पूज्यश्री प्रेम जी महाराज के निर्वाण दिवस (29 जुलाई) पर विशेष
29th Jul 2024
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‘सहज परम है योग’-2
10th Jun 2024‘सहज परम है योग’-2
स्मरण श्रम रहित कैसे हो ? यह एक प्रश्न उठता है। क्या हमें श्वास लेने में कोई श्रम होता है ? सच मानें यदि श्वास लेने में श्रम होवे, तो निश्चय ही रोग का सूचक है। हमारा साँस लेना, हमारा चलना, चाहे हमारा कितना भी वजन हो, सर्वथा सहज है, सरल है तथा श्रमरहित है। जब छोटा बच्चा चलना सीखता है, कितनी ही बार उठता और गिरता है, रगड़ खाता है, मुँह के बल गिरता है, बिलखता है, फिर गिरता है, फिर उठता है। यही क्रम बना रहता है। ठीक इसी प्रकार जो आध्यात्मिक मार्ग (राम कृपा प्राप्ति का मार्ग) में सरलता से, सहज भाव से चलना चाहते हैं, उन्हें गिरना पड़ेगा, उठना पड़ेगा।
रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे- ‘माँ! आज का दिन भी गया, मैं कितना अभागा हूँ- तू अभी तक मुझे नहीं मिली।’
गाँधी जी ने एक स्थान पर लिखा है- ‘हर एक आदमी इच्छामात्र से ही राम नाम को अपने हृदय में अंकित नहीं कर सकेगा, उसमें अलग से परिश्रम एवं धीरज की आवश्यकता है।’
‘राम नाम चिन्तामणि पारसमणि जैसा’
पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज की अभिव्यक्ति है। श्रम तभी तक रहता है, जब तक किसी कार्य के करने में हमें यत्न करना पड़े। जब यह भाव हो- करन करावनहार स्वामी है तो अपना कर्त्तापन शून्य हो जाता है, फिर श्रम कैसा? थकान कैसी ? हमारा राम से सम्बन्ध हो जाता है तो हमें सहज योग या सरल समाधि की प्राप्ति हो सकती है।
एक उपाय है स्मरण को प्रेम करने का। ‘तनेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत’ जिसे पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज ने ‘सोते जगते आठों याम’ कह कर व्यक्त किया है। सोते जगते का लाक्षणिक प्रयोग इस ओर संकेत करता है कि राम का नाता हमारे प्रत्येक क्रियाकलाप, भाव- संकल्प, इन्द्रियों के विषयों से जुड़ जाए। इसे ही कहते हैं ‘सन्मुख’ होना।
यहाँ भक्त का काम समाप्त हो जाता है और प्रभु का काम शुरू होता है।
[राम सेवक संघ, ग्वालियर के वरिष्ठ साधक की धरोहर से]
प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ, ग्वालियर