पूज्यपाद श्रीस्वामी जी महाराज ने माला के संबंध में स्पष्ट और सटीक विचार प्रवचन पीयूष में प्रकट किये हैं, हमारे सत्संग में ऊन से बनी माला का प्रयोग किया जाता है। धार्मिक जगत में चन्दन, तुलसी, रूद्राक्ष की माला का प्रयोग होता है। ऊन की माला शुद्ध मानी गई है। वह हल्की है इस कारण साथ रखने में सरल है। यह किसी भी रंग की हो सकती है।
साधारणतया सत्संग में 108 मनके की माला का प्रयोग किया जाता है, 27 मनके की सिमरनी, 500 मनके की माला एवं 1008 मनके की माला का भी साधक प्रयोग करते हैं।
नाम-दीक्षा के अवसर पर पूज्य श्री महाराज जी द्वारा साधक को माला दी जाती है, जिसपर साधक राम-नाम का जप करते हैं। माला जप में बड़ी सहायक है, इसे भावपूर्वक फेरना चाहिए जिससे जाप में एकाग्रता बढ़ती है एवं जाप में बड़ा मन लगता है।
कर में माला फेरिये, जीभ फिरे मुख बीच ।
आत्मा फिर सब अंग में, अमृत से दे सींच ॥
साधकजनों के लिए माला बड़ा अवलम्बन है। पूज्य श्रीस्वामी जी का कथन है, कि माला से प्रतिदिन दस-बारह हजार राम-नाम का जाप साधक को अवश्य करना चाहिए। पांच मिनिट में एक हजार नाम – जाप की संख्या होनी चाहिए। माला जाप की संख्या गिनने में सहायक है। पूज्य श्री स्वामी जी महाराज ने इस माला को फेरने के लिए बड़ा ही सरल ढंग बताया है। अधिकांशतः साधक दाहिने हाथ से माला फेरते हैं। बायें हाथ से भी माला फेरी जा सकती है, माला किसी भी उंगली से फेरी जा सकती है तथा माला के सुमेरु को भी लांघ सकते हैं। इसमें कोई दोष नहीं है। माला एक औषधि भी है जिससे हस्तलाघव पैदा होता है। साधक की अंगुलियाँ माला के ऊपर नृत्य करने से अंगुलियों में विद्युत शक्ति पैदा हो जाती है। माला संकट-हारिणी, पाप-नाशिनी और सुख- दायिनी है, यह असुरों से भी रक्षा करती है।
माला को बड़े आदर से पवित्र स्थान पर सुरक्षित रखनी चाहिए। यह ध्यान हो कि माला फेरते समय धरती को स्पर्श न करे। माला जेब में रख सकते हैं या हाथ में व गले में भी पहन सकते हैं। माला फेरने में संकोच या लज्जा नहीं आना चाहिए जब हम सिनेमा आदि देखने में लज्जा नहीं करते तो माला फेरने में लज्जा क्यों करें केवल प्रदर्शन का भाव नहीं होना चाहिए।
पूज्य श्रीस्वामी जी का कथन है “जप जपनी हरि नाम की” माला पर जाप करना नहीं छोड़ना चाहिए। साधकों को इसे अपने जीवन का एक परम आवश्यक अंग बना लेना चाहिए । श्रीस्वामी जी अपनी बड़ी आयु में भी प्रतिदिन माला पर जाप किया करते थे। जबकि उन्हें माला फेरने की आवश्यकता नहीं थी, उन्होंने सबके लिए यह आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है।
माला से राम-नाम का जाप भाव से, प्रेम से व एकाग्रता से करना चाहिए जिससे नाम का संस्कार अन्दर बस जाता है और निरन्तर जाप करते रहने की स्थिति प्राप्त हो जाती है, मनोवृत्तियाँ शुद्ध हो जाती है, ऐसा जाप ध्यान में पूर्ण सहायक होता है।
“माला तो कर में फिरे, जीभ फिरे मुख माही ।
मनुआ तो चहुंदिश फिरे, यह तो सिमरन नाहीं ॥
माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर ।
करका मन का डार दे, मन का मन का फेर ।।”