व्यास पूर्णिमा-विक्रम सम्वत् 2080

Shree Ram Sharnam Gwalior

श्री राम शरणम्

राम सेवक संघ, ग्वालियर

जीवित गुरु की आवश्यकता

08th Jul 2024

जीवित गुरु की आवश्यकता

[पुस्तक : परम पारस गुरु रविदास (सन्त रैदास)]
लेखक : श्री काशीनाथ उपाध्याय (हवाई विश्वविद्यालय, अमेरिका)

प्रभु का साक्षात्कार करने के लिए किसी देहधारी पूरे गुरु या पूर्ण संत की आवश्यकता होती है। चूंकि अहंकार ही मनुष्य और परमात्मा के बीच एकमात्र आवरण या परदा है। सच्चे संत इस आवरण को पूर्णतः दूर करके अपने आपको परमात्मा से उसी प्रकार एकाकार कर लेते हैं जिस प्रकार नदी समुद्र में मिलकर एकाकार हो जाती है।
मनुष्य अपनी भौतिक सीमाओं के कारण प्रभु के विशुद्ध आध्यात्मिक यानी अभौतिक रूप का दर्शन करने में सर्वथा असमर्थ है। परमात्मा तक उसकी पहुँच तभी हो सकती है जब स्वयं परमात्मा गुरु/संत/ मार्गदर्शक के माध्यम से मनुष्य को उसके भौतिक स्तर पर आकर मिलें। दयालु परमात्मा मनुष्य के उद्धार के लिए ठीक यही साधन अपनाता है। अपने मानवीय रूप के माध्यम से वह जीवों को जागृत करता है और उन्हें सही मार्ग दिखाकर अपनी कृपा के सहारे परमात्मा से मिलाता है।
संत तुझी तन संगत प्रान। सतगुर गिआन जानै संत देवा देव ।।
संत ची संगत संत कथा रस। संत प्रेम माझे दीजै देवा देव ।।
संत आचरण संत चो मारग। संत च ओल्हग ओल्हगणी ।।
(- संत रविदास जी)
हे प्रभु! संतजन ही तुम्हारा शरीर (साकार रूप) हैं और उनकी संगति ही तुम्हारा प्राण है। किन्तु हे देवाधिदेव परमात्मा ! संत की पहचान सतगुरु के दिए हुए ज्ञान द्वारा ही हो सकती है। हे देवाधिदेव! कृपा करके मुझे संतों की संगति, संत-कथा का रस तथा संतों के प्रति प्रेम प्रदान करें। संतों जैसा आचरण, संतों का मार्ग और संतों के सेवकों की सेवा मुझे दें। एक और चीज मैं माँगता हूँ, मुझे भक्ति रूपी चिंतामणि (सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाली वस्तु) प्रदान करें तथा असंत और अज्ञानी लोगों की संगति कभी न दें।

ईश्वर-साक्षात्कार के लिए गुरु की अनिवार्यता

अपनी भौतिक सीमाओं के कारण मनुष्य अपने आप परमात्मा के अभौतिक रूप का दर्शन कर पाने में असमर्थ हैं। किन्तु मनुष्य जब पूर्ण गुरु के सम्पर्क में आता है, तब वह गुरु के द्वारा परमात्मा से सम्पर्क स्थापित कर लेता है और गुरु की ही कृपा से परमात्मा से उसका मिलाप हो जाता है। एकमात्र गुरु ही हमें मार्ग दिखा सकता है, हमारे पापों की सफाई करके हमें पवित्र कर सकता है और आन्तरिक शब्दधुन से जोड़कर हमें अलख, अगम तक पहुँचा सकता है। अन्य सभी प्रकार की बहिर्मुखी धार्मिक क्रियाएँ व्यर्थ हैं। वे हमें केवल गुमराह करती हैं।
नाम ही परमात्मा को प्राप्त करने का एकमात्र साधन है और वह नाम केवल गुरु द्वारा मिल सकता है। एकमात्र गुरु ही हमें सच्चे प्रेम की दीक्षा देकर तथा सच्चे नाम से जोड़कर परमात्मा के पास जाने का दरवाजा खोलता है, ज्ञान का दीप जलाता है, हमारी आन्तरिक आँख और कान को खोलता है तथा संसार के मायाजाल और संकट को दूर करके, हमें भवसागर से पार करता है।
गुरु ग्यांन दीपक दिया, बाती दई जलाय। रविदास हरि भगति कारनै, जनम मरन बिलमाय ।।
गुरु ने ज्ञान का दीपक प्रदान किया और उस दीपक की बत्ती जला दी अर्थात् अन्तर में प्रकाश कर दिया। रविदास जी कहते हैं कि प्रभु की भक्ति करवाकर गुरु ने हमारे जन्म-मरण (आवागमन) का चक्कर समाप्त कर दिया।
अंधला जौ पाइहि, तौ सिष भयौ निरंध। रविदास गुर ग्यांन चाखु बिना, किमि मिटइ भ्रम फंद ।।
यदि अंधे को गुरु मिल जाए तो गुरु का शिष्य बन जाने के कारण उसका अंधापन मिट जाता है। रविदास जी कहते हैं कि गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान की आँख के बिना भला सांसारिक भ्रमजाल कैसे मिट सकता है ?
गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष । गुरु बिन लवै न सत्य को, गुरु बिन मैटें न दोष।
(- संत कबीरदास जी)
प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ, ग्वालियर