व्यास पूर्णिमा-विक्रम सम्वत् 2080

Shree Ram Sharnam Gwalior

श्री राम शरणम्

राम सेवक संघ, ग्वालियर

‘प्राण-प्रतिष्ठा’ [भाग-1]

27th Jan 2024

‘प्राण-प्रतिष्ठा’

[भाग-1]

22 जनवरी, 2024 के दिन हम सभी ने अयोध्या के ‘राम मन्दिर’ में भगवान श्रीराम के साकार रूप की प्राण- प्रतिष्ठा का अद्वितीय कार्यक्रम देखा। ‘प्राण-प्रतिष्ठा’ का अर्थ है- प्राण अर्थात् जीवन, प्रतिष्ठा अर्थात् स्थापित करना। मन्दिर में विधिपूर्वक जीवन्त मंत्रोच्चारण कर भगवान राम की मूर्ति की प्राण- प्रतिष्ठा की गई। सारी प्रक्रिया जीवन्त थी, रिकॉर्डेड नहीं। यह परमात्मा के सगुण साकार रूप की प्राण- प्रतिष्ठा की पूर्णतया वैज्ञानिक विधि है।

अब हम समझते हैं पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज की सगुण निराकार उपासना पद्धति में प्राण-प्रतिष्ठा का क्या अर्थ है ?

पूज्यश्री स्वामी जी महाराज ने वेदों, उपनिषदों का अध्ययन कर सन् 1925 के पूर्व लिखित पुस्तक, जिसका संकलन ‘परमात्म-मिलन’ में है, इस सन्दर्भ में लिखा है-
‘आत्मा का बल वही परमात्मा है। ऐसा क्यों है, इसलिए कि आत्मा एक चेतन वस्तु है, आत्मा जीवन है। एक चेतन वस्तु को जड़-वस्तु से बल नहीं मिला करता। जड़ पदार्थों की पूजा से आत्मा को कदापि बल प्राप्त नहीं हो सकता, प्रत्युत् चेतन परमात्मा से ही बल मिल सकता है। क्योंकि यह ईश्वरीय नियम है कि जहाँ जीवन होता है वहाँ से ही दूसरों को जीवन मिला करता है, जहाँ शक्ति होती है वहाँ से ही दूसरों को शक्ति मिला करती है। जड़ पदार्थों में जब जीवन ही नहीं है तो उनकी पूजा करके एक चेतन आत्मा कैसे जीवन पा सकता है ? इसको क्या बल या ढाँढ़स मिल सकता है ? कुछ भी नहीं।’
‘जिस प्रकार हमारे सत्संग में नाम दिया और लिया जाता है, यह रहस्यवाद है और इस विधि में ‘राम नाम’ एक जाग्रत, चैतन्य मंत्र होता है जो साधक के अन्तःकरण में स्थापित किया जाता है।’ (उपासक का आन्तरिक जीवन)
‘सन्त शैली में साधक को नाम देना साधन-सम्पन्न की दृष्टि में उसके आत्म-भाव को जाग्रत करना है। उसकी प्रसुप्त शक्ति को जगा देना है और उसकी अविद्या की ग्रंथि को भेदन कर, उस पर पड़े माया के आवरण को उठाकर, उसकी चेतना को चैतन्य बनाना है।’ (प्रार्थना एवं उसका प्रभाव)
पूज्यश्री स्वामी जी की सगुण निराकार (राम-नाम) की नाम-दीक्षा पद्धति भी पूर्णतया वैज्ञानिक है। जैसे मन्दिर में मूर्ति की स्थापना करके प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है वैसे ही अन्तःकरण में नाम मूर्ति की स्थापना करना ‘दीक्षा’ कहलाता है। यह विधि वेद-शास्त्र सम्मत, सत्य आधारित, पूर्णतया वैज्ञानिक तथा मुनिजन अनुभूत प्रमाणित विधि है।
मंगल मूर्ति नाम में, मानव मंगल काज।
प्रकट विभूति शक्ति से, हो राम महाराज ।।
(भक्ति-प्रकाश)
जैसे रिकॉर्डेड मंत्रोच्चारण से सगुण साकार मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा नहीं हो सकती ऐसे ही रिकॉर्डेड यंत्र चलाकर सगुण निराकार परमात्मा का नाम मंत्र (शब्द) मन-मन्दिर में स्थापित नहीं किया जा सकता। वेद- शास्त्रों तथा उपनिषदों में अंकित इस जीवन्त प्रक्रिया का कोई विकल्प सम्भव ही नहीं।
पूज्यश्री स्वामी जी महाराज ने वेद-शास्त्र सम्मत प्राण- प्रतिष्ठा पद्धति को ही ‘नाम-दीक्षा’ विधि में अपनाया। इस ‘नाम-दीक्षा’ पद्धति में पहले मंत्रोच्चारण कर परमात्मा  का आव्हान करके ही मन-मन्दिर में ‘नाम’ मूर्ति स्थापित की जाती है। पूज्यश्री प्रेम जी महाराज तथा पूज्यश्री (डॉ.) विश्वामित्र जी महाराज ने भी इसी अनुसार मंत्रोच्चारण कर परमात्मा का आव्हान कर विधिवत नाम दीक्षा दी। -एक वरिष्ठ साधक