व्यास पूर्णिमा-विक्रम सम्वत् 2080

Shree Ram Sharnam Gwalior

श्री राम शरणम्

राम सेवक संघ, ग्वालियर

गीता जी का अमर संदेश-2

05th Jul 2023

गीता जी का अमर संदेश-2

पूज्यश्री (डॉ.) विश्वामित्र जी महाराज की वाणी

युद्ध समाप्त हो गया है। आज किसी आश्रम में शिष्यों के मध्य चर्चा चल रही है कि कर्ण कई मायनों में अर्जुन से उत्कृष्ट था। कर्ण जैसा धर्मात्मा दानी न कोई हुआ, न होगा। भगवान श्री ने उसका शरीर अपने हाथ पर जलाया था। जिन हाथों में कर्ण ने दान दिया, वह कर्ण मेरी हथेली पर जले ।’ भगवान श्री ने उस हथेली को विराट बना लिया, उस पर कर्ण का दाह संस्कार किया । इतना महान कर्ण, कहीं better, धनुर्धारी अर्जुन से, धनुर्विद्या कहीं बेहतर | जानने वाला | पर क्या बात है, कर्ण हार गया और अर्जुन जीत गया ? जब कोई निर्णय नहीं ले पाए तो शिष्य गुरु महाराज (आचार्य) के पास गए हैं, कहा- हमारी इस जटिल समस्या का हमारी जिज्ञासा का समाधान कीजिये ।

गुरु महाराज कहते हैं- तुम्हारी सोच बिल्कुल ठीक है। कर्ण हर प्रकार से अर्जुन से far superior उत्कृष्ट है। इसमें कोई शक नहीं। शास्त्र भी ऐसा कहता है, उसका व्यक्तित्व भी ऐसा कहता है। कर्ण को ज्येष्ठ पांडव कहा जाता है, कुंती का ही पुत्र है। सूर्य पुत्र भी कहा जाता है। – कर्ण कोई छोटी-मोटी हस्ती नहीं हो सकती। आचार्य समझाते हैं – उसके जीवन में एक बड़ी भारी कमी रह गई थी । अर्जुन को नर कहा जाता है, भगवान श्रीकृष्ण को नारायण कहा जाता है। नारायण अर्थात् हमारे जीवन में पूर्णता प्रदान करने वाली सत्ता । कर्ण ने उस पूर्णता प्रदान करने वाली सत्ता को अपने साथ नहीं रखा। अर्थात् कर्ण ने उस पूर्णता प्रदान करने वाली सत्ता जिसे परमात्मा कहा जाता है, नारायण कहा जाता है, उसे अपने साथ नहीं रखा, यही कमी रह गई उसके जीवन में । अर्जुन ने समझदारी कर ली। वह घर से निकलने से पहले ही अपने जीवन की बागडोर भगवान को सौंपकर चला है।

यहीं से हमारा जीवन शुरू होना चाहिए। यहीं से हमारी जीवन-यात्रा का शुभारम्भ होना चाहिए। घर से निकलते वक्त ही जीवन की डोरी परमात्मा के हाथ में सौंप दें। फिर कौन माई का लाल है जो आपकी सफलता को रोक | सके ? कोई विघ्न-बाधा डाल सके। कोई नहीं !! जहाँ नारायण साथ है, वहाँ कोई विघ्न-बाधा नहीं हो सकती, क्यों ? क्योंकि सफलता देने वाला, साथ बैठा है ना । विघ्न- बाधा को दूर करने वाला साथ बैठा है ना। जीवन का संचालक साथ बैठा हुआ है ना। क्या गलती हो सकती है, कहाँ गलती हो सकती है ? असंभव । बिलकुल नहीं हो सकती।

मूर्ख दुर्योधन सोचता है, भीष्म पितामह को इछा-मृत्यु का वरदान मिला हुआ है। उनके अन्दर मरने की इच्छा ही नहीं होगी, तो वे मरेंगे ही नहीं। कौरव जरूर जीतेंगे, पाण्डव हारकर ही रहेंगे क्योंकि भीष्म पितामह जिंदा रहेंगे।

शास्त्र कहता है- मूर्ख दुर्योधन यह नहीं जानता कि इच्छा पैदा करने वाला तो पाण्डवों की ओर से लड़ रहा है। वह तो पाण्डवों के साथ है जिसने इच्छा उत्पन्न करनी है, भीष्म पितामह के अन्दर । अब चल तेरे चलने की बारी है । कर्ण के जीवन में एक ही सबसे बड़ी भारी कमी रह गई थी उसने पूर्णता प्रदान करने वाली सत्ता को अपने साथ नहीं रखा। अर्जुन बाजी मार गया । दुर्योधन ने भी यही भारी भूल करी। आप तो सब जानते हो – भीष्म पितामह को अजेय कहा जाता है, द्रोणाचार्य को अजेय कहा जाता है, कृपाचार्य को अजेय कहा जाता है। तीन इतनी बड़ी हस्तियाँ कौरवों के साथ थीं फिर भी वे हार गए। कोई जीवित नहीं बचा। मानो पूर्णता प्रदान करने वाली सत्ता के वे आश्रित नहीं रहे। मानो जीवन का संचालन करने वाली सत्ता, | जीवनदान देने वाली सत्ता, सफलता प्रदान करने वाली सत्ता कौरवों के साथ नहीं थी ।

भगवान श्री ने अपने विराट स्वरूप में अर्जुन को पहले ही दिखा दिया था – देव पार्थ! ये पहले ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं । तुम्हें सिर्फ निमित्त बनना है । मानो तू केवल दिखेगा, मारता हुआ, मार तो मैंने पहले ही दिये हैं। ‘ऐसा गहन उपदेश गीता जी का ! ‘

जीवन का शुभारम्भ अच्छे, समझदार एवं श्रेष्ठ साधक कहाँ से करते हैं ? भगवान को साथ लेकर। आती रहें  मुसीबतें आते रहें दुःख । किसे परवाह है ? दुख दूर करने
वाला तो साथ बैठा है न! उसके होते हुए दुख है तो और कौन दुख दूर करेगा ? सर्व संकटहारी साथ है। संकट आते रहेंगे, जाते रहेंगे, उसको कुछ फर्क नहीं पड़ता । यहीं समाप्त करने की इजाजत दीजियेगा ।

‘दीनबन्धु दीनानाथ मेरी डोरी तेरे हाथ । ‘