धार्मिकता से आध्यात्मिकता की ओर
06th Jul 2023धार्मिकता से आध्यात्मिकता की ओर
[पूज्यश्री (डॉ.) विश्वामित्र जी महाराज की वाणी]
देवियों व सज्जनो कोटि कोटि प्रणाम ! हम सब पर परमात्मा की अपार कृपा है, हम परमात्मा के विश्वासी हैं, आस्तिक हैं, जन्म से ही हम धार्मिक हैं। हिन्दू मंदिर में जाता है, सिख – भाई गुरूद्वारे में जाते हैं, ईसाई लोग चर्च में जाते हैं, मुस्लिम बंधु मस्जिद में जाते हैं अपने- अपने धर्म के अनुसार ।
हम सब धार्मिक हैं
हम सब जन्म से ही धार्मिक हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है । हम सब धार्मिक तो हैं देवियों सज्जनो ! इसीलिए तो यहाँ आए हैं, इसीलिए तो मंदिर में जाते हैं, इसीलिए तो अमृतवाणी का पाठ करते हैं, श्री रामायण जी पढ़ते हैं, गीता जी पढ़ते हैं, माथे पर तिलक लगाते हैं, यज्ञोपवीत पहनते हैं इत्यादि, इत्यादि । ये सब बातें हमारे धार्मिक होने के संकेत हैं। सुबह-सुबह आप मंदिर जाते हैं, अपने-अपने हाथ में कुछ फूल-फल इत्यादि लिए होते हैं, प्रसाद चढ़ाने के लिए और फिर प्रसाद प्राप्त करने के लिए। ये सब धार्मिकता के चिन्ह हैं । स्वामी जी महाराज एवं संत-महात्मा फरमाते हैं-
धार्मिक तो हम जन्म से ही हैं इसमें कोई शक नहीं, लेकिन हमारी शांति की खोज, हमारे परम लक्ष्य की प्राप्ति, वह अभी तक हमें नहीं हुई। मात्र धार्मिकता आपको मुक्ति की प्राप्ति, जन्म-मरण के चक्कर से छुटकारा नहीं दिला सकती, परमानंद की प्राप्ति नहीं हो सकती, परम शांति की प्राप्ति नहीं हो सकती । यदि ऐसा होता तो धार्मिक तो हम हैं, हमें अभी तक यह अनुभव हो गए होते। हमने अभी तक परम शांति, परमानंद की अनुभूति कर ली हुई होती। तो फिर हमें जगह- जगह भटकने की जरूरत ना पड़ती। आराम से घर बैठते । जो पाना था सो पा लिया। आदमी रात को घर पहुँच जाता है तो उसके बाद उसे कितना विश्राम मिलता है! अपने घर पहुँचना ही तो इस जीवन का लक्ष्य है। अभी तक हम अपने-अपने घर नहीं पहुँचे हैं। शरीर का घर तो बैंगलोर है, दिल्ली है, कहाँ-कहाँ है ? लेकिन आत्मा का घर, जहाँ पहुँचना है, जिसकी प्राप्ति करनी है, वह घर हमें अभी तक नहीं मिला।
मात्र धार्मिक होना जीवन का पूर्ण लक्ष्य नहीं
धार्मिक होने से हमारा लक्ष्य पूर्ण नहीं होता। इससे यही स्पष्ट होता है ना, मात्र धार्मिक होने से यह काम नहीं बनता । धार्मिक होकर भी यदि हमारा लक्ष्य वहाँ जाकर परमात्मा की प्राप्ति होता, तो फिर भी हमारा काम बन गया होता। लेकिन मंदिरों में जाकर हनुमान जी के मंदिर जाते हैं, माता रानी के मंदिर जाते हैं, राम- दरबार जाते हैं इत्यादि, इत्यादि । इन मंदिरों में जाकर हमारी मांग भक्ति नहीं है, हमारी मांग परम शांति नहीं है, परमात्मा की प्राप्ति नहीं है, हमारी मांगें तो सांसारिक कामनाएँ हैं। हम वे चीजें मांगते हैं जो हमारे पास नहीं हैं, या हैं तो हम और चाहते हैं । उन चीजों के लिए हम वहाँ जाते हैं। मानो परमात्मा से अधिक हमारे लिए ये चीजें महत्वपूर्ण हैं, जो परमात्मा से हम मांग रहे हैं।
उस परमात्मा से परमात्मा को, जो हमारा साध्य है, वह हमारा लक्ष्य है, जिसे हमें प्राप्त करना है, उनको साधन बनाकर तो जो चीजें हमें चाहिए, वह मांग रहे हैं। हम उस लक्ष्य की प्राप्ति ना करके तो उस लक्ष्य के माध्यम से उसे साधन बना लिया है।
