पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज की साधकों के लिए सीख
01st Jun 2023
पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज की साधकों के लिए सीख (Teachings)
(साधना-सत्संग, हरिद्वार 1958 में श्री स्वामी जी महाराज का कथन )
• राम-नाम के उपासकों का प्रथम साधन स्नान, व्यायाम एवं स्वच्छ रहना है। वेशभूषा शिष्ट हो । कपड़े साफ-सुथरे, धुले हुए एवं प्रेस किये हुए हों, जूते/चप्पल पॉलिश किये हुए हों ।
• शेविंग करनी चाहिए एवं बालों में कंघी होनी चाहिए ।
• हमारे गुरुजन नित्य व्यायाम करते थे । साधकों को विधिपूर्वक पाँच बार सूर्य नमस्कार करना चाहिए । प्रतिदिन गहरी सांस लेते हुए लगभग आधा घंटे भ्रमण करना चाहिए । साधक को कम से कम लगभग पाँच प्राणायाम नित्य करना चाहिए । (भक्ति प्रकाश, पृष्ठ-169 पर देखें)
• माह में एक बार पूरे शरीर की मालिश भी करनी चाहिए।
• गुरु-संत या विशेष सम्मानीय व्यक्ति का स्वागत या विदाई करते समय सिर पर टोपी पहनना चाहिए।
• सत्संग में तथा घरों में जूते-चप्पल पंक्तिबद्ध रखने चाहिए ।
• साधकों का व्यवहार विनम्र एवं शिष्ट हो । छींक, उबासी, डकार एवं खाँसी के समय मुख पर रूमाल अवश्य रखना चाहिए ताकि आवाज न आये।
• साधना – सत्संग के समापन पर कक्ष की सफाई करके जाना चाहिए। अन्यत्र होटल, धर्मशाला या किराये का घर छोड़ते समय भी कमरा साफ (व्यवस्थित) करके जाना चाहिए ।
• नित्य प्रातः जागते ही माता-पिता एवं गुरु को मन ही मन प्रणाम करें।
• माता-पिता, गुरु एवं बड़ों को आदर-सम्मान दें । शिष्टाचार का पूरा ध्यान रखें । (भक्ति प्रकाश, पृष्ठ 278 पर देखें) –
• भोजन प्रारंभ करने से पूर्व ये दोहे पढ़कर परमेश्वर का भोग लगाना चाहिए :
अन्नपते ! यह अन्न है, तेरा दान महान ।
करता हूँ उपभोग मैं, परम अनुग्रह मान ।।
अन्नपते ! दे अन्न शुभ, देव दयालु उदार ।
पाकर तुष्टि सुपुष्टि को, करूँ कर्म हितकार ॥
फिर इसी प्रकार भोजन करने के पश्चात् ये दोहे पढ़कर धन्यवाद करना चाहिए :
धन्यवाद तेरा प्रभु, तू दाता ‘सुख’ भोग ।
सारे स्वादु भोज्य का, रसमय मधुर सुयोग ।।
विविध व्यंजन भोज्य सब, तू देवे हरि आप ।
खान-पान आमोद सब, तेरा हि सुप्रताप ।।
(भक्ति प्रकाश, पृष्ठ – 23 पर देखें)
• भोजन करने के पश्चात् थोड़ा आराम करना चाहिए। यदि आराम करने का समय न हो तो यह क्रिया करने से पाचन में लाभ मिलेगा तथा स्फूर्ति आएगी –
० भोजन के पश्चात् सीधे लेट जाएँ (पीठ के बल) 8 बार गहरी श्वांस (deep breath) लें।
० उसके बाद दाई करवट लेटें तथा 16 बार गहरी श्वांस लें ।
० इसके पश्चात् बाई करवट लेटें तथा 32 बार गहरी श्वांस लें।
• यात्रा में गीता जी सदैव अपने साथ रखनी चाहिए।
• साधकों के विचार सदैव सकारात्मक होने चाहिए एवं उन्हें प्रसन्नचित रहना चाहिए ।