व्यास पूर्णिमा-विक्रम सम्वत् 2080

Shree Ram Sharnam Gwalior

श्री राम शरणम्

राम सेवक संघ, ग्वालियर

हमारे सद् ग्रन्थ

*पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज  द्वारा विरचित ग्रन्थ*

एकादशोपनिषद संग्रह भाषा टीका सहित

ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक, श्वेताश्वतरोपनिषद – ग्यारह उपनिषदों का हिन्दी अर्थ और व्याख्यान |

भक्ति – प्रकाश

जो भावनावान भावुक जन, भागवती भक्ति – भागीरथी में स्नान करने के इच्छुक हैं, जो भक्ति धर्म के मर्म को जानना चाहते हैं, और जो भक्ति योग के सच्चे, सरल, सरस, सुपथ पर चलने के अभिलाषी हैं उनको स्वामी सत्यानन्द – रचित, भक्ति – प्रकाश ग्रन्थ सुमननपूर्वक पढना चाहिए।

अमृतवाणी

ऐसे वचन शब्द समूह, जो अमृत हैं, ऐसे बोल, जो अमरत्व प्रदान करते हैं जो अमर बना देते हैं, ऐसी वाणी जिसके बोलने-गाने से व्यक्ति अमर हो जाता है, वह है- अमृतवाणी।

अमृतवाणी व्याख्या 

 पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा विरचित श्री अमृतवाणी की व्याख्या
 व्याख्याकर्ता – पूज्य श्री (डॉ.) विश्वामित्र जी महाराज

वाल्मीकीय रामायणसार

यदि आप मर्यादा पुरुषोत्तम श्री भगवान रामचंद्र जी के परम पवित्र जीवन – चरित्र का पावन पाठ करना चाहते हैं तो रामायण-सार का पाठ करिये | हिन्दी भाषा के सरस पदों में सचित्र रामायण-सार, एक सर्व सुंदर ग्रन्थ है।

रामायण पर एक ऐतिहासिक दृष्टि

वाल्मीकीय रामायण एक अद्भुत ग्रन्थ है। इसकी रचना-शैली बड़ी रोचक, सुन्दर, अलंकृत, चमत्कारिक और मनोरंजक है। वाल्मीकीय रामायण का प्रभाव भारतवासियों के जीवनों पर, आचारों पर, विचारों पर, कर्मों पर, व्रतों पर, नियमों पर और कल्पनाओं तक पर बड़ा गहरा अंकित, आज तक, स्पष्ट दिखाई देता है। हिन्दुओं के सम्मुख, पितृ पूजन के, बन्धु भावना के, यति सती धर्म के, तप त्याग के, लोक सेवा के, समाज संगठन के, जन संग्रह के, जाति देश हित के, न्याय के और सर्वोत्तम शासन के. आदर्श स्वरूप श्री राम ही माने जाते हैं। हिन्दुओं के समीप, धर्म कर्म के एवं सब शुभ के परम पावन प्रतीक, रामायण वर्णित श्री रामचन्द्र जी ही हैं। बाहर से आये अन्य देशीय संस्कारों को उपेक्षित करके, यदि हिन्दू भावों को, हिन्दू धर्म को तथा हिन्दू संस्कृति को देखा जाय तो वाल्मीकीय रामायण वर्णित पवित्र पात्रों के पुण्य रूप कर्तव्य कर्म ही उनका जी जीवन बने हुए प्रतीत होंगे।

श्रीमद्भगवद्गीता भाषा

यदि आप आनन्दकन्द भगवान श्री कृष्णचंद्र जी महाराज के उपदेशों के सार-मर्म का महामधुर स्वाद लेना चाहते हैं, तो श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा किया गया  *श्रीमद् भगवद् गीता*  का सरल और सरस भाषानुवाद पढ़िये। भगवान् श्री ने श्रीमुख से स्वयं कहा है कि गीता का पाठ करना और उसको सुनना-सुनाना ज्ञान-यज्ञ है, उससे मैं पूजा जाता हूँ । पाठक को चाहिए कि वह एक विश्वासी और श्रद्धावान यजमान बन कर बड़े गम्भीर भाव से इस यज्ञ को किया करे और इसको परमेश्वर का पुण्यरूप परम पूजन ही समझे। इस भावना से गीता का ज्ञान, पाठक के ह्रदय में, आप ही आप प्रकाशित होने लग जाया करता है।

