व्यास पूर्णिमा-विक्रम सम्वत् 2080

Shree Ram Sharnam Gwalior

श्री राम शरणम्

राम सेवक संघ, ग्वालियर

श्री माधव सत्संग आश्रम, श्रीराम शरणम् ग्वालियर में संचालित वार्षिक कार्यक्रम का विवरण

  • अमृतवाणी सत्संग – नित्य प्रातः 7.00 से 8.00, रविवार 7.30 से 9.00 बजे तक ।
  • साधना सत्संग – तीन – रात्रि ( नवम्बर मास ) – सत्संग के विभिन्न कार्यक्रम |
  • मासिक अखण्ड जाप – प्रत्येक माह की पूर्णिमा एवं प्रत्येक माह की 13 तारीख को ।
  • होली सत्संग (फाल्गुन – पूर्णिमा) – सत्संग के विभिन्न कार्यक्रम |
  • परम पूज्य श्री विश्वामित्र जी महाराज जन्मोत्सव (15 मार्च) – विशेष सत्संग, पुष्पांजलि तथा जाप ।
  • श्रीराम जन्मोत्सव (श्रीरामनवमी)– प्रातः श्री बाल्मीकीय रामायणसार के मास पारायण की पूर्ति तथा भजन संकीर्तन |
  • पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानंद जी महाराज जन्मोत्सव (चैत्र पूर्णिमा) – विशेष सत्संग, पुष्पांजलि तथा जाप ।
  • परम पूज्य श्री विश्वामित्र जी महाराज निर्वाण दिवस (2 जुलाई)– विशेष सत्संग, पुष्पांजलि तथा जाप ।
  • व्यास पूजा (आषाढ़ पूर्णिमा) – विशेष सत्संग, – पुष्पांजलि व जाप ।
  • परम पूज्य श्री प्रेम जी महाराज निर्वाण दिवस (29 जुलाई ) – विशेष सत्संग, पुष्पांजलि व जाप ।
  • श्रीकृष्ण जन्मोत्सव ( जन्माष्टमी ) – श्री गीता ज्ञान-यज्ञ (सप्ताह पारायण) की पूर्ति तथा भजन संकीर्तन |
  • परम पूज्य श्री प्रेम जी महाराज जन्मोत्सव (2 अक्टूबर) – विशेष सत्संग, पुष्पांजलि तथा जाप ।
  • श्रीराम विजयोत्सव (विजयादशमी ) – प्रातः श्री बाल्मीकीय रामायणसार के मास पारायण की पूर्ति तथा भजन संकीर्तन |
  • पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानंद जी महाराज निर्वाण दिवस (13 नवम्बर) – विशेष सत्संग, पुष्पांजलि तथा जाप ।
  • जप यज्ञ – दो रात्रि (36 घंटे ) सत्संग के विभिन्न – कार्यक्रम |
  • नित्य ध्यान संध्या 6.30 से 7.00 (ग्रीष्म में ) 6.00 से 6.30 (शीत में ) ।
  • प्रार्थना – कोष के अन्तर्गत प्रति मंगलवार प्रार्थना की जाती है।
  • नाम-दीक्षा कार्यक्रम– प्रत्येक माह की पूर्णिमा को।

सत्संग के लिये क्यों जायें ? सत्संगति जीवन में क्यों अनिवार्य है ?

(पूज्य डॉ. श्री विश्वामित्र जी महाराज की वाणी)

किसी वस्तु, व्यक्ति, स्थान, विचार अथवा परिस्थिति के संग को, जो हमें पाप में प्रवृत करे व परमेश्वर से विमुख करे, कुसंग कहा जाता है। युवक-युवतियाँ, बच्चे प्रायः इसके चंगुल में फँस जाते हैं।

कुसंग से बचे रहने का साधन है- सत्संग । इसमें फँसे हