पूज्यश्री प्रेम जी महाराज के निर्वाण दिवस (29 जुलाई) पर विशेष
29th Jul 2024
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‘बीज-अक्षर महाशक्ति-कोष’ (‘नामोपासना’ सत्संग शिविर पर विशेष)
30th Mar 2024‘बीज-अक्षर महाशक्ति-कोष’
(‘नामोपासना’ सत्संग शिविर पर विशेष)
नाम-ध्यान तथा नाम योग बहुत ही लाभदायक, शीघ्र सिद्धिकारी, अल्पकाल में सफलता का दाता तथा थोड़े प्रयत्न से ही आत्मा को जगा देने वाला, सुगम ध्यान और सहज योग है। इस योग में साधक अपने परमेश्वर के समीप होता है। वह उसी अनन्त हरि का आव्हान करता है और समाधि काल में उसी में लयता लाभ कर लेता है।
बीजाक्षर है राम
बीजाक्षर अर्थात् ‘राम’ शब्द में र् अ म ये बीजाक्षर हैं। ‘र’ अग्नि का बीज है, ‘अ’ भानु (सूर्य) का बीज है और `म’ चन्द्र का बीज है। अग्नि (कृशानु) में दहकती है जो पाप-कर्म
को जलाती है। यह कर्मयोग है। भानु में प्रकाश है, जो अज्ञान को मिटाकर बोध प्रदान करता है। यह ज्ञान योग है और चन्द्र (हिमकर) में शीतलता है, जो शान्ति व अखण्ड सुख प्रदान करता है, यह भक्ति योग है। इस प्रकार राम-नाम कर्मयोग, ज्ञानयोग व भक्तियोग तीनों का सेतु है। अर्थात् यह शरणागति तत्व है और प्रेम योग है जो तीनों योगों का सार है।
‘राम’ शब्द में ब्रह्मा, विष्णु और महेश अर्थात् त्रिदेव समाये हुए हैं।
- र- ब्रह्मा- शक्ति का देवता है जो संसार का निर्माण करता है।
- अ-विष्णु- आनंद का देवता है, जो पालन करता है।
- म- शिव- ज्ञान का देवता है. जो संहार करता है।
‘नामोपासना’ एक वैज्ञानिक सूक्ष्म प्रक्रिया है। इस उपासना पद्धति द्वारा ही आत्मा-परमात्मा का मिलन होता है। साधक आत्मिक प्रसन्नता व शान्ति का उत्तरोत्तर लाभ प्राप्त करता है। विधिपूर्वक नामोपासना द्वारा साधक पर राम- कृपा का अवतरण होता है। मन निर्मल होता जाता है, विवेक जाग्रत होता है। एकाग्रता का लाभ मिलता है। समता भाव आने लगता है एवं सुख, शान्ति व आनन्द की अनुभूति होती है। साधना प्रेमपूर्वक व भावपूर्ण होनी चाहिए।
पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज की साधना पद्धति निराकार-नामोपासना की है। इसी पद्धति के अन्तर्गत नामोपासना सत्संग शिविर में साधकों ने नाम-ध्यान, नाम-जाप, श्री रामायणसार पाठ, भजन-संकीर्तन तथा स्थितप्रज्ञ के लक्षणों का स्वाध्याय कर आध्यात्मिक लाभ प्राप्त किया।
पूज्यश्री महाराज जी के ‘नाम उपासना’ पर प्रवचन, आचार्य श्री (डॉ.) उमाशंकर पचौरी के व्याख्यान तथा सुश्री (डॉ.) ज्योत्सना दीदी द्वारा उपासक का आन्तरिक जीवन कैसा होना चाहिए तथा आध्यात्मिक समस्याओं का निराकरण कर साधकों का मार्गदर्शन किया। इस शिविर में सम्मिलित साधकों ने यह अनुभव किया-
ईश्वर का परम पावन राम-नाम ही उत्तम तीर्थ है। इसके जाप से, चिन्तन से, कीर्तन से तथा ध्यान से ही मनुष्य संसार सागर से तर जाता है।
प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ, ग्वालियर