व्यास पूर्णिमा-विक्रम सम्वत् 2080

Shree Ram Sharnam Gwalior

श्री राम शरणम्

राम सेवक संघ, ग्वालियर

नाम निरूपण

10th Jun 2023

नाम निरूपण

नाम निरूपण अर्थात् नाम की महत्ता का बोध । नाम क्या है? इसमें क्या शक्ति है ? क्या गुण है ? यह समझना ही नाम निरूपण है। सामान्य व्यक्ति नाम की महिमा का महत्व नहीं समझ पाते हैं, इसीलिए उनके विचारों में यथेष्ट परिवर्तन नहीं हो पाता है और उन्हें नाम आराधना का पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं हो पाता है। लेकिन जब वे किसी नाम- विशेषज्ञ की शरण में जाकर ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, तब वे उस नाम का मूल्य समझ पाते हैं। इस प्रकार नाम-निरूपण से, नाम की महिमा जानकर विचार परिवर्तन होता है। श्री स्वामी जी महाराज ने अपने अवतरित लघु ग्रंथ ‘अमृतवाणी’ में नाम निरूपण (राम नाम) की महत्ता सरल एवं सरस वाणी में गायी है। साधनकाल में साधक को नाम जपते हुए परमात्मा का भी निरूपण करना चाहिए। श्री स्वामी जी के अनुसार-

परमकृपा स्वरूप है, परम प्रभु श्रीराम, जन पावन परमात्मा, परम पुरुष सुखधाम ॥ सुखदा है शुभा कृपा, शक्ति शांति स्वरूप, है ज्ञान आनंदमयी, रामकृपा अनूप ॥
प्रत्येक साधक को अपने इष्ट को अर्थात् परम पुरुष परमात्मा श्रीराम को कृपास्वरूप, शांतिमय, सर्वसमर्थ, सर्वशक्तिमान् सर्वत्र विद्यमान व समस्त गुणों का भण्डार एवं शक्ति, ज्ञान व आनंद का केन्द्र समझना चाहिए और ध्यान करते समय साधक को अपने इष्ट के इन गुणों को विचार एवं चिन्तन में रखकर साधना करनी चाहिए। श्री स्वामी जी महाराज ने भक्ति प्रकाश में कई स्थलों पर उक्त विधि का निर्देशन किया है। इसी प्रकार पूज्य श्री महाराज जी ने भी ध्यान के समय कई प्रवचनों में कथन किया है। श्री स्वामी जी महाराज ने निम्न दोहों में नाम निरूपण को स्पष्ट किया है-

परम पुण्य प्रतीक है, परम ईश का नाम । तारक मंत्र शक्तिघर, बीजाक्षर है राम ॥

साधक साधन साधिये, समझ सकल शुभ सार । वाचक वाच्य एक है, निश्चित धार विचार ॥

मंत्रमय ही मानिये, इष्ट देव भगवान। देवालय है राम का, राम शब्द गुण खान।।

जिस प्रकार समस्त ऐश्वर्य, शक्ति, ज्ञान व आनंद आदि निधियों का केन्द्र मेरा इष्ट है उसी प्रकार मेरे इष्ट का नाम (राम-नाम), उन समस्त शक्तियों का केन्द्र, उनका अक्षय भंडार व उनका निवास स्थान है। जो ऐश्वर्य, जो शक्ति, जो ज्ञान व जो आनंद मेरे इष्ट में है, वही शक्ति, वही ज्ञान, वही आनंद व वही समस्त ऐश्वर्य मेरे इष्ट के नाम में भी है। अतः साधक ध्यान काल में अपने विचारों में, चिंतन में और धारणा में ऐसे ही भावों का सतत् मनन करता रहे। तभी उसकी साधना सफलीभूत होगी।

बीजाक्षर है राम- बीजाक्षर अर्थात् ‘राम’ शब्द में र्अ म ये बीजाक्षर हैं। ‘र’ अग्नि का बीज है, ‘अ’ भानु (सूर्य) का बीज है और ‘म’ चन्द्र का बीज है। अग्नि (कृशानु) में दाहकता है जो पाप-कर्म को जलाती है। यह कर्मयोग है।

भानु में प्रकाश है, जो अज्ञान को मिटाकर बोध प्रदान करता है। यह ज्ञान योग है और चन्द्र (हिमकर) में शीतलता है, जो शांति व अखण्ड सुख प्रदान करता है, यह भक्ति योग है। इस प्रकार राम- नाम कर्म योग, ज्ञान योग व भक्ति योग तीनों का हेतु है। अर्थात् यह शरणागति तत्त्व है और प्रेम योग है। जो तीनों योगों का सार है। ‘राम’ शब्द में ब्रह्मा, विष्णु और महेश अर्थात् त्रिदेव समाये हुए हैं। ‘र’- ब्रह्मा- शक्ति का देवता है जो संसार का निर्माण करता है। ‘-विष्णु- आनंद का देवता है, जो पालन करता है। ‘अ’- – शिव- ज्ञान का देवता है। जो संहार करता है। ‘म’-

