जन्म-मरण तथा भव रोगों से मुक्ति दिलाती राम-नाम की महौषधि
04th Jul 2023जन्म-मरण तथा भव रोगों से मुक्ति दिलाती राम-नाम की महौषधि
‘पूज्य श्री विश्वामित्र जी महाराज की वाणी’
‘औषध राम नाम की खाइये, मृत्यु जन्म के रोग मिटाइये ।’
पूज्यश्री महाराज जी ने अमृतवाणी व्याख्या में लिखा है- राम- नाम की औषधि का सेवन कीजिये और जन्म-मरण के रोग से मुक्त हो जाइये । रोग को नष्ट कर दीजिये । राम-नाम रूपी अमृत का सेवन शुद्ध-सुस्पष्ट एवं स्थिर मोक्ष प्रदान करता है।
मृत्यु की पीड़ा उसके कारणों से कई गुणा कष्टदायी है । कारणों की पीड़ा का बोध होता है और मृत्यु की पीड़ा से हम संसारी अनभिज्ञ हैं । शास्त्र कहता है- मृत्यु का समय, स्थान एवं ढंग निश्चित है। इस तथ्य को तथा आप्तजनों के वचनों को अक्षरशः संशय रहित स्वीकार करना ही विश्वास है । अविश्वास प्रभु से जुड़ी तार को तुरंत तोड़ देता है। कौन जोड़ेगा इस टूटी तार को ? कैसे जुड़ेगी यह तार ? परमेश्वर की करणी में, परमेश्वर के घर में हो रही घटनाओं में त्रुटि निकालना, उंगली उठाना तथा संशय रखना, आलोचना करना साधक को शोभा नहीं देता । काश! इतने बुद्धिमान होते हम ! साधक को परमात्मा पर संशय रहित सुदृढ़ सुविश्वास होना चाहिए । परमेश्वर की करणी को सहर्ष शिरोधार्य करना ही भक्ति है ।
पथ प्रदर्शन कीजिये, सबके देव महेश । जिस पथ पर चल कर मुझे, हो नहीं मरण क्लेश || – श्री भक्ति प्रकाश
मृत्यु तो अटल सत्य है । जिसका लेखा-जोखा साफ होगा, उसे क्या भय मृत्यु से ? कभी भी आ जाये सामने! सुकर्म करने वाला, राम-नाम जपने वाला, जिसने पाप की गठरी का बोझ नहीं उठा रखा वह क्यों डरेगा, मृत्यु से ? दुष्ट दुष्कर्म तथा पाप के बोझ की गठरी जो सिर पर लादे फिरेगा, मृत्यु का डर उसे सताता है ।
धर्मराय जब लेखा मांगे, क्या मुख लेकर जायेंगा ? धन जोबन का गर्व न कीजै, कागज सौं गल जावेंगा। नाम सिमर, नाम सिमर, नाम सिमर पछतायेगा ।
भगवान् का नाम अर्थात् ‘राम-नाम’ महौषध है जो भक्तों-संतों के माध्यम से परमात्मा स्वयं प्रदान करता है । इस औषध के सेवन से सब रोग मिट जाते हैं परन्तु इसके सेवन की विधि यह है कि प्रेमपूर्वक, निर- अभिमानता के साथ और निष्कामता से लिया जाए तो यह अति शीघ्र सभी लौकिक और पारलौकिक समस्याओं को दूर करने की सामर्थ्य रखती है ।
‘ आशीर्वाद भगवान् का, माँगे विनती साथ। औषध उसका नाम है, वैद्य आप जगनाथ ।।’
– श्री भक्ति प्रकाश
परमात्मा से भी बड़ा परमात्मा का नाम है । अतः विधिपूर्वक ‘नाम’ जप और ध्यान से चमत्कारी परिणाम मिलते हैं परन्तु साधक के हृदय में ‘नाम’ के प्रति पूर्ण विश्वास का होना आवश्यक है, क्योंकि नाम भी बदनाम नहीं होना चाहता । अतः प्रेमपूर्वक, पूर्ण समर्पण के साथ, निष्काम भाव से निहित कर्म करते हुए अपने जीवन को ‘नाम’ की उपासना द्वारा सफल बनाया जा सकता है।
मौन भाव से मैं सुनूँ, अन्तर्मुख हो गीत ।
शब्द सुधारस पान कर, जन्म मरण लूँ जीत ॥
– श्री भक्ति प्रकाश