व्यास पूर्णिमा-विक्रम सम्वत् 2080

Shree Ram Sharnam Gwalior

श्री राम शरणम्

राम सेवक संघ, ग्वालियर

‘यती सती साधु-संत सियाने, राम-नाम निश-दिन बखाने’ [प्राण प्रतिष्ठा-5]

24th Feb 2024

‘यती सती साधु-संत सियाने, राम-नाम निश-दिन बखाने’

[प्राण प्रतिष्ठा-5]

पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज ने अपने सिद्ध अवतरित ग्रन्थ अमृतवाणी में सती (साधिका) को साधु, संत, सिद्धजनों के समकक्ष रखा है। नाम-दीक्षा देते समय अथवा सत्संग सम्बन्धी कार्यभार सौंपने में भी कभी स्त्री-पुरुष में कोई भेद-भाव नहीं रखा। सदैव आध्यात्मिक योग्यता को प्रमुखता दी। भक्ति-प्रकाश के कथा-प्रकाश खण्ड में पूज्यश्री स्वामी जी महाराज ने मातृ-शक्ति को उच्च स्थान दिया है-

‘अन्त में शाक्त गुरु ने समागत सज्जनों को सम्बोधन करके कहा- हम भगवान् को शक्तिमय मानते हैं। इस विश्व में, सारी रचना में शक्ति ही काम कर रही है। द्रव्य-मात्र से यदि शक्ति को निकाल दें तो वह पीछे कुछ भी नहीं रह जाता। सृजन, संवर्द्धन, संरक्षण, सुविकास तथा संहार शक्ति के ही परिचायक हैं। हम माता के मंदिर में विश्व की शक्ति को माँ कहकर आव्हान करते हैं। शक्ति की जागृति पहले शब्द में हुआ करती है। उसका अंश ही हमारा भजन पाठ है। फिर शक्ति का प्रकाश कर्मों में हुआ करता है। उसका अंश हमारा दीन-जन-रक्षण तथा संपालन है। हमारे यज्ञ में शक्ति ही प्रधान है। इसका उद्देश्य प्रजा पालन और संरक्षण ही है।’
इसी प्रकार पूज्यश्री स्वामी जी महाराज ने भक्ति-प्रकाश के कथा-प्रकाश खण्ड में पाठ- सिमरन की कथा-4 एक साधारण महिला के बारे में है जो न तो गुरु थी, न ही संत, न ही सन्यासिनी तथा न ही तपस्विनी अपितु एक साधन-शीला स्त्री थी। जिसने तीर्थ-यात्रा जाते समय कई स्त्रियों को दीक्षा दी तथा उन स्त्रियों ने नाम-आराधन कर आत्मजागृति की तथा स्थिरता का अनुभव किया।
भक्ति-प्रकाश के पाठ सुलभा में पूज्यश्री स्वामी जी महाराज ने लिखा है-
ज्ञान स्वरूप आत्मा मेरा, यहाँ ‘कौन’ प्रश्न यह तेरा ।
नहीं समुचित पूछना ऐसे, पूछा राजन् तूने जैसे ।।
तुझको अपना आप बताऊं, विमल साक्षी हूँ यह सुनाऊं।
भासे राजन् ! निज पद मोहे, ज्यों स्व सत्ता दीखती तोहे ।।
भक्ति प्रकाश में पूज्यश्री स्वामी जी महाराज ने ऐसी अनेक सिद्धि प्राप्त, आत्मज्ञानी सतियों जैसे- सुलभा, सती अनुसूया, भगवती गार्गी, मैत्रेयी, शबरी, मन्दालसा, देवहूति, सावित्री, मीराबाई का वर्णन किया है।
सांस सांस में राम विचारे, निर्भय थी भगवान सहारे । भक्ति भाव से भरी भवानी, ज्ञानवती सती सुगुण खानी ।।
भक्ति प्रकाश के पाठ- कौशिक में भी काशी में बसने वाली ज्ञानवती गृहिणी का वर्णन है जिसने कौशिक मुनि का मार्ग दर्शन किया।
   बोला- देवि ! यह विद्या कैसे, आवे जिसके हैं फल ऐसे । जान जाय पर मन की लीला, मुझे सिखाइये यह सुशीला ।।
वह बोली- यह फल है सारा, गृह धर्म का जो है प्यारा । कर्मयोग की करना करणी, यही विद्या है मन मल हरणी।।
शिक्षा तो हम ऑनलाइन के माध्यम से भी प्राप्त कर सकते हैं। परन्तु नाम-दीक्षा के लिए, आत्म- उत्थान के लिए, आत्म-कल्याण के लिए, अध्यात्मपथ पर पग धरने के लिए शरीरधारी गुरु/सन्त/व्यक्ति की शरण में जाना ही पड़ेगा। वही प्रसुप्त कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत कर, अविद्या की ग्रंथि को भेदन कर, उस पर पड़े माया के आवरण को उठाकर, उसकी चेतना को चैतन्य बनाता है।
वीणा पुस्तक धारिणी अम्बे, वाणी जय जय पाहिमाम् । शक्ति दायिनी पाहिमाम्, भक्ति दायिनी पाहिमाम् ।
यह धुन पूज्यश्री (डॉ.) विश्वामित्र जी महाराज बसन्त पंचमी के दिन गाया करते थे। पूज्यश्री महाराज जी द्वारा दिये गये उपदेशों, प्रवचनों तथा लेखों में सदैव मातृशक्ति की स्तुति ही गाई गई है। उनके मुख से कभी यह नहीं सुना कि उन्होंने नारी शक्ति, महिला शक्ति, मातृशक्ति को पुरुषों से कम योग्य आंका हो अथवा कभी कहा हो कि महिला नाम-दीक्षा देने के अधिकारी नहीं अथवा साधन-सम्पन्न, ब्रह्मज्ञानी, तत्वदर्शी नहीं हो सकतीं।
एक स्त्री के जीवन में जिम्मेदारियाँ, चुनौतियाँ अधिक हो सकती हैं परन्तु साधन-सम्पन्न होने की योग्यता में वे किसी पुरुष से कम नहीं होतीं।
भक्ति-सर्व शक्ति।
पूज्यश्री स्वामी जी महाराज की विचारधारा सत्य है, अटल है, अवतरित है। अतः राम-सेवक संघ का ध्येय यही है कि पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज की विचारधारा व उनके सिद्धान्त जन-जन तक पहुँचे। श्रीरामशरणम्, ग्वालियर पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज की विचारधारा व उनके सिद्धान्तों पर दृढ़ निश्चयपूर्वक चलकर राम काज कर रहा है।
ऐसे सज्जन धन्य का, भक्त सन्त है नाम । रक्खे भरोसा राम का, करे राम का काम ॥
प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ, ग्वालियर