ञान देता है। इसका प्रकाश देखो तो चित्त प्रसन्न होता है।
- ऋग्वेद में वर्णन है- रानी उषा मनुष्य समुदाय के लिए चिकित्सा करती हुई काले आकाश से उठ खड़ी हुई है। (ऋग्वेद 1-1234)
- संत महात्मा समझाते हैं ब्रह्म-मुहूर्त से बढ़कर और कोई पवित्र समय नहीं है। यही समय है जबकि प्रकृति का कोना-कोना पवित्रता से भरा रहता है। पत्ते-पत्ते से आरोग्यवर्द्धक वायु प्रवाहित होती रहती है। इस शुद्ध वायु से मनुष्य का मस्तिष्क विकसित होता है। आलस्य दूर भागता है और हृदय में सदाचार के उत्तम विचार उत्पन्न होते हैं।
- उषा का स्वागत करो, मैदान में पहुँचो और उषा माता के द्वारा भेजी गई ईश्वर की अनन्त निधि का कुछ भाग लो, यदि इस समय सोते रहे तो अलौकिक आनन्द से वंचित रह जाओगे। उषा के कोष में स्वास्थ्य, सौन्दर्य, सफलता, सम्पन्नता, ऐश्वर्य, आत्म-ज्ञान और आनन्द है।
पूज्य श्रीस्वामी जी महाराज का कथन है- ‘यदि किसी समय में सदा ही बसन्त रहती है, तो वह प्रातः का समय है।’
उषा सुवर्ण सुवेश से, कर लीला संचार। सब को लाली दे रही, ले लीला अवतार ॥
[भक्ति-प्रकाश]
[राम सेवक संघ, ग्वालियर के वरिष्ठ साधक की धरोहर से]