श्री माधव सत्संग आश्रम (श्रीराम शरणम्) ग्वालियर के 50 वर्ष पूर्ण होने पर “स्थापना-उत्सव” का वर्णन
14th Jun 2023श्रीरामशरणम् ग्वालियर का पचासवें स्थापना वर्ष पर विशेष
8 अक्टूबर, सन् 2022
(आचार्यश्री (डॉ.) उमा शंकर पचौरी)
परमेश्वर श्रीराम-कृपा से तथा पूजनीय गुरुजनों के मंगल आशीर्वाद से श्रीरामशरणम् ग्वालियर को आज 50 वर्ष पूर्ण हो गए हैं। आज ही के दिन अर्थात् 8 अक्टूबर, 1972 को श्रीरामशरणम् ग्वालियर का उद्घाटन पूज्यश्री प्रेम जी | महाराज के कर कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ था। हम सब बहुत सौभाग्यशाली हैं कि श्रीरामशरणम् ग्वालियर के इस स्वर्ण जयंती उत्सव में (परमेश्वर की असीम कृपा से तथा गुरुजनों के आशीर्वाद से ) सम्मिलित होने का शुभ अवसर हम सबको प्राप्त हुआ है। अनेक भाग्यशाली साधक जो सन् 1972 में उद्घाटन दिवस के दिन उपस्थित थे, वे आज 50 वें स्थापना- उत्सव में भी उपस्थित हैं। ऐसा अवसर दुर्लभ होता है ।
चिन्तन का विषय केवल इतना है कि पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज ने राम-नाम को बिल्कुल उसी प्रकार अवतरित किया जिस प्रकार भागीरथ जी महाराज कठोर साधना के बाद गंगा जी को धरती पर लाये थे, जिसका उद्देश्य था – लोगों का कल्याण करना ।
उसी प्रकार स्वामी जी महाराज का भी उद्देश्य था- कुछ ऐसे आध्यात्मिक लोगों को तैयार करना, जो अपनी साधना के माध्यम से न केवल अपने जीवन को पवित्र बनाएँ, बल्कि वे अन्य साधकों के जीवन को भी पवित्र बनायें, जिससे उनका भी कल्याण हो सके। इसलिए चयनित लोगों को उन्होंने राम-नाम दिया। हम सब बड़े ही भाग्यशाली हैं कि उनकी कृपा से चयनित लोगों में हमारा भी स्थान बना, इसलिए हमारी जिम्मेदारी और भी अधिक बढ़ जाती है। गुरुजनों की सेवा का सबसे बड़ा साधन है- उनकी आज्ञा का अक्षरशः पालन करना । गुरुजनों को हमसे धन नहीं चाहिए, सम्मान नहीं चाहिए परन्तु जो उन्होंने हमें जो पथ बताया है। उस पथ पर चलने की वे हमसे पूर्णतया अपेक्षा रखते हैं।
गुरुजनों की आज्ञा का अक्षरशः पालन करते हुए ग्वालियर श्रीरामशरणम् आज इस उच्च स्थिति तक पहुँचा है- पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज की सन्तशैली को जीवित रखते हुये तथा जीवन्त शब्द द्वारा नाम-दीक्षा सम्पन्न करते ये । पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज ने कहा था- जीवित पेड़ | की शाखा से ही जीवित शाखा लग सकती है। जो स्वयं उस स्थिति को प्राप्त कर चुका हो, ऐसे साधन-सम्पन्न व्यक्ति के माध्यम से ही यह परम्परा आगे बढ़ती है। समय-पालन, अनुशासन और शुद्ध (पवित्र) जीवन, प्रार्थना की शक्ति की अनुभूति तथा दूसरों के लिए प्रार्थना करने का बल । न केवल अपने पारिवारिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय जीवन को अच्छा बनाना, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के कल्याण के लिए प्रार्थना करना। ऐसे श्रेष्ठ साधकों का निर्माण श्रीरामशरणम् में हो, ऐसी पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज की तथा दोनों गुरुजनों की अपेक्षा थी।
इस संसार में सफल तथा असफल लोगों के बीच केवल इतना अन्तर है- जो अपने मन की मानते हुए उसके अनुरूप आचरण करते हैं, ऐसा मनोमुखी व्यक्ति न तो अपना कल्याण कर सकता है, न परिवार का हित कर सकता है और न ही वह समाज – मानवता का हित कर सकता है।
उसका जीवन केवल स्वार्थ से प्रेरित होता है, सांसारिक प्रलोभनों से संचालित होता है। गुरुजनों की अपेक्षा यह थी कि हमारा जीवन गुरुमुखी बने। वह परमार्थ से प्रेरित हो, वह जन- कल्याण के भाव से प्रेरित हो। ऐसा काम केवल वह साधक ही। कर सकता है जो गुरु आज्ञा में अक्षरशः चलता है । –
अतः श्रीरामशरणम् ग्वालियर इस कसौटी पर अपने- आपको सदैव ही कसता रहा है। परिस्थितियाँ कैसी भी हों, गुरु आज्ञा का पालन हो, उनकी बनाई पद्धति यथावत् रहे। यहाँ आने वाले साधक केवल धार्मिक ही न बने रहें, बल्कि आध्यात्मिक बनें। स्वामी जी महाराज द्वारा बताई गई। आध्यात्मिक पद्धति पर अटल रहें, सुदृढ़ रहें तथा डटे रहें । उनमें कभी भी देशकाल की परिस्थितियों के अनुसार किंचित मात्र भी परिवर्तन न आए, कोई मिलावट न हो पाए, क्योंकि निरपेक्ष होने से ही कोई संगठन आगे चल सकता है। परमेश्वर श्रीराम-कृपा हम सब पर सदा बनी रहे। पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज की विचारधारा के अनुसार हम अध्यात्मपथ गामी बनें, अपना जीवन साधनामय बनाएँ, आज यही संकल्प लेने का दिन है।
परमात्मदेव के चरणों में प्रार्थना है हमारे इस संकल्प को पूरा करने के लिए हमें बल प्रदान कीजियेगा ! बल प्रदान कीजियेगा ! बल प्रदान कीजियेगा !
श्रीराम कृपा तथा गुरूजनों की कृपा का साक्षात् अनुभव हुआ
श्रीराम-कृपा और गुरु-कृपा तथा साधकों द्वारा की गई प्रार्थना का क्या प्रभाव पड़ता है ? वह 8 अक्टूबर, 2022 को ग्वालियर में हमें साक्षात् अनुभव हुआ ।
8 अक्टूबर, 2022 के उत्सव की व्यवस्था की तैयारी आश्रम में पिछले सात दिनों से चल रही थी। कार्यक्रम 8 अक्टूबर प्रातः 8 बजे से 9.30 बजे था, उसके बाद सभी के लिए प्रसादी वितरण का कार्यक्रम था। यह देखा जा रहा था। – कि धूप कहाँ-कहाँ तक आती है ? वहाँ-वहाँ शामियाना लगाया जा रहा था। गर्मी के हिसाब से तैयारी की जा रही थी। परन्तु चार दिन पहले ही बारिश शुरू हो गई। बारिश ऐसी जैसे कि फिर से मानसून आ गया हो। मौसम विभाग द्वारा दिनांक 7 और 8 को तो भारी बारिश की चेतावनी दी गई थी और दिनांक 7 की शाम से ही भारी बारिश शुरू हो गई। कार्यकर्ताओं को ये अटल विश्वास था कि कार्यक्रम के दौरान बारिश नहीं आयेगी। एक हजार साधक-साधिकाओं के नाम इस उत्सव में शामिल होने के लिए आये थे । यदि ऐसी बारिश निरन्तर होती तो साधकों का आना बहुत मुश्किल था, 50% साधक भी नहीं आ पाते | 8 अक्टूबर प्रातः 3 बजे से जब भोजन- प्रसादी बनना प्रारम्भ हुआ, उस समय घनघोर बारिश का दौर जारी था। लेकिन हमें राम-कृपा का विश्वास कायम था। भोजन बनता जा रहा था और बारिश रह रहकर और भी तेज होती जा रही थी । रसोइये ने बारिश को देखते हुए कहा कि भोजन- सामग्री की मात्रा अब आधी कर देनी चाहिये । परन्तु भोजन प्रबन्धकों के अटल विश्वास के कारण एक हजार साधकों | के भोजन की व्यवस्था में कोई कटौती नहीं की गई ।
फिर राम कृपा का अवतरण हुआ। प्रातः 6.30 बजे से – बारिश कम होकर 7 बजे बिल्कुल रुक गई। लेकिन काले- काले बादल आकाश में पानी से लदे थे जो कभी भी बरस सकते थे, पर नहीं बरसे।
श्रीराम-कृपा व गुरुजनों के आशीर्वाद से कार्यक्रम के दौरान कोई बारिश नहीं आई। साधकों के पधारने व वापस जाने तक (प्रात: 7 बजे से 11 बजे तक) कोई बारिश नहीं हुई और कार्यक्रम निर्विघ्न सम्पन्न हुआ । उस दिन ग्वालियर में इतनी वर्षा हुई कि ग्वालियर के तिघरा डेम के गेट उसी रात को खोलने पड़े पर ग्वालियर आश्रम परिसर श्रीराम जी और गुरुजनों की छत्रछाया में रहा ।
यह भोजन प्रसादी भी आश्रम की ओर से विगत 50 वर्षों में – पहली बार वितरित की गई। पूज्यश्री विश्वामित्र जी महाराज की इच्छा थी कि कभी ऐसा कार्य ग्वालियर में हो । उनकी इसी इच्छा को ध्यान में रखकर यह कार्यक्रम रखा गया था जो कि श्रीराम-कृपा से अभूतपूर्व रूप से अत्यन्त सफल रहा। उपस्थित एक हजार साधकजन इस घटना के साक्षी हैं और श्रीराम कृपा का अनुभव कर अत्यन्त गद्गद् हैं।
सत्यम् शिवम् मंगलम्
8 अक्टूबर (शनिवार), 2022 ग्वालियर आने का संयोग ना तो मन में श्री माधव सत्संग आश्रम के स्थापना – उत्सव में सम्मिलित होने का विचार आया। मैं विभिन्न स्थानों के श्रीरामशरणमों के सम्पर्क में रहती हूँ। पिछले कुछ समय से ग्वालियर श्रीरामशरणम् के विरोध में बहुत बातें सुनीं। मुझे भ्रमित करने के लिए इधर-उधर के स्थानों के श्रीरामशरणमों से कुछ लोगों के फोन भी आये । इन्हीं शंकाओं के निराकरण के लिए स्वयं ग्वालियर के श्रीरामशरणम् जाने का विचार आया ।
स्थापना उत्सव के एक दिन पूर्व जब मैं ग्वालियर पहुँची तो दिन-रात झमाझम वर्षा होती रही। 8 अक्टूबर को सुबह ध्यान करने उठी तो वर्षा हो रही थी लगा, आज श्रीरामशरणम् जाने का अवसर नहीं मिल पाएगा तथा शायद यही गुरुजनों की इच्छा है । परन्तु 6:30 बजे एकाएक पानी बरसना बंद हो गया तो ऐसा मन बना कि चलकर देखें तो सही कि जो लोग श्रीरामशरणम् ग्वालियर के लिये इतनी बातें बोल रहे हैं, उनकी बातों में कितनी सच्चाई है ?
7:30 बजे मैं आश्रम के हॉल में पहुँची (कार्यक्रम 8 बजे से प्रारंभ होना था ) वहाँ प्रणाम करके बैठते ही जो आँखें बंद की तो ध्यानलीन हो गई। बंद आँखों के सामने श्री अधिष्ठान जी का दिव्य तेज, दिव्य प्रकाश तथा गुरुजनों की आत्मिक भाव की उपस्थिति निरन्तर अनुभव होती रही।
जब 8 बजे श्री अमृतवाणी – पाठ प्रारंभ हुआ तो मन में कई- बार ऐसा भाव आता रहा जैसे गुरुजन साक्षात् इस परिसर में विराजमान हैं। श्री माधव सत्संग आश्रम का गौरवशाली इतिहास का वीडियो दिखाया गया तो अपने आप को सौभाग्यशाली माना कि तीनों गुरुजनों ने कितनी कृपा बरसाई है इस स्थान पर और मुझे उस स्थान में बैठने का अवसर मिल रहा है।
सत्संग की समाप्ति पर मैं बाहर निकली तो काफी अधिक संख्या में साधकगण उपस्थित थे। गुरुसेवक (कार्यकर्ता ) अति उमंग, उत्साहपूर्ण, कर्मठ तरीके से प्रसन्नता से खिले हुए चेहरे लिये सेवा कार्य (अपनी-अपनी ड्यूटीज़) कर रहे थे। इतने बड़े परिसर में इतनी बड़ी संख्या में उपस्थित साधकों को प्रसाद परोसा जा रहा था और वह भी लाइनबद्ध, नियमबद्ध, pindrop silence में सब कार्य हो रहा था । एक ओर श्रीरामशरणम् सुदृढ़ अनुशासन का model प्रतीत हो रहा था, दूसरी ओर ‘आनन्द ही आनन्द बरस रहा मेरे बाबा के दरबार में’ की धुन से पूरे परिसर में सात्विक तरंगें बरस रहीं थीं । जो मैंने वहाँ पाया वह बयान करना मुश्किल है। जिन शंकाओं को मन में लिए वहाँ पहुँची थी, सबका समाधान भी गुरुजनों ने स्वयं ही कर दिया, इतना अनुपम, अद्भुत दृश्य दिखाकर ।
Unbelievable ! Unimaginable !! Incredible !!!
अन्य स्थानों के श्रीरामशरणमों से जो जानकारियाँ मिल रही हैं, उनके विपरीत एक मात्र स्थान ग्वालियर का श्री माधव सत्संग आश्रम ही हैं, जहाँ सही मायने में सत्संग कार्य चल रहा है । सन् 1950 से पूज्य श्री स्वामी जी महाराज का यहाँ लगाया हुआ पौधा फल-फूल कर विशाल वट वृक्ष का रूप धारण किए है। यह मात्र संयोग नहीं, यह तो श्रीराम जी की असीम कृपा तथा गुरुजनों का आशीर्वाद का फल है। श्री अमृतवाणी-पाठ के अंत में श्रीस्वामी जी महाराज ने लिखा है- सत्यम् शिवम् मंगलम् – जहाँ सत्य है, वहीं शुभ है, वहीं मंगल है, अर्थात् वहीं श्रीराम जी की कृपा तथा गुरुजनों का आशीर्वाद है।
मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि आज के दिन परमपिता श्रीराम जी तथा पूजनीय गुरुजनों ने अपना निर्णय सुना दिया- श्री माधव सत्संग आश्रम में कोई असत्यता नहीं, कोई अनुशासन हीनता नहीं, कोई आडम्बर नहीं । अपितु यहाँ तो शुभ-मंगल का संचार हो रहा है तथा राम-नाम का विस्तार हो रहा है। निःसंदेह अपने इस राम-काज के लिए उन्होंने एक विशुद्ध सुकर्मी सन्यासी के हाथों इसकी बागडोर सौंपी है।
श्री माधव सत्संग आश्रम ( श्रीरामशरणम्) ग्वालियर के साधकों को बधाई तथा शुभकामनायें देते हुए श्रीमद्भगवदगीता के अंतिम श्लोक से अपने पत्र की समाप्ति करना चाहूँगी– “जहाँ योगेश्वर श्री कृष्ण हैं और धनुर्धारी अर्जुन हैं वहीं श्री लक्ष्मी है, वहीं विजय है, वहीं ऐश्वर्य है और वहीं निश्चल नीति है, ऐसा मेरा मत है । ”