परम गुरु जय जय राम
07th Jul 2023परम गुरु जय जय राम
पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने इस धुन में परमात्म-देव राम को ही परम-गुरु कहा है। पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज का कथन है- भगवान ही युग-युग में गुरु रूप धारण करते हैं और आस्तिकवाद को बनाये रखते हैं। इसलिए परम गुरु राम ही है। अर्थात् श्री स्वामी जी महाराज ने परमात्मा श्रीराम को ही परम – गुरु स्वीकारा और आगे ‘परम गुरु जय जय राम’ गाया। (प्रवचन पीयूष)
श्री स्वामी जी महाराज अपना कोई स्मारक नहीं चाहते थे। वे चाहते थे परमात्मा श्रीराम से साधकों का सीधा सम्बन्ध हो । श्री स्वामीजी महाराज के अनुसार आचार्य का स्थान बहुत बड़ा है पर वह ईश्वर नहीं है। जब कोई महात्मा, चाहे वह कितना बड़ा हो, यदि परमात्मा तथा मनुष्य के मध्य में खड़ा हो जाए तो सैमेटिक मत के अनुसार वह असुर बन जाता है व उसकी पदवी गिर जाती है। आचार्य का स्थान पिता व माता के समान आदरणीय, उससे भी अधिक है, किन्तु वह परमात्मा नहीं होता। गुरु का काम होता है कि आत्मा की प्रवृत्ति को परमात्मा की ओर मोड़ दे और उसके साथ जोड़ दे। (प्रवचन पीयूष)
पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज को परमात्मा ने परम-धाम से राम-शब्द, राम-मंत्र प्रदान किया। अतः श्री स्वामी जी महाराज ने इस धुन में परमात्म-देव को परम गुरु कहा है, न कि गुरु को परमात्मा माना है।
व्यास पूर्णिमा 20.06.1955 पर श्री स्वामी जी महाराज का संदेश-
“हमारा परम लक्ष्य सर्वशक्तिमान एकैवाद्वितीय परम पुरुष, दयामय, दयालु, देवाधिदेव श्रीराम हैं। वह परम गुरु है। उस परम गुरु का पुण्य प्रतीक परम पावन ‘श्रीराम-नाम’ है। इसका कीर्तन, जप, पाठ, आराधना ही, परम गुरु की पर्व के दिन पूजा है। यही परम कल्याण का मार्ग है। इसको बड़े भाव-चाव से करना चाहिए।” (प्रवचन पीयूष)
पूज्यश्री (डॉ.) विश्वामित्र जी महाराज का व्यास पूर्णिमा पर प्रवचन (हरिद्वार 21.07.2002)- “श्री स्वामी जी महाराज ने भी इस दिन परमेश्वर की आराधना करना ही बताया और ‘परम गुरु जय जय राम’ गाया। हमारे यहाँ गुरु को मार्गदर्शक कहते हैं। हमारे यहाँ गुरु-पूजा नहीं की जाती है। उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है। पुष्प अर्पण कर हम अपने-आपको रिझाते हैं। शिष्य गुरु-तत्व की पूजा करें।”
एक बुद्धिजीवी साधक के विचार-
““परम पूज्य श्री स्वामी जी महाराज ने धुन लगाई- ‘परम गुरु जय जय राम’ अर्थात् परम गुरु श्रीराम जी की जय जयकार हो । पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज तथा परम पूज्यश्री प्रेमजी महाराज व पूज्यश्री (डॉ.) विश्वामित्र जी महाराज कभी भी न तो अपने को गुरु मानते थे, न मनवाते थे, न ही कहलवाना पसंद करते थे। वे सदा परमेश्वर श्रीराम को ही सबका गुरु कहते थे। किसी को अपना शिष्य नहीं कहते थे, सबको वे अपना प्यारा मित्र मानते थे।”
परमात्मदेव, सर्वशक्तिमान (Supreme Power) ने कृपा कर राम-नाम की दीक्षा, पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज को प्रदान की।
अतः श्री स्वामी जी महाराज ने उस परमात्मदेव राम को ही परम गुरु माना था तथा गाया – *परम गुरु जय जय राम*
अर्थात जो परम गुरू है, उस राम की जय हो, परम गुरू राम की जय हो ।