जैसे घर के नौकर को एक चिट दे दी जाती है कि जाओ बाज़ार जाकर ये चीज़ें खरीद लाओ। ऐसे ही हमारा संबंध देवियों, सज्जनो परमात्मा के साथ है। Shameful, अच्छी बात नहीं है । इसीलिए धार्मिक होते हुए भी हम उस लक्ष्य को अभी तक प्राप्त नहीं कर पाए । संत-महात्मा समझाते हैं- एक शब्द याद रखना, मात्र धार्मिक होने से लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होने वाली । अपने जीवन को आध्यात्मिक बनाइएगा। | Spiritualise yourself यह अध्यात्म मात्र पढ़ने की चीज नहीं है, यह अध्यात्म अपने जीवन में बसेगा, अपने कर्मों में उतरेगा, तो काम बनेगा। You will become spiritual, आप सिर्फ religious नहीं रहोगे तब आप spiritual बनोगे। जब तक Spiritual नहीं बनोगे तब तक आपको किसी कीमत पर भी परम शांति नहीं मिल पाएगी। You must spiritualise yourself. अपने जीवन को आध्यात्मिक बनाइएगा। कहाँ कमी रह गई है ? आज थोड़ी सी चर्चा इसी बात पर करते हैं ताकि वह कमी आगे से पूरी हो जाए। हमें यह कमी बड़ी पीड़ा देती है । क्या हाल हुआ, इतनी देर से मंदिरों में जा रहे हैं, रामायण जी का पाठ कर रहे हैं गीताजी का रोज़ एक अध्याय पढ़ते हैं लेकिन हम हैं। तो वहीं के वहीं | क्या चिन्ह हैं आध्यात्मिकता के ? हम धार्मिक होते हुए भी, यदि मैं आपसे यह कहूँ, कि हम संसारी हैं तो यह गलत नहीं है। धार्मिक एक लेबल सा लगा हुआ है लेकिन हम वास्तव में संसारी हैं ।
आध्यात्मिकता: जीवन का पूर्ण लक्ष्य
संत-महात्मा फरमाते हैं- आध्यात्मिक बनो तो आपको लाभ होगा, तो आपको लक्ष्य की प्राप्ति होगी। कौन होता है आध्यात्मिक ? बड़ी-बड़ी बातें नहीं करते । मुक्ति किसने देखी है ? मरने के बाद मुक्ति मिलेगी, किसने देखी है ? बात तो इस जन्म की है कि इस जन्म में हमें आध्यात्मिक होने से क्या लाभ होता है ? आध्यात्मिक बनने से हमारे अंदर क्या चिन्ह प्रकट होते हैं ? देखना तो यह है । यदि यहाँ
हमारे अंदर क्या चिन्ह प्रकट होते हैं ? देखना तो यह है । यदि यहाँ जिंदगी चिंतित है, भयभीत है, तनावपूर्ण जिंदगी है तो आप सोचते हो वहाँ जाकर आपको परम शांति मिल जाएगी तो यह असंभव है। यह नहीं होता । यहीं आपको अपने मन को trained, परिवर्तित करना है, अपने मन को पवित्र, रोग-रहित करना है तभी वहाँ जाकर आपको परम शांति मिलेगी। जो परम शांति, जीवनमुक्ति है, वह हम यहाँ प्राप्त कर चुके हैं, वहाँ जाकर भी आपको प्राप्त होगी, जिसे परमात्मा कहा जाता है, जिसे परमात्मा का घर कहा जाता है ।
एक बात याद रखो, हम सब यहाँ पर नाम के उपासक बैठे हैं । अतएव सब बातचीत जो भी है वह नाम-संबंधी ही की जाएगी। क्यों ? एक लाइन पकड़ ली है हमने, एक मार्ग हमने पकड़ लिया है, हम भटकना नहीं चाहते । मार्ग उसे ही कहते हैं जो आपको लक्ष्य तक पहुँचाता है । जो लक्ष्य तक नहीं पहुँचाता, उसको भटकना कहा जाता है । वह भटकना हमने बंद कर दिया है। हमने एक मार्ग अपना लिया हुआ है कि स्वामी जी महाराज ने जो हमें नाम-दान दिया है, उस नाम की उपासना हमें करनी है। यह हमारा निश्चित मार्ग है।
आध्यात्मिक कौन है ?
