पूज्यश्री प्रेम जी महाराज के निर्वाण दिवस (29 जुलाई) पर विशेष
29th Jul 2024
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‘जीवन्त मंत्र से ही अन्तरात्मा जाग्रत होता है’ [वैज्ञानिक विश्लेषण] [प्राण प्रतिष्ठा-4]
18th Feb 2024‘परम सत्य परम विज्ञान’ [प्राण प्रतिष्ठा-4]
‘जीवन्त मंत्र से ही अन्तरात्मा जाग्रत होता है’
[वैज्ञानिक विश्लेषण]
जीवन्त शब्द का अर्थ है- जाग्रत, चैतन्य, ज्वलंत, ऊर्जावान, क्रियाशील, सक्रिय । परमेश्वर की वह जीवन्त शक्ति, वह बल, वह ऊर्जा, वह परम-तत्व जो सर्व व्याप्त है। परन्तु यह तत्व सीधे परमात्मा से प्राप्त न होकर जीवात्मा के माध्यम से प्राप्त होता है। अब प्रश्न यह उठता है कि परम-तत्व जो सर्व व्याप्त है तो नाम-दीक्षा की आवश्यकता क्यों है ? नाम-दीक्षा के लिये जीवन्त शब्द ही क्यों अनिवार्य है ? इस प्रश्न का उत्तर भगवान श्रीकृष्ण जी महाराज देते हैं-
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः ।। ३४ ।।
हे अर्जुन! उस ऊपर कहे ज्ञान को, तत्त्व-ज्ञानी भगवद्भक्तों के समीप जाकर, विनय से, नमस्कार से, बार बार पूछने से और सेवा से समझ । तत्त्व-दर्शी ज्ञानी जन तुझ को ज्ञान का उपदेश देंगे।। सत्य का ज्ञान प्राप्त करने के उपाय नम्रता, जिज्ञासा और सेवा भाव हैं। इन्हीं से ज्ञान ग्रहण करने की योग्यता प्राप्त होती है। उक्त तीनों साधन जिज्ञासु की श्रद्धा के, सच्ची लगन के और ज्ञान पिपासा के परिचायक हैं।
‘Learn the Truth by approaching a spiritual master. Inquire from him reverence and render service unto him. Such an enlightened Siant can impart knowledge unto you because he has seen the Truth.
In layman’s language, ‘To acquire Param Tattva/atma tattva/soul realisation/the spiritual element (which cannot be self-realized on our own) we have to appoach a self-realized, holy saint in physical form, ANYHOW!’
इसी प्रकार नाम-दीक्षा के समय एक अनुभवी व्यक्ति/सन्त हमारे अन्तःकरण में अपने आत्मिक बल से अपनी आध्यात्मिक पूंजी/साधना पूंजी का अंश प्रत्यारोपित करते हैं। पूज्यश्री (डॉ.) विश्वामित्र जी महाराज नाम-दीक्षा के समय कहा करते- आज पूज्यपाद श्रीस्वामी जी महाराज ने अपनी कमाई (साधना की पूँजी) से परमात्मा के दरबार में आपका account खोल दिया है।
जैसे गर्भाधान की प्रक्रिया एक रहस्यवाद है, बीजारोपण की क्रिया रहस्यवाद है। इसी प्रकार परमात्मा ‘राम-नाम’ को अनुभवी सन्त विधिपूर्वक अपने आत्मिक तत्व द्वारा मनुष्य में स्थापित करते हैं, यह प्रक्रिया होती है परन्तु दिखाई नहीं देती, यही रहस्यवाद है।
Meaning of ‘Guru tattva’
The term comes from the Sanskrit word ‘Guru’ meaning ‘teacher’ or the ‘master’ and the tattva means ‘principle’ ‘essence’, ‘reality’ or ‘truth’. Thus Guru tattva can be described as the essence of the bringer of awareness of higher knowledge.
Guru tattva means an element or a quality or a characteristic feature of Guru inculcated in you. At the time of kundalini awakening or the Naam Deeksha, that wisdom/ energy/ element/ strength is put (invisibly and mysteriously) in each disciple to invoke and awake his ‘SELF. When the ‘Guru Tattva’ or supreme element inside the soul is awakened, misery in life disappears. In our consciousness. Wisdom comes to life when the Guru tattva comes to life.
Guru is the bringer of ‘Param tattva’ in one’s life, that’s why ‘Guru in human form /physical form is required (An electronic device cannot be the bringer of spiritual element). This is a scientifically proven phenomenon.
Genetics के साधारण उदाहरण से इसे समझा जा सकता है। जैसे- एक बच्चे में माता-पिता दोनों का DNA पाया जाता है, तथा उस DNA से ही वह बच्चा माता-पिता का प्रतिरूप कहलाता है। ऐसे ही वैज्ञानिक दृष्टि से ‘गुरु तत्व’ एक spiritual DNA है जो हमें नाम-दीक्षा के समय प्राप्त होता है और जिससे हम पूज्यपाद श्रीस्वामी जी महाराज के परिवारजन कहलाते हैं।
अब प्रश्न यह उठता है कि Can this Spiritual Element (or DNA) transfer phenomenon be done by an electronic device?
Absolutely Not! An electronic device can follow and copy the steps of a process but sowing the seeds of Raam-naam can never be done via electronic or mechanical method. The output or the result or the fruit will not be attained. Kundalini energy is neither raised nor activated. Thus the spiritual DNA/energy/ strength/element/tattva cannot be implanted.
कुण्डलिनी बोधे सुषुम्ना खोले, राम मन्त्र अमृत रस घोले । उपजे नाद सहज बहु-भांत, अजपा जाप भीतर हो शांत ॥
(सर्पाकार सुषुप्त कुण्डलिनी शक्ति का जागरण स्पर्श, दृष्टि तथा जीवन्त शब्द की चोट से ही सम्भव है जिस के लिये देहधारी गुरू/सन्त/अनुभवी/साधन सम्पन्न व्यक्ति का होना नितान्त आवश्यक है।)
निःसन्देह गुरु शरीर नहीं, गुरु तत्व है। वह परम तत्व तो पूरे ब्रह्माण्ड में सर्वव्याप्त है। परन्तु उसे प्राप्त करने के लिए अनुभवी संत की शरण में जाना ही पड़ेगा। यह जड़ पदार्थ से प्राप्त नहीं हो सकता, जड़-पदार्थ से शून्य ही प्राप्त होता है। जीवन्त मंत्र से ही अन्तरात्मा जाग्रत होता है। यही इसका वैज्ञानिक विश्लेषण है।
इति सिद्धम्।
क्रमशः
[भारत के प्रतिष्ठित संस्थानों IIT Roorkee, IISC Bengaluru के Research Scholars,
अध्यात्म-विज्ञान के बुद्धिजीवी तथा राम सेवक संघ के सहयोग से ]
प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ, ग्वालियर
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