स्थितप्रज्ञ के लक्षण

श्रीमद्भगवद्गीता सारे संसार के साहित्य में एक सर्वसुन्दर ग्रन्थ है। इस परम पावन ग्रन्थ के दूसरे अध्याय के अन्तिम २१ श्लोक स्थिर बुद्धि के लक्षण हैं। इस भाग में स्थिरमति मनुष्य के लक्षण वर्णन किए गए हैं, जो प्रत्येक कार्यक्षेत्र में कार्य करने वाले जन के लिए स्मरण, धारण, आचरण में लाने और जीवन में बसाने योग्य हैं तथा परम उपयोगी हैं, वही भाग इस लघु पुस्तिका में प्रकाशित किया गया है। प्रत्येक नर-नारी को चाहिए कि वे इस भाग के श्लोकों को मननपूर्वक कण्ठाग्र करके प्रतिदिन उनका पावन पाठ किया करें। प्रत्येक कर्मशील और स्वकल्याण के इच्छुकजन को स्थिरमति मनुष्य के लक्षणों के सब श्लोक हृदयंगम अवश्य कर लेने चाहिएं। स्थिरबुद्धि बन जाने से जहां जगत का जीवन उच्च बन जाता है, वहां, भगवान के वचनों में स्थिरबुद्धि जन ब्राह्मी अवस्था को प्राप्त होकर रहता है, उसमें ब्रह्मरूपता समा जाती है।

भक्ति और भक्त के लक्षण

धर्म में भक्ति-भाव, एक बड़ा उत्तम अंग है। श्री भगवान् कृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में, धर्म के सब अंगों के साथ, जीवन को उच्च बनाने के सब साधनों के साथ तथा कर्म-बन्धन और पाप- पाश काटने के सब उपायों के साथ भक्ति को प्रधानता दी है। श्री भगवान् के श्री मुख- वाक्यों से ही, भगवती भक्ति के प्रकार और भागवत भक्त के लक्षण इस पुस्तिका में वर्णित किये गये हैं भगवान् श्री कृष्ण द्वारा प्रदर्शित, भक्त के लक्षण कितने उत्तम हैं, मननशील मनुष्य के मन में यह बात सुगमता से समा सकती है। किसी से द्वेष न करना, दीन-दुःखी जन पर करुणावान् होना, शत्रु तथा मित्र में समदृष्टिपन और परार्थ, अपने निवास स्थान की ममता तक का त्याग, ये ऐसे भक्त लक्षण हैं जो संसार के साहित्य में अपनी उपमा आप ही हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के बारहवें अध्याय के श्लोकों का ही इस में स्पष्टीकरण है। भगवद्भक्तों को बड़े भावपूर्वक इस का मनन, पाठ और आराधन करना चाहिए।

उपासक का आंतरिक जीवन

उपासक का जीवन, आचार, विचार तथा व्यवहार पूज्य श्री स्वामी जी महाराज के कथनों के अनुसार बनाने से अंत में उपासक जन-सेवा के योग्य बन जाता है।

प्रार्थना और उसका प्रभाव

प्रार्थना – पथ-प्रदर्शनी यह लघु पुस्तक, प्रार्थना के प्रेमियों का पथ प्रदर्शन करे, इस उद्देश्य से प्रस्तुत की गई है। प्रार्थना एक प्रकार से मानसिक और शारीरिक दोनों दोषों को दूर करने के लिए अध्यात्म चिकित्सा है। निज सत्ता को स्व चैतन्य भाव को, विमल और विशुद्ध बना देने का, सर्व श्रेष्ठ साधन है तथा भक्ति मार्ग में परम पुरुष के परम धाम में पहुंचा देने का परम उपाय है। इस लघु पुस्तक में वर्णित साधनों को भली प्रकार मनन पूर्वक, पालन करने वाले सज्जन का अपना कल्याण तो अवश्य होगा ही और वह अन्य दुःखी व्यक्तियों को भी सुख शान्ति लाभ कराने में समर्थ हो जायगा ।

भजन एवं ध्वनि संग्रह

पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा रचित भजनों तथा धुनों का संग्रह।

प्रवचन पीयूष

पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के मूल प्रवचनों का सार – संग्रह।

परमात्म-मिलन

पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने बड़ी ही सरल एवं मनोहारिणी शैली में इस व्याख्यान व लेख-संग्रह में ध्यान-योग साधना के विविध अंगों के रहस्य पर प्रकाश डालकर सामंजस्य स्थापित किया है । साधना-पथ के पथिक-जनों के लिए यह विवेचन अत्यन्त उपयोगी है, साथ ही श्रीरामशरणम की शुद्ध विचारधारा के प्रचार-कार्य में भी सहायक रहेगा । प्रस्तुत संकलन सन् १९२५ के पूर्व का है और इसे आंशिक संशोधन तथा परिवर्द्धन करके प्रकाशित किया गया है । इस पुस्तक से साधकों को अध्यात्म ज्ञान तथा व्यावहारिक ज्ञान की प्रेरणा प्राप्त होगी एवं उनका ज्ञानवर्द्धन भी होगा । इस विषय का विस्तृत ज्ञान का वर्णन वृहद रूप में श्री स्वामी ही महाराज ने अपने मौलिक एवं अनुपम ग्रन्थ ‘भक्तिप्रकाश’ में बड़ी सरल तथा सुबोध हिंदी भाषा में किया गया है । यह अवतरित ग्रन्थ पूर्ण आध्यात्मिक है । इसका पठन, मनन व चिंतन कर और उसे आचरण में उतारकर अपने जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है ।