व्यास पूर्णिमा-विक्रम सम्वत् 2080

Shree Ram Sharnam Gwalior

श्री राम शरणम्

राम सेवक संघ, ग्वालियर

ध्यान की महत्ता

07th May 2024

॥ श्री राम ॥

ध्यान की महत्ता

ध्यान- ध्यान के लिए एक समय, एक स्थान, एक आसन निश्चित होना चाहिए। दीक्षा के समय यह वचन लिया जाता है कि ध्यान- जाप नित्य करते रहेंगे। गीता जी में ध्यान योग पर एक अध्याय लिखा गया है। उसमें ध्यान की प्रक्रिया समझाने हेतु श्लोक में सर्वप्रथम ‘शुचि’ शब्द आया है। शुचि अर्थात् ‘पवित्रता’। ध्यान में हम अन्दर से पवित्र होते जाते हैं। कई जन्मों के पाप-कर्म कटते जाते हैं। वासनायें दूर होती जाती हैं। संचित-कुसंस्कार दूर होते जाते हैं। शान्ति व पवित्रता मिलती है।
  • इसी जीवन में शान्ति मिले, पवित्रता मिले, धर्म में, कर्म में, जीवनयापन करें। आगे मोक्ष मिलेगा, परम- शान्ति लाभ होगी कि नहीं यह किसने देखा है ? इसी जीवन में हम शान्त या पवित्र रहें, इतना ही काफी है।
  • जो साधक कर्तव्य नहीं निभाता है वह राम की दृष्टि में फेल हो जाता है। अतः अपने सभी कर्तव्य निपुणता से निभाना है। इसके लिये बल ‘ध्यान’ से मिलेगा।
  • पवित्रता, शान्ति तथा बल प्राप्त करने का सरलतम, श्रेष्ठतम और अति प्रभावशाली साधन ‘ध्यान’ है।
ध्यान में लाभ प्राप्त करने के लिए-
  • हम जितनी कामनाओं को छोड़ेंगे, उतना ही अधिक ध्यान लगेगा।
  • जितनी अपेक्षाएँ कम करेंगे, उतना ही अधिक ध्यान लगेगा।
  • जितनी व्यक्ति या वस्तु से आसक्ति (मोह) कम करेंगे, उतना ही ध्यान अधिक लगेगा।
  • जितना द्वेष ईर्ष्या, वैर-विरोध कम होगा, उतना ही ध्यान अधिक लगेगा।

‘ध्यान’ राम कृपा प्राप्त करने का समय है। हमें उस समय ग्रहणशील बनना है। इस समय हमारा :

(i) पात्र उल्टा न रखा हो, (ii) पात्र छोटा भी न हो, और (iii) पात्र भरा भी न हो।

अतः अपना पात्र सीधा, बड़ा, खाली रखो, राम-कृपा तभी भरी जायेगी।
पूज्यश्री (डॉ.) विश्वामित्र जी महाराज (हरिद्वार, 2003)
[राम सेवक संघ, ग्वालियर के वरिष्ठ साधक की धरोहर से]
प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ, ग्वालियर