व्यास पूर्णिमा-विक्रम सम्वत् 2080

Shree Ram Sharnam Gwalior

श्री राम शरणम्

राम सेवक संघ, ग्वालियर

‘सहज परम है योग’-1

03rd Jun 2024

‘सहज परम है योग’-1

‘सहज योग’ क्या है ? ‘नाम स्मरण’ इसका एक मात्र उत्तर है। स्मरण कौन करता है ? इस प्रश्न पर विचार करें। दवा कौन खाता है ? वही जो बीमार है। ज्ञान किसे चाहिए ? उसे जिसे अज्ञान सताता है। सुख किसे चाहिए ? जो दुःखी है। इसी प्रकार स्मरण कौन करेगा? वही जिसे विस्मरण हो जाता है। हमें क्यों विस्मरण हो जाता है ? हम क्यों भूल जाते हैं कि हम कौन हैं ? जिस व्यक्ति को सतत् सदैव यह याद रहता है कि मैं कौन हूँ, संसार से मेरा क्या सम्बन्ध है, जगतपति से मेरा क्या नाता है? उसे स्मरण की कोई आवश्यकता नहीं, लेकिन हमारी स्थिति वैसी नहीं है। हमारा मन वृत्तिमय है। इस चंचल, अस्थिर मन को, जिसमें स्वतः तथा बाह्य वस्तुओं के संसर्ग से अनन्त परिवर्तन आते रहते हैं, राममय बनाने के लिए स्मरण से अधिक अचूक औषध संसार को अभी तक मालूम नहीं है। इसलिए पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज ने श्री अमृतवाणी में परामर्श दिया-
‘औषध राम नाम की खाइये’
यदि मन में चंचलता है तो स्थिरता कहाँ से आएगी ? अगर आप सागर की हिल्लोर तरंगों से डांवाडोल हैं तो क्या आप लंगर लहरों में ही डालेंगे ? नहीं, लंगर तो साहिल (किनारे) से ही बाँधना होगा। क्या साहिल (किनारा) भी लहरों की तरह अस्थिर है ? नहीं। वह दृढ़, स्थिर तथा अचल है। यदि मन की चंचलता नष्ट नहीं होती, तरंगें उठा करती
हैं, फिर हम अपने मन का लंगर कहाँ बाँधें ? संसार भर की दौड़-धूप पर नाव कहाँ बाँधी जाती है ? किनारे से, किनारे के बिना तो नाव की गति नहीं। लेकिन हमारा प्रत्येक प्रयत्न जीवन भर लहरों में ही लंगर डालने जैसा होता है, जिसके कारण हम सदैव अशान्त बने रहते हैं। समुद्र कितना भी उद्दण्ड क्यों न हो, नाव एक बार किनारे पर लाकर अगर लंगर डाल दे, तो उसे समुद्र चाहे कितना भी हिलाए, किनारे से अलग करके उसका नाश नहीं कर सकता। ठीक इसी प्रकार संसार की इस धमाचौकड़ी से अपने को थोड़ी देर के लिए तटस्थ करके प्रभु जो एक रस, शान्त, निर्विकार, अनन्त है, उनके चरणों से हम अपनी जीवन नैया को संयुक्त कर स्मरण करते हैं। यह प्रारम्भिक अवस्था है।
गीता जी के आठवें अध्याय के 14 वें श्लोक में भगवानन्श्री ने स्वयं को ‘सुलभ’ बताया है। किसके लिए ? ‘सतत् यो मां स्मरति नित्यशः’- जो मुझे नित्य स्मरण करता है। सन्त साहित्य में एक और शब्द प्रचलित है- ‘सहज योग।’ गीता जी के उपर्युक्त श्लोक में इसी ओर संकेत किया गया है। सतत् स्मरण से ही योग की उत्पत्ति होती है, इसी का उल्लेख पूज्यश्री स्वामी जी महाराज ने श्री अमृतवाणी में किया है- ‘त्यों मंत्र से योग’ तथा इस योग से ही प्रभु की प्राप्ति सुलभ होती है।
‘सहज परम है योग’ इसी अर्थ को व्यक्त करता है। सहज योग उसे कहते हैं जिसमें श्रम नहीं होता, जिसमें जी नहीं उक्ताता, जिसमें थकान नहीं होती।
क्रमशः
 [राम सेवक संघ, ग्वालियर के वरिष्ठ साधक की धरोहर से]
प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ, ग्वालियर