जिसका सिमरन चौबीस घंटे चलता रहे, जिसे चौबीसों घंटों परमात्मा याद रहे, वह आध्यात्मिक है बसस… । इस जीवन-काल में इतना ही काम है- Make His remembrance constant. Incessant remembrance.
अखंड remembrance, अखंड स्मरण, जिसका बना रहे, उसे समझिएगा कि यह व्यक्ति आध्यात्मिक है । अभी तक संभव क्यों नहीं हुआ ? जाप तो हम कर रहे हैं लेकिन एकाग्रता नहीं है । तो स्वामी जी महाराज के शिष्य तो नहीं हो पाए आप, साधक तो नहीं आप बन पाए। मेहरबानी करके साधक बनो । तब कुछ मिलेगा । तब स्वामी जी महाराज कुछ देंगे आपको । सिमरन में क्या कठिनाई रही है ? हम राम-राम माला लेकर जपते हैं । स्वामी जी महाराज ने कहा भी है । माला उसी वक्त दे देते हैं। माला लेकर तो राम-राम जपिएगा । बहुत अच्छी बात है। स्वामी जी महाराज की आज्ञा का पालन करते हैं, मैं भी करता हूँ । जैसे आप करते हो, वैसे मैं भी करता हूँ । उंगलियों पर जप तो राम का हो रहा है, जप तो राम के नाम का हो रहा है लेकिन सिमरन संसार का हो रहा है। यहीं हम मार खा जाते हैं। इसलिए जप | हमारा mechanical जप ही रह जाता है। वह सिमरन में परिवर्तित नहीं होता। आज आप घर जाकर करके देखना ।
Practise (अभ्यास) करो, अभ्यास करो । जन्म-जन्मांतर भी यह अभ्यास करके लक्ष्य की प्राप्ति हो जाए तो इसे महंगा ना मानिएगा, बहुत सस्ता है । जिसका आप नाम जप रहे हो उसे ही याद कीजिएगा, यह सिमरन बन जाएगा। जब आपको कहा जाता है, मन ही मन राम- राम जपिएगा, मन से राम-राम जपिएगा तो इसका अभिप्राय यही है ना कि आप क्लास-रूम में बैठे हुए हो, मात्र physically नहीं, मन से भी वहीं बैठो। कई दफ़ा विद्यार्थी को टीचर कुछ बोलता है, समझाता है, उसे पता है कि आप मानसिक रूप से वहाँ नहीं हो तो आपसे पूछता है- बेटा! मैं अभी क्या बोल रहा था ? तो आप झट से कहते हो- | Excuse me Sir, I was not here. मानो physically तो हम हैं, लेकिन मन हमारा कहीं और गया हुआ है। जब यह कहा जाए मन से राम-राम जपो तो इसका अर्थ यह है कि तन एवं मन । तन से तो आप जाप कर रहे हो, उंगलियाँ तो राम-राम बोल रही हैं, जप रही हैं, माला का मनका तो आगे फिर रहा है लेकिन मन का मनका कहीं और घूम रहा है। जब यह दोनों इकट्ठे हो जाएँ, इसे सिमरन कहा जाता है। आप आज से करोगे तो कल से इसका लाभ आपको विदित होगा । आपको experience होगा इसके लाभ का ।
What is so important about simran? Simran is so important.
सिमरन की क्या importance है ?