“लय उत्पत्ति पालना रूप,

शक्ति चेतना आनंद स्वरूप ॥” – अमृतवाणी

इस प्रकार राम-नाम शक्तिमय आनंदमय और ज्ञानमय है। अतः उक्त भावों सहित नाम निरूपण साधकों को हृदयंगम करना चाहिए अन्यथा दीर्घकालीन नाम जप के बावजूद भी उसके त्रिताप मिटते हुए नजर नहीं आयेंगे। परन्तु यहाँ पर ही साधक ऐसी भूल कर जाते हैं जो प्रायः उनके जीवन में नाम का चमत्कार नहीं होने देती। नाम जप व ध्यान के संबंध में भूल यह हो जाती है कि साधक अपने इष्ट में व उसके नाम में अभेद दर्शन नहीं कर पाते। वे यह नहीं समझ पाते कि नाम व नामी में कोई अन्तर नहीं, वे एक ही हैं जैसा कि स्वामी जी महाराज ने कहा है कि- “राम नाम में ‘राम’ को सदा विराजित जान ||”

जिस प्रकार आग के पास बैठने से गर्मी व बरफ के पास बैठने से ठण्डक का प्रवाह स्वतः ही हमारी ओर आकर हमको भी तदनुकूल अपने प्रभाव से युक्त कर देता है। उसी प्रकार नाम के पास बैठने से भी अर्थात अपने अन्तःकरण में उसके स्मरण करने से और ध्यान करने से स्वाभाविक रूप से नाम की समस्त शक्तियों, ऐश्वयों व उसकी कृपा का प्रवाह मेरी ओर हो रहा है, ऐसा अनुभव होता है। साधक उपर्युक्त प्रकार से नाम के सामर्थ्य का दर्शन कर लेने के बाद फिर प्रत्येक स्तर पर सुख की प्राप्ति के लिए नाम का ही सहारा पकड़ते हैं व नाम को इष्ट के समान ही प्यार करते हैं। नाम को छोड़कर अन्य किसी का सहारा नहीं पकड़ते और न ही किसी को प्यार करते हैं। विचार व भावना दृढ़ हुए बिना नाम की प्रतिक्रिया जीवन में नहीं हो पाती।

एक भूल साधक यह भी करते हैं कि वे नाम जप में ही पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं. नाम में डूबते नहीं। पूज्य श्री महाराज जी के अनुसार ध्यान करते समय साधक को गहन ध्यान में जाना चाहिए। इस अवस्था को लाने का प्रयास साधक नहीं करते। नाम पर मन की पूर्ण एकाग्रता हो जाने के बाद साधक नाम की ही चेतना में डूब जाता है। मनु के अनुसार ध्यान की चरम अवस्था चित्तवृत्ति निरोध या मन का निर्विषय हो जाना है। यही नाम जप व ध्यान की पूर्णता है। ऐसी अवस्था आने के उपरान्त नाम की शक्तियों एवं ऐश्वर्यो व गुणों का संचार साधक में होने लगता है। नाम के प्रताप से ही साधक स्वास्थ्य, शक्ति, सुख, ज्ञान, आनंद व शांति का अनुभव करता है।

नाम निरूपण, नाम जतन ते। सोई प्रकटत ज्यों मोल रतन ते ।। -संत गोस्वामी तुलसीदास

नाम-जप के संबंध में अधिक स्पष्टीकरण हीरे के उदाहरण से हो जाता है। जैसे किसी के पास हीरे के मौजूद होने के बावजूद भी उसको यदि इसके अस्तित्व का बोध व इसके मूल्य की जानकारी नहीं है तो उसके जीवन में बाहरी अभाव व भीतर दीनता बनी रहेगी। परन्तु यदि किसी के द्वारा उसे हीरे के अस्तित्व व उसके मूल्य की जानकारी करा दी जावे तो भीतर की दीनता, जानकारी प्राप्त करते ही तुरन्त मिट जायेगी व कालान्तर में हीरे का मूल्य प्राप्त करके बाहर के अभाव भी मिट जायेंगे।

राम नाम आराधिये, भीतर भर ये भाव । देव दया अवतरण का, धार चौगुना चाव ॥

उपर्युक्त भावों को अपने मन में, विचारों में व चिन्तन में रखकर राम-नाम का आराधन व ध्यान करना चाहिए तभी परमात्मा की असीम कृपा प्राप्त होगी।