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‘प्रवचन पीयूष’ का इतिहास
16th Dec 2023प्रवचन पीयूष’ का इतिहास
पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा साधना-सत्संगों में दिये गये प्रवचनों का संकलन राम सेवक संघ के सदस्य श्री अविनाश कुमार गुप्ता ने किया था। इस संकलन को सर्वप्रथम सन् 1961 में एक छोटी पुस्तक ‘अमृत बिन्दु’ नाम से प्रकाशित किया गया। इसका प्रकाशन राम सेवक संघ, ग्वालियर ने किया था ।
ग्वालियर के श्री मूलचन्द गुप्ता द्वारा आदरणीय लाला श्री भगवान दास जी कत्याल को हरिद्वार में जब यह पुस्तक भेंट की गई तो उन्हें यह अत्यधिक पसंद आई। उन्होंने इस हेतु ग्वालियर के साधकों के इस सद्प्रयास की सराहना की। श्री लाला जी ने कहा कि इसमें हम और प्रवचन सामग्री एकत्र करके इसे बड़ी पुस्तक के रूप में प्रकाशित करेंगे।
बाद में और प्रवचन जोड़कर इस पुस्तक को हल्के गुलाबी रंग के कवर में ‘प्रवचन पीयूष’ नाम से आदरणीय श्री लाला जी ने प्रकाशित किया था। इसके प्रकाशक में उन्हीं का नाम छपा है ।
इसके पश्चात् पूज्यश्री डॉ. विश्वामित्र जी महाराज ने श्री स्वामी जी महाराज तथा श्री प्रेम जी महाराज के अन्य प्रवचनों को ग्वालियर के राम- सेवक संघ के वरिष्ठ सदस्य श्री मूलचन्द जी को इसमें और संशोधन करने, और प्रवचन – सामग्री बढ़ाकर Systematic क्रम में Chapter-wise तैयार करने की सेवा सौंपी। इन प्रवचनों के संकलन में अधिकांश प्रवचन राम सेवक संघ के सदस्य हिसार के आदरणीय श्री – पं. लक्ष्मीदत्त जी तथा अन्य 5-6 सदस्यों द्वारा नोट किये गए थे।
लगभग दो वर्षों तक ग्वालियर में आदरणीय श्री मूलचन्द जी के मार्गदर्शन में श्री महेन्द्र मोहन श्रीवास्तव, श्रीमती शीला कत्याल, श्रीमती किरण शर्मा, प्रो. श्रीमती कुसुम अग्रवाल तथा सुश्री डॉ. ज्योत्स्ना जी की टीम ने परिश्रम करके नया ‘प्रवचन पीयूष’ तैयार किया और इसकी लेजर टाइप प्रिंटिंग ग्वालियर में ही कराकर पूज्यश्री विश्वामित्र जी महाराज को सौंपी गई। पूज्यश्री महाराज जी ने इस नये ‘प्रवचन पीयूष’ की सराहना की और श्री मूलचन्द जी तथा उनकी पूरी टीम को धन्यवाद दिए एवं आभार प्रकट किया।
पूज्य श्री विश्वामित्र जी महाराज ने सन् 2000 में व्यास – पूर्णिमा के शुभ अवसर पर हरिद्वार में साधना- सत्संग के दौरान श्री मूलचन्द जी से नई प्रिंट ‘प्रवचन पीयूष’ का विमोचन कराया था । इसे पढ़ने के बाद अनेक प्रांतों के साधकों के प्रशंसा तथा धन्यवाद के पत्र आये।
श्री स्वामी सत्यानन्द धर्मार्थ ट्रस्ट, नई दिल्ली के तत्कालीन चेयरमैन आदरणीय श्री सतपाल विरमानी जी ने भी श्री मूलचन्द जी को धन्यवाद तथा आभार का पत्र लिखकर ट्रस्ट की ओर से कृतज्ञता व्यक्त की।
हांसी के आदरणीय श्री गोविन्द लाल जी ने यह पुस्तक पढ़ी तो उन्होंने भी ग्वालियर फोन करके कहा- यह पुस्तक इतनी सुन्दर बनी है कि एक बार पढ़ना शुरू करो तो छोड़ने का मन ही नहीं करता। ऐसा मन करता है कि इसे पढ़ते ही जाओ । पढ़ने में बहुत आनन्द आता है।
यह सभी कार्य पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज तथा गुरुजनों की कृपा, आशीर्वाद तथा प्रेरणा से ही संभव हुआ ।
प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ, ग्वालियर