पूज्यश्री प्रेम जी महाराज के निर्वाण दिवस (29 जुलाई) पर विशेष
29th Jul 2024
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राम-नामोपासना
13th Jan 2024‘राम-नामोपासना’
सर्वाधार ओंकार जो, निराकार बिन पार । उसे राम श्रीराम कह, नमूँ सदा बहु बार ।।
पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज की साधना-पद्धति नामोपासना की है अर्थात् यह सगुण-निराकार की मानस-पूजा है। पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज ने, पूज्यश्री प्रेम जी महाराज और पूज्यश्री डॉ. विश्वामित्र जी महाराज ने कभी भी अपने पत्रों में अथवा प्रवचनों में और उनके ग्रंथों में सगुण-साकार पूजा नहीं बतायी है। कभी भी व्यक्ति-पूजा को महत्व नहीं दिया है। सदैव परमात्मा (परम सत्ता) को ही प्रथम (शीर्ष) स्थान दिया है।
सगुण का अर्थ
अतिशय मंगल स्वरूपाय, परम कल्याणकारिणे । सर्वशक्तिमद्देवाय, श्री रामायः नमो नमः।।
परमात्मा श्री राम परम-सत्य, प्रकाशरूप, परम ज्ञानानन्दस्वरूप, सर्वशक्तिमान, एकैवाद्वितीय परमेश्वर, परम पुरुष दयालु देवाधिदेव है।
अर्थात् राम सत्यस्वरूप है, राम प्रेमस्वरूप, कृपास्वरूप, आनन्दस्वरूप, ज्ञानस्वरूप, सर्वशक्तिमान, सर्वत्र, सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, सर्वसंकटहारी, सर्वसमर्थ, सर्वमंगलकारी, परम हितकारी, परम कल्याणकारी है। हमारे इष्ट मंत्र ‘राम’ नाम में ये सब दिव्यगुण समाहित हैं।
निराकार के बारे में पूज्यश्री स्वामीजी महाराज ने भक्ति-प्रकाश में लिखा है
जो नारायण, निराकार, निरंजन और अन्तर्यामी है, वही सन्त-सम्मति में राम समझना।
(कथा-प्रकाश ‘सिमरन’ : पेज नं. 427)
- भगवान शिव भी राम-नाम की ही आराधना करते हैं।
- जिस परमात्मा का सीता, राम, लक्ष्मण प्रातः- सायं ध्यान करते थे, हम भी उसी परमात्मदेव राम का ध्यान करते हैं।
- भगवान श्रीकृष्ण भी उसी परम ब्रह्म परमात्मा राम-नाम का ध्यान करते हैं।
- सन्त सूरदास, सन्त कबीरदास, नानक जी, मीराबाई, रैदास, सन्त तुलसीदास भी राम-नाम के ही उपासक हैं-
सत्य नाम शुभ नाम जो, वही जान ओंकार । उसे राम के नाम से, सन्तन कहा पुकार ॥
- भक्ति-प्रकाश में वर्णित शूरवीर भक्तों जैसे- राजा जनक, महाराणा प्रताप, शिवाजी, बन्दा, हकीकत राय, भीष्म पितामह ने भी राम-नाम की ही उपासना की है।
सुभक्ति अपने राम की, नहीं और से काम । निराकार भगवान है, सबसे ऊँचा धाम ।।
- अमृतवाणी में भी पूज्यश्री स्वामी जी महाराज ने लिखा है-
राम-नाम की बहुत बड़ाई, वेद-पुराण मुनिजन गाई।
वेदों, पुराणों, उपनिषदों, शास्त्रों में भी ‘राम’ नाम की ही महिमा गाई गई है। ‘राम’ नाम ही हमारा इष्टदेव है। हम इसी परमात्मा की राम-नाम द्वारा ध्यान, जप, सिमरन करके उपासना करते हैं।
वन्दे रामं, सच्चिदानंदम् !
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