सत्संग के लिये क्यों जायें ? सत्संगति जीवन में क्यों अनिवार्य है ?
23rd Jun 2023सत्संग के लिये क्यों जायें ? सत्संगति जीवन में क्यों अनिवार्य है ?
(पूज्यश्री डॉ. विश्वामित्र जी महाराज की वाणी)
किसी वस्तु, व्यक्ति, स्थान, विचार अथवा परिस्थिति के संग को, जो हमें पाप में प्रवृत करे व परमेश्वर से विमुख करे, कुसंग कहा जाता है। युवक-युवतियाँ, बच्चे प्रायः इसके चंगुल में फँस जाते हैं।
कुसंग से बचे रहने का साधन है- सत्संग । इसमें फँसे हुये का निकलने का ढंग है- सत्संग । अध्यात्म में प्रवृत करने का अमोघ एवं अनमोल उपाय है- सत्संग।
सत्संगति मोक्ष प्राप्ति अर्थात् जन्म-मरण के चक्र से छूटने तथा प्रभु-प्राप्ति के लिए हृदय में तड़प पैदा करती है। सत्संगति शान्ति की दाता है । सुख-
एक व्यक्ति बाजार गया। फल-सब्जी की दुकान पर एक रसीला पका हुआ, अद्भुत से बड़े आकार का फल देखा। खरीद लिया। दुकानदार से कहा, ‘भारी है, और सामान खरीदकर लौटने पर उसे उठा लूँगा। कोई अन्य व्यक्ति आये, उसी फल के प्रति आकर्षित हुये, मूल्य पूछा, दुकानदार ने कहा, “बिक चुका है, अतः बिकाऊ नहीं है।”इस व्यक्ति ने पूछा, “क्या कोई ढंग है जिससे आधा या पूरा फल खरीदा जा सके ?” दुकानदार ने सुझाव दिया, “यदि जिसने खरीद रखा है, वह मान जाये तो ऐसा सम्भव हो सकता है। ”
ठीक इसी प्रकार परमेश्वर भी भक्तों-सन्तों के हाथों बिक चुका है। यदि कोई अन्य खरीदना चाहे तो उसे भक्त – सन्त की शरण में जाकर निवेदन करना होगा। उन्हीं से मिलेगा प्रभु प्रेम, ज्ञान एवं प्रभु प्राप्ति के लिए आवश्यक साधना का ढंग । यही है सत्संगति, जिसका फल है – राम-कृपा, राम-मिलन ।
जाइए शुभ सत्संग में, करिए निर्मल अंग । श्रद्धा भक्ति सुकर्म की, मन में लाय उमंग ॥
सत्संगति है धर्म की, ज्ञान भक्ति की खान । सेवा पर उपकार की, मेल प्रेम की प्राण ॥ (-भक्ति-प्रकाश)