कीर्तन
29th Jul 2023कीर्तन
[पूज्यश्री प्रेम जी महाराज की वाणी – सन् 1962]
भक्तों के भजन और उनकी प्रचलित की हुई धुनें भी मंत्र का प्रभाव रखती हैं। जब कोई भजन अथवा धुन गाई जा रही हो, यदि वह किसी भक्त सूरदास जी, गोस्वामी तुलसीदास जी, मीराबाई जी आदि की होती है तो गाने वाला कोई भी क्यों न हो, सुनने वाले का हृदय गद्गद हो उठता है । इनका प्रभाव मंत्र के समान ही होता है। इनके गायन – उच्चारण से अपने आपको भी शान्ति प्राप्त होती है और सुनने वाले को भी।
परम पूज्य श्री स्वामी जी महाराज सदा परमात्मा के सिमरन में मग्न होते, उसी में रमे रहते थे। उन्होंने जो भजन तथा धुनें गाई वे सब परम धाम से अवतरित होती रहीं, इसीलिए उनमें बड़ी शक्ति है, बड़ा प्रभाव है और वे बड़ी मंगल और कल्याण करने वाली हैं। कष्ट – क्लेश निवारण करने में सदा सहायक हैं। कीर्तनों में उनका जितना हम उपयोग करेंगे, उतना अधिक जल्दी आत्मा को ऊँचा उठा पायेंगे । यह अनुभव साधकों को प्राप्त हुआ ही करता है। जो धुनें जैसे अवतरित हुई हैं वैसे ही गाई जाना चाहिए, जैसे-
मंगल नाम, जय जय राम ।
लाइयाँ तोड़ निभाईं ओ साइयाँ ।
मेरे राम सर्वाधार, बार बार नमस्कार ।
किसी की धुन में अपनी धुन को मिलाकर गाना और फिर उसी का प्रचार करना यह न कोई अपने आपको ऊपर उठाने का साधन है और न ही इससे किसी का उद्धार होता है।
‘रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम ।’
यह धुन श्री शिवाजी के गुरु महाराज समर्थ रामदास जी द्वारा गाई गई थी। बहुत सी धुनें अमृतवाणी के अन्त में छपी हुई हैं। कुछ विशेष ‘श्रीराम शरणम्’ की दीवारों पर भी लिखी हुई हैं तथा मेरे मित्रों के हृदयों में वे अपना स्थान बना चुकी हैं – वे सिद्ध मंत्र के समान ही हैं । उनको शुद्ध गाना सबका परम कर्त्तव्य है ।