॥ श्री राम ॥

नाम जाप : आध्यात्मिक तप एवं लोक-परलोक का साथी

■ नाम-जाप करना आध्यात्मिक तप है। जितना अधिक जाप होगा, उतना ही अधिक आत्मा निर्मल होगा। जाप बड़ी भावना के साथ करना चाहिये। इससे साधक के संस्कारों पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
■ जब स्वयं अजपा जाप चलता है, वाणी से नहीं, जीभ से भी नहीं, स्वयं मानसिक जाप होता जाता है, तब अविद्या की ग्रन्थी टूट जाती है और दशम-द्वार से पार होकर साधक का परम- कल्याण हो जाता है।
■ जाप से सिद्धि प्राप्त होती है। स्त्री-पुरुषों में नाम-जाप करने की भावना प्रबल होनी चाहिये। इससे संकट शीघ्र कट जाते हैं तथा सौभाग्य बनता है।
∎ राम-नाम के जपने वाले काल को भी हनन कर डालते हैं। यह भाव ऊंचा और श्रेष्ठ है।
■ राम भक्त का नाश कभी नहीं होता। यदि अवधि पूरी हो गई है, तो भले ही शरीर छूटे। साधक के मन में निर्भयता, निडरता होनी चाहिये, तब लाभ होता है। इससे मनोबल तथा वाणी बल बढ़ता जाता है।
■ साधक के हृदय मन्दिर में राम-धुन गूंजने लगे, तो साधक भव-सागर से पार हो जाता है। राम-मन्दिर में जाने की सीढ़ी तो राम-नाम है।
■ राम-नाम जपने वाले को राम-धाम मिलेगा। सदा ज्योति जाग्रत रहेगी। राम-धुन खूब रमाओ। इतना राम-नाम बस जाये कि पहाड़ के पानी के समान अपने-आप रिसने लगे।
■ साधक की उंगलियाँ माला के ऊपर नृत्य करें, भक्त के कान कीर्तन सुनते हुये नृत्य करें, जीभ हरि-कीर्तन करती हुई नृत्य करे और मन व उंगली राम-नाम की माला जपते रहें।

राम-जाप दे आनन्द महान्, मिले उसे जिसे दे भगवान् ।

प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ, ग्वालियर