सिमरन उसी का होगा, जिससे प्रेम है । मोटी मोटी बातें, यह कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति आपकी सेवा में अर्ज कर रहा है, इनको पल्ले बांध लो । सिमरन किसका होगा – जिससे प्रीति है। प्रीति यदि संसार से तो बिना किसी प्रयास के संसार आपको याद आता रहेगा। आप भूल नहीं पाओगे। अभी हमारा यही हाल है। संसार बिन बुलाए याद आता है । परमात्मा को याद करना पड़ता है, याद दिलानी पड़ती है, सत्संग में जाना पड़ता है, यह करना पड़ता है, वह करना पड़ता है, तब जाकर तो परमात्मा की याद आती है। तो याद किसकी आएगी जिससे प्रेम है । अपना प्रेम, अपनी प्रीति संसार से तोड़कर परमात्मा से जोड़ने की आवश्यकता है। मैं आपसे इसको ऐसे अर्ज़ करता हूँ, आप अपनी प्रीति परमात्मा से बढ़ाते जाइएगा। संसार से अपने आप टूटती जाएगी। परमात्मा से अनुराग, परमात्मा से ममता आप बढ़ाते जाइएगा, संसार से ममता, राग इत्यादि, मोह इत्यादि अपने-आप टूटते जाएंगे, अपने-आप घटते जाएंगे, और अंततः खत्म हो जाएंगे। प्रीति की रीति जानते हो ना! जहां प्रीति होती है वहां कोई ना कोई आपको संबंध बनाना पड़ता है। आज से, अभी यहाँ बैठे-बैठे, मन ही मन परमात्मा से कोई नाता स्थापित कर लो। पति बना लो, पुत्र बना लो, पिता बना लो । स्वामी बना लो। संतों ने स्वयं को दासोहम् कहा है। यह सर्वश्रेष्ठ नाता है । आज संबंध बनाकर जाना तो फिर प्रेम करना बहुत आसान हो जाता है। स्वामी बनाया है, मालिक बनाया है, तो | आपको नौकर की तरह परमात्मा के साथ व्यवहार करना पड़ेगा । जैसे एक नौकर नौकरी करता है । तो संबंध का है ना महत्व ! प्रेम करना चाहते हो ना परमात्मा के साथ उससे कोई नाता स्थापित कर लो सब कुछ बहुत आसान रहेगा।
परमात्मा के साथ ममता हो जाएगी तो क्या होगा ? आइए देखें, आपको व्यक्तिगत पारिवारिक क्या लाभ होगा ? आपसे, मैंने अर्ज़ करी ना मात्र धार्मिक नहीं रहोगे, आध्यात्मिक हो जाओगे, जब सिमरन शुरू हो जाएगा, सिमरन बढ़ता जाएगा, तो आप धार्मिक नहीं आप आध्यात्मिक हो जाओगे और यदि यही चीज़ परिवार में आ जाती है तो परिवार राम-राम जपने वाला आध्यात्मिक हो जाता है। संत-महात्मा कहते हैं – वह परिवार शिव – परिवार बन जाता है। देवियों व सज्जनो ! ध्यान से सुनो। ऐसा परिवार निर्मित करना, ऐसा परिवार बनाना हम सब का कर्त्तव्य है । कैसे बनेगा ? सिमरन | incessant करते जाओगे, आपका परिवार शिव-परिवार बन जाएगा।
क्या विशेषता है शिव परिवार की ?
