व्यास पूर्णिमा-विक्रम सम्वत् 2080

Shree Ram Sharnam Gwalior

श्री राम शरणम्

राम सेवक संघ, ग्वालियर

‘परम सत्य परम विज्ञान’ [प्राण प्रतिष्ठा-3]

12th Feb 2024

‘परम सत्य परम विज्ञान’

‘नाद’

[वैज्ञानिक विश्लेषण]

नाम नाद उत्तम कहा, ऊँचा है वह धाम । अतिशय मधुर सुरस सना, नाद राम ही राम ।।
पूज्यपाद श्रीस्वामी जी महाराज को परमात्म- साक्षात्कार के समय ‘ब्रह्मनाद’ सुनाई दिया जिससे उन्हें राम-नाम की प्राप्ति हुई। रिकॉर्डेड नाम-दीक्षा के प्रवचन में जो आवाज है वह वैज्ञानिक दृष्टि से ‘नाद’ नहीं है। ‘नाद’ एक प्राकृतिक ध्वनि होती है।
‘विज्ञान नाद नकारं प्राणमामानं दकारमनलं विदुः
जातः प्राणाग्निसयोगात्तेन नादोभिधीयते ।’
(-संगीत रत्नाकार १ । ३७६)
अर्थात् ‘नकार’ प्राण-वाचक (वायु-वाचक) तथा `दकार’ अग्नि-वाचक है। अतः जो वायु और अग्नि के योग (सम्बन्ध) से उत्पन्न होता है, उसी को नाद कहते हैं।
‘आहतो नाहतश्चेति द्विधा नादो निगद्यते । सोय प्रकाशते पिडे तस्तापिडोभिधीयते ।।’
(-संगीत रत्नाकार १।२।३)
अर्थात् नाद दो प्रकार के जाने जाते हैं- आहत तथा अनाहत। ये दोनों पिंड (देह) में प्रकट होते हैं। अनाहत नाद की परिभाषा है- वह नाद जो बिना संघर्ष के स्वयंभू रूप से अथवा स्वतः ही प्रकृति में उत्पन्न होता है। उसे अनाहत नाद कहते हैं।
‘सुनते राम अनाहद तान’
अनाहद तान-जिव्हा के अग्र में प्रकट होने वाली बैखरी, कंठ में मध्यमा, हृदय में पश्यन्ती और नाभि मण्डल में प्रकट होने वाली वाणी, परावाणी कहलाती है। पश्यन्ती (हृदय में प्रकट होने वाली) के नाद को अनाहद या अनहद नाद कहते हैं। (अमृतवाणी व्याख्या)
नाद के विषय में भक्ति प्रकाश के ‘पाठ-समाधि’ में भी पूज्यश्री स्वामी जी महाराज ने समझाया है।
‘लोहार की खाल सांस लेती दिखाई देती है, वायु को अन्दर ले जाती है और बाहर निकालती है, भट्टी जल रही है, लोहा पिघल रहा है, सभी काम होते दिख रहे हैं, परन्तु अन्त में वह खाल, खाल ही है, प्राण नहीं है।’ (परमात्म-मिलन)
रिकॉर्डिंग नाम-दीक्षा क्यों शास्त्रानुकूल नहीं है ?
पश्यन्ती वाणी (हृदय से निकली वाणी) प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होती है। भावपूर्ण होती है। रिकॉर्डिंग यंत्र Man made device (मानव निर्मित यंत्र) में power supply, electronic device तथा storage device इत्यादि की आवश्यकता होती है। यदि इसमें से एक भी वस्तु में रूकावट आ जाए या वो खराब हो जाए तो यह कार्य क्रियान्वित नहीं हो सकता। रिकॉर्डेड आवाज में व्यक्ति की पहचान तो है परन्तु व्यक्ति की शक्ति नहीं होती।
पूज्यश्री (डॉ.) विश्वामित्र जी महाराज कहा करते- शक्ति के बिना शिव भी शव की तरह चेतना-शून्य माना गया है।
According to Acoustics, रिकॉर्डिंग आवाज को sound कहा जाता है क्योंकि यह एक जड़-पदार्थ से उत्पन्न होने वाली आवाज है। जबकि किसी जीवित, चेतन प्राणी से निकली आवाज voice कहलाती है। अतः रिकॉर्डेड sound (आवाज) को voice (जीवन्त वाणी) नहीं कहा जा सकता।
According to Biophysics, A recorded sound is simply a sound wave which is a reproduction of the voice of a real person or an object. There is no life or consciousness in the recorded sound. (रिकॉर्ड की हुई आवाज केवल एक ध्वनि तरंग है जो किसी वास्तविक व्यक्ति या वस्तु की आवाज का प्रतिकार है। रिकॉर्ड की हुई आवाज में कोई प्राण तथा चेतना नहीं होती है।)
■ मंत्र अखण्डित होना चाहिए। जैसे खण्डित मूर्ति पूजा योग्य नहीं होती ऐसे ही खण्डित मंत्र नाम-दीक्षा के लिए परिपूर्ण नहीं माना जाता।
■ राम-नाम यदि टेपरिकॉर्डर में भर दिया जाये और उसे एक ओर रखकर दिनभर चलाया जाये तो क्या वह जाप/सिमरन कहलाता है ? इसी प्रकार शब्द को रिकॉर्ड कर दिखाकर-सुनाकर नाम मंत्र दीक्षा नहीं दी जा सकती।
■ आश्रम में अथवा घर में बोलकर-गाकर किये गये अमृतवाणी पाठ से सात्विक तरंगें उत्पन्न होती हैं तथा एक दिव्य मंडल (aura) प्रकट होता है। ऐसा सभी साधक अनुभव करते हैं तथा लाभान्वित होते हैं। पूज्यश्री (डॉ.) विश्वामित्र जी महाराज अपने प्रवचन में बताते हैं-
‘कुछ साधक कार में अमृतवाणी की सी.डी. लगाकर ऑफिस जाते में सुनते हुए सोचते हैं कि हमारा पाठ पूर्ण हो गया। उससे क्या, कितना और कब लाभ हो परमेश्वर ही जाने ! रिकॉर्ड सुनने में कोई बुराई नहीं लेकिन पाठ स्वयं अपने मुख से करना चाहिए।’
इसी प्रकार भजन गाकर, सुनकर जो भाव उत्पन्न होते हैं और अश्रुधारा बहती है, रोमांच होता है, उसी भजन की रिकॉर्डिंग सुनकर वह भाव की अनुभूति नहीं होती।
जब रिकॉर्ड चलाना/सुनना साधना नहीं कहलाता है तो साधना की प्रारम्भिक सीढ़ी नाम- दीक्षा रिकॉर्ड द्वारा कैसे सम्भव है ?
साधक का जन्म ही नाम-दीक्षा से होता है। नाम-दीक्षा सारगर्भित प्रक्रिया है। वह रिकॉर्डिंग शब्दों से कैसे फलीभूत हो सकती है ? नाम कैसे स्थापित हो सकता है ? आत्म-जागृति कैसे हो सकती है ? कतई नहीं।
यही इसका वैज्ञानिक विश्लेषण है। इति सिद्धम् ।
क्रमशः…
[भारत के प्रतिष्ठित संस्थानों IIT Roorkee, IISC Bengaluru के Research Scholars,
अध्यात्म-विज्ञान के बुद्धिजीवी तथा राम सेवक संघ के सहयोग से ]