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‘हमारे साधना – सत्संग’ [ एक अनुपम आध्यात्मिक प्रशिक्षण ]
02nd Nov 2023‘हमारे साधना – सत्संग’
[ एक अनुपम आध्यात्मिक प्रशिक्षण ]
भज ले श्री भगवान को, अवसर बीता जाए । नाम रतन धन लूट ले, बीता हाथ न आए ।।
पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज ने साधना – सत्संग, ग्वालियर (1958) में अपने श्रीमुख से कहा था-
‘साधना-सत्संग में मुख्य साधना राम-नाम का आराधन है । यह साधन मानस भी है, वाचिक भी और कायिक भी । मन से ध्यान – चिन्तन, वचन से जप-कीर्तन तथा शरीर से सेवा कर्म | साधना – सत्संग में कुछ नियम बनाए जाते हैं। इनका प्रयोजन यही है कि साधन सीखा जाय और जीवन में बसाया जाय । यहाँ बाहरी दिखावे के लिए कुछ नहीं होता। जो यहाँ आता है, वह स्वावलम्बी हो । सत्संग का प्रभाव बहुत होता है । यह शक्तिदायिनी औषधि है ।’
साधना – सत्संग से अभिप्राय हमारी विशाल आध्यात्मिक साधना से है। हमारे पथ-प्रदर्शक पूज्यपाद श्रीस्वामी जी महाराज ने अपने अथक परिश्रम से, अपने भव्य विचारों से, अपनी उत्कृष्ट भावनाओं तथा अपने पूरे अनुभवों से इन साधना सत्संगों की स्थापना इस विशाल आध्यात्मिक जगत में की थी।
साधक साधना-सत्संग में स्वर्ग का अनुभव करते हैं । यहाँ सब मंगल होता है, आनन्द ही आनन्द होता है। अशुभ तो नाम मात्र को भी नहीं, सब शुभ ही शुभ होता है । सब राम ही राम है, प्रत्येक वस्तु राममय ही होती है। ऐसा क्योंकर न होगा ? जिस साधना- सत्संग के पौधे को इतने महान विशुद्ध सन्त ने अपने दृश्य के भावरूपी अमृत से सींचा हो, वह क्यों न उच्च कोटि का साधना – सत्संग होगा ?
साधना-सत्संग में साधक प्रैक्टीकल रूप से साधना करनी सीखते हैं। संत के संग में रहकर, अनुभवी व्यक्ति का अनुसरण कर तथा ज्ञानी साधकों को देखकर ही इस आध्यात्मिक प्रशिक्षण का लाभ लेते हैं । वास्तव में ऐसे विशुद्ध आध्यात्मिक साधना- सत्संग मिलना अतिदुर्लभ है। बड़े भाग्य से ये प्राप्त होते हैं। अनुभव द्वारा ही इनका लाभ लिया जा सकता है। हम सब पूज्यपाद श्रीस्वामी जी महाराज की इस अनुपम देन के लिए उनके सदा ऋणी रहेंगे ।
ग्वालियर में साधना-सत्संग, सन् 1950 से पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के समय से प्रतिवर्ष निरन्तर आयोजित हो रहा है । उनके पश्चात् परम पूज्यश्री प्रेम जी महाराज के सानिध्य में तथा फिर पूज्यश्री विश्वामित्र जी महाराज के सानिध्य में प्रत्येक वर्ष (कभी वर्ष में दो बार भी ) लगाया गया है।
[ ग्वालियर के एक वरिष्ठ साधक की डायरी सन् 1958]