आप जानते हो ना, भगवान शिव का स्मरण युगों युगांतरों से अखंड चल रहा है। अभी तक उनका सिमरन कोई तोड़ नहीं सका । जैसे आप राम-राम जपते हो वैसे भगवान शिव राम-राम जपते हैं ।
यह सिमरन के चिन्ह हैं, यह परमात्मा से प्रेम के चिन्ह हैं। हर वक्त मुस्कुराते रहते हैं । अर्द्धमिलित आँखें, मानो हर वक्त वे समाधिष्ट रहते हैं । यह उपलब्धि उन्होंने अकेले जंगल में जाकर, पहाड़ में जाकर प्राप्त नहीं की । पार्वती को साथ रखकर, परिवार को साथ रखकर, यह उपलब्धि लाभ की है। भगवान शिव का परिवार, आपको अपने जीवन से सिखा रहा है ।
परिवार, संसार, कारोबार, अपनी नौकरी, पढ़ाई छोड़ने की आवश्यकता नहीं। यह सब कुछ करते हुए सिमरन को बनाकर रखिएगा तो आपका परिवार शिव-परिवार बन जाएगा । कोई रोक नहीं सकेगा।
आप सिमरन के लिए कहते हो ना! What you think of that you become. सिमरन, जिसको जितना याद करोगे आप उसी अनुरूप बन जाओगे। उतने अधिक जितना अधिक परमात्मा का स्मरण करोगे, परमात्मा के गुण आपके अन्दर, आने शुरू हो जाएंगे और दुर्गुण दूर होने शुरू हो जाएंगे । आपका मन बिल्कुल पवित्र, रोग-रहित, विकारों-रहित व दुर्गुणों-रहित आपका मन हो जाएगा। कोई वैर नहीं, कोई घृणा नहीं । सब परमात्मा, परमात्मा दिखाई देता है । आध्यात्मिक जीवन जीने वाला परिवार इस प्रकार से शिव- परिवार बन जाएगा ।
इसी प्रार्थना के साथ देवियों सज्जनो! अपना जीवन मात्र धार्मिक ही ना बनाकर रखिएगा, आगे बढ़िएगा, ऊँचे चढ़िएगा। Soar high ऊपर बढ़ते जाइएगा, चढ़ते जाइएगा। छोटी-छोटी बातों पर नाराज़ होने वाले, साधक नहीं हुआ करते ।
परम शांति का साधन
आप करोड़ की संख्या में जाप कर लो, आपको कभी परम शांति नहीं मिल पाएगी। क्यों ? आपका मन अभी तक साफ नहीं हुआ। आप धार्मिक तो हो दूसरों को दिखाने के लिए, प्रदर्शन के लिए । जाप तो करते हो लेकिन आपने अपने मन पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं किया ।
You have not been able to control your mind और जब तक mind control नहीं होगा साधकजनो ! तब तक आप कुछ भी कर लो, परम शांति कभी प्राप्त नहीं होगी।
किसने अमृतवाणी गायी है, मुझे अमृतवाणी नहीं गाने का मौका मिला, किसने भजन गाया है, मुझे भजन गाने का मौका नहीं मिला, यदि इन्हीं बातों में पड़े रहोगे तो कभी ऊपर नहीं चढ़ पाओगे, कभी आगे नहीं बढ़ पाओगे ।
यह स्वामी जी महाराज के साधकों के चिन्ह नहीं हैं । यह तो सामान्य संसारियों के चिन्ह हैं। बीस-बीस साल हो गए दीक्षा लिए हुए। एक पग भी व्यक्ति आगे नहीं बढ़ा तो सोचें स्वामी जी महाराज को कितना कष्ट होता होगा, इस बात को सोच-सोच कर । संसार तो इकट्ठा कर रहे हो आप, सांसारिकता तो और इकट्ठी हो रही है लेकिन जिसे इकट्ठा करना चाहिए, वह तो कुछ नहीं हो रहा।
जो आपकी अपनी पूँजी है वह तो कुछ नहीं इकट्ठी हो रही । जो आपके साथ जाने वाली है वह तो इकट्ठी बिल्कुल नहीं हो रही । जो यहाँ रह जाएगी, मर जाएगी, मिट जाएगी इस शरीर के साथ ही, वह तो बहुत इकट्ठी हो रही है। इसी को सांसारिकता कहा जाता है। नाम की पूँजी इकट्ठी करो, सत्कर्मों की पूँजी इकट्ठी करो, संतोष-धन इकट्ठा करो, सद्गुणों की पूँजी इकट्ठी करो। कब इकट्ठी करोगे ?
मृत्यु किस-किस के सिर पर मंडरा रही है ? कोई नहीं जानता । कब इकट्ठी करोगे असली चीज ? जो हमारे साथ परमात्मा के दरबार में जाएगी। यह सब कुछ तो यहीं रह जाएगा। एक तिनका भी इसका ना कोई आज तक लेकर गया है ना कोई लेकर जाएगा । तो फिर यही कहना होगा ना, खाली हाथ आए थे, स्वामी जी महाराज के शिष्य बनकर भी खाली हाथ ही चले गए। यह जीवन की सफलता तो नहीं है । मज़ा तो तब है खाली हाथ आए थे और नाम की कमाई से, सत्कर्मों की पूँजी इकट्ठी करके, सद्गुणों की पूँजी इकट्ठी करके अपनी झोलियाँ भर के, अपनी मुट्ठियाँ भर के तो परमात्मा के दरबार में जाइएगा तो स्वामी जी महाराज को प्रसन्नता होगी। छोटी-छोटी बातें आपको परेशान करती हैं । अध्यात्म आपको, शब्द याद रखना युवकों, आपकी अभी आयु बहुत है, अध्यात्म क्या बनाएगा आपको ? दुःख – Proof, घड़ी होती है ना वाटर – Proof ऐसे ही अध्यात्म आपको दुःख- Proof बनाएगा, शोक – Proof बनाएगा ।
No sorrow, विषाद नहीं । जैसे अर्जुन को हुआ था। अर्जुन बेचारा आध्यात्मिक नहीं था, इसीलिए विषादग्रस्त हो गया। आप आध्यात्मिक बनो। आध्यात्मिक बनोगे तो आप दुःख – Proof, शोक- Proof, चिंता – Proof, वैर- द्वैष – Proof, भय – Proof हो जाओगे । हर प्रकार का भय खत्म हो जाएगा। कब ? जब आपका जीवन आध्यात्मिक बनेगा ।
शुभकामनाएँ मेरी माताओं व सज्जनो! मंगलकामनाएँ! परमेश्वर की महती कृपा है, मेरे बाबा का पुण्य-प्रताप है, इनकी कमाई का लाभ तो इन्होंने इतनी बड़ी चीज़, अनमोल चीज़ हमें दी है । मानो मार्ग दिया है ऐसा कि आप तत्काल इसी वक्त धार्मिक से आध्यात्मिक बन सकते हो | Religious से spiritual बन सकते हो । spiritual बनना ही जीवन का लक्ष्य मानिएगा । आप सोचते हो बहुत बड़ी कम्पनियों के डायरेक्टर, मैनेजिंग डायरेक्टर, कुछ और भी उससे बड़े होते होंगे, ऐसा बनने से आपको मुक्ति मिल जाएगी। इसके लिए और ही कुछ आपको करना है जो स्वामी जी महाराज ने आपको समझा रखा है। मत सोचिएगा स्वामी जी महाराज कह रहे हैं, नौकरी छोड़ो, कारोबार छोड़ो और यही काम करो । नहीं, स्वामी जी महाराज की साधना है-
‘मुख से जपिए राम और हाथ से करिए काम’ ।
पहले रखा है मुख से जपिए राम । काम तो आप कर रहे हो। लेकिन मुख से राम को निकाल दिया हुआ है, हृदय से राम को आपने निकाल दिया है तो फिर मज़दूरी तो मिलती रहेगी, लेकिन परमात्मारूपी प्यार, कृपा का पुरस्कार नहीं मिल पाएगा। संसारी मज़दूरी तो पैसों वाली होती है । परमात्मा की नौकरी करोगे, परमात्मा की मज़दूरी करोगे तो वह मुक्ति देता है। बड़े आदमी की नौकरी बड़ी चीज़ ही देगी। परमात्मा की मज़दूरी करोगे तो फिर परमात्मा अपने बड़प्पन के अनुसार, अपनी महानता के अनुसार आपको मजदूरी देगा। और उसकी मज़दूरी है, उसकी कृपा, उसका प्यार, मुक्ति, मोक्ष (जन्म-मरण का चक्कर सदा-सदा के लिए खत्म, परमानंद देगा आपको, परम शांति देगा आपको। यह परमात्मा के घर की, बड़े आदमी की नौकरी है । बड़े आदमी की नौकरी तो फिर मज़दूरी भी इसी तरीके की।
‘हम हैं नौकर बाबा तेरे दरबार के, बदले मजदूरी हमें अपना प्यार दे, अपना दीदार दे ।’
इसी विनती के साथ साधकजनों खूब राम-राम जपिये । प्रेमपूर्वक राम-राम जपिये । इसे सिमरन बनाकर जपिएगा। अति शुभकामनाएँ साधकों । मंगलकामनाएँ । कोटि-कोटि प्रणाम आप सबको ।