गीता जी का अमर संदेश – 1
05th Jul 2023गीता जी का अमर संदेश-1
पूज्यश्री (डॉ.) विश्वामित्र जी महाराज की वाणी
आज से गीता जी पर चर्चा आरम्भ करते हैं । भगवान के गाए हुए सुरीले गीत जो आध्यात्मिक संपदा से भरे पड़े हैं, ऐसे ग्रंथ को कहा जाता है- श्रीमद्भगवद् गीता | श्रीमद्भगवद् गीता का अर्थ क्या हुआ ? भगवान द्वारा गाए हुए वे सुरीले और मीठे गीत, जो आध्यात्मिक संपदा से परिपूरित हैं। ऐसे ग्रंथ को कहा जाता है – श्रीमद्भगवद् गीता ।
कोई कहता है यह कर्मशास्त्र है, कोई कहता है यह भक्तिशास्त्र है तो कोई कहता है यह ज्ञानशास्त्र है । कोई इसे धर्मशास्त्र भी कहता है। पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज कहते हैं कि यह कर्म, भक्ति एवं ज्ञान तीनों का समन्वय है, इसलिए यह जीवनशास्त्र है। इस ग्रंथ में भगवान श्री ने युद्ध करना नहीं सिखाया। अर्जुन युद्ध क्षेत्र में है उसे युद्ध करना नहीं सिखाया, तीर चलाना नहीं सिखाया, तलवार चलाना नहीं सिखाया। कर्म करने की विधि सिखाई है। मानो दिव्य जीवन जीने की कला सिखाई है । इतना महान ग्रंथ है- गीता जी ! कितना समीप हमारे जीवन के ! यह मत भूलना, जो गीता जी में कहा, वह रामायण जी में करके दिखाया है। दोनों ग्रंथों में कोई अन्तर नहीं । गीता जी का सर्वश्रेष्ठ टीका श्री रामायण जी । इससे बेहतर कोई हो ही नहीं सकता।
क्या शिक्षाएँ मिलती हैं, गीता जी से ? मात्र धार्मिक नहीं बनना है आध्यात्मिक बनना है। धार्मिक तो वह भी है जो श्रीरामशरणम् आता है, जिसने गले में माला पहन रखी है, जो मंदिर – गुरुद्वारे जाता है। अपने घर में जिसने राम दरबार – का चित्र लगा रखा है, धार्मिक ही दिखाई देता है। गीता जी मात्र इतना ही नहीं सिखाती । गीता जी कहती है कि मात्र धार्मिक नहीं बनना है, आध्यात्मिक बनना है। यह बड़ी उच्च शिक्षा है । जीवन तो ऐसा ही होना चाहिए, तभी सफल होगा । मात्र धार्मिक बनने से कब सफलता मिले, परमेश्वर ही जाने, कुछ नहीं कह सकते। परन्तु इतनी जल्दी नहीं । धार्मिक व्यक्ति का आचरण दिव्य नहीं होता, अतः वे आध्यात्मिक नहीं होते । धार्मिक व्यक्ति का आचरण, व्यवहार, स्वभाव दिव्य नहीं होता। वे सम नहीं होते, निर्विकार नहीं होते । निर्विचार नहीं होते, अतः आध्यात्मिक नहीं होते । अत: गीता जी मात्र धार्मिक बनना नहीं सिरवाती। यही उद्देश्य एवं आदेश है गीता जी का कि आध्यात्मिक बनना है ।
कैसे बनें आध्यात्मिक ? आज यहाँ से शुरू करते हैं। गीता जी का आदेश कब शुरू हुआ ? अर्जुन ने अपने जीवन – रथ की बागडोर भगवान श्री को सौंप दी है। भगवान श्री सारथी बन गए हैं। रथ की लगाम हाथ में ले ली है। हे माधव ! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के मध्य में खड़ा कर दो, मैं देखना चाहता हूँ मुझे किनके साथ युद्ध करना है ?
भगवान कृष्ण रथ को मध्य में ले गए हैं। यहीं से गीता जी का शुभारम्भ होता है। शुरू कहाँ से हुई, मानो अपने कर्त्तव्य जब करने हैं तो सफलता देने वाले को, शान्ति प्रदान करने वाले को, कृपा प्रदान करने वाले को जब अपने साथ रखोगे तो पूर्ण होंगे कर्त्तव्य | मानो अपने कर्त्तव्यों का पालन करने वाला, इसी के साथ गीता जी अपने अंतिम श्लोक के साथ सम्पन्न होती है। गीता जी का अंतिम श्लोक देखिये । संजय का मत है ( मानो भगवान श्री उसके मुख से अपनी बात कहलवाना चाहते हैं ) – साथ-साथ analysis करते जाते हैं-
‘जहाँ योगेश्वर श्री कृष्ण हैं अर्थात् भगवद्-कृपा है, शास्त्रानुसार कार्य करने वाला पार्थ है, धनुर्धारी अर्जुन है (धनुष – रहित नहीं है, धनुर्धारी अर्जुन) मानो अपने कर्त्तव्यों का पालन करने वाला ।’ ‘परमेश्वर कृपा है, शास्त्र – ज्ञान है, शास्त्रानुसार कर्म करने वाला पुरुषार्थी अर्जुन मानो हम सब हैं । वहीं परमानन्द है, वहीं परम-शान्ति है, वहीं सफलता है, वहीं श्रीलक्ष्मी हैं, वहीं विजय है, वहीं निश्चल नीति है।’
इसी के साथ गीता जी अपने अंतिम श्लोक के साथ सम्पन्न होती है ।