व्यास पूर्णिमा-विक्रम सम्वत् 2080

Shree Ram Sharnam Gwalior

श्री राम शरणम्

राम सेवक संघ, ग्वालियर

मंत्र दीक्षा/मंत्र धारणा

20th Jul 2024

मंत्र दीक्षा

[ श्री रामकृष्ण मठ, कांचीपुरम ]

मंत्र दीक्षा अर्थात् जब गुरु शिष्य को मंत्र/आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है, जिससे वह आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश करता है। यह एक दीपक से दूसरे दीपक को जलाने जैसा है। जो दीपक जलता है, उसे गुरु और शिष्य के दीपक के रूप में देखा जा सकता है। इससे यह बहुत स्पष्ट है कि केवल एक प्रज्वलित दीपक ही दूसरे दीपक को जला सकता है, जिसका अर्थ यह है कि केवल आध्यात्मिक रूप से सिद्ध व्यक्ति या आध्यात्मिक रूप से उन्नत व्यक्ति अथवा अनुभवी श्रेष्ठजन ही मंत्र दीक्षा दे सकता है।
श्री रामकृष्ण परमहंस जिन्हें रामकृष्ण सम्प्रदाय में `श्री गुरु महाराज’ (ठाकुर) के नाम से जाना जाता है, ने सनातन धर्म को उसके विभिन्न मार्गों पर चलकर और अपने निर्धारित लक्ष्य अर्थात् ईश्वर प्राप्ति को प्राप्त करके जीवंत किया। इसके बाद, श्री गुरु महाराज ने युवाओं के एक समूह को प्रशिक्षित किया, जिनका एकमात्र लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति था। इस प्रकार उन्होंने सनातन धर्म की परम्परा को आगे बढ़ाया और वह परम्परा रामकृष्ण सम्प्रदाय के अध्यक्षों, उपाध्यक्षों द्वारा कायम रखी गई है। ये प्रशिक्षित, आध्यात्मिक सिद्धजन ही इच्छुकजनों को मंत्र दीक्षा देते हैं।

पूज्यपाद श्रीस्वामी सत्यानन्द जी महाराज के अनुसार

मंत्र धारणा

ध्यान योग कैसे सफल बनाया जाये ? ध्यान योग के लिए यह अति आवश्यक है कि हमें कोई आध्यात्मिक मार्गदर्शक प्राप्त हो और वह हमारा मार्गदर्शन करे।
`मंत्र धारणा यों कर, विधि से लेकर नाम। जपिये निश्चय अचल से, शक्तिधाम श्रीराम ।।
‘ ‘यदि किसी अनुभवी मनुष्य द्वारा परमेश्वर का मंगलमय नाम लिया जाय तो उससे अन्तरात्मा जग जाता है। ईश्वर-कृपा तथा अनुभवी सज्जन से ग्रहण किया हुआ नाम ही ध्यान, एकाग्रता, समता और समाधि का साधन बना करता है।’         (श्री भक्ति प्रकाश से)
विधिपूर्वक ध्यान-साधना करने के लिये हमें मंत्र अर्थात् नाम-दीक्षा लेने की आवश्यकता होती है।
हमारे सत्संग में नाम का देना व लेना (नाम- दीक्षा) एक रहस्यवाद है। इस विधि में ‘राम-नाम’ एक जाग्रत चैतन्य मंत्र होता है जो अनुभवी, जाग्रत एवं आध्यात्मिक शक्ति-सम्पन्न सज्जन या ज्ञानी या सन्त अथवा सत्‌गुरु द्वारा अपने आत्मबल से साधक के अन्तःकरण में स्थापित किया जाता है अर्थात् विधिपूर्वक मंत्र का बीजारोपण किया जाता है। इस प्रकार विधिवत् नित्य नियम से साधना करने पर योग का विकास क्रम से होता जायेगा।
[पूज्यपाद श्रीस्वामी सत्यानन्द जी महाराज लिखित – परमात्म-मिलन]
प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ, ग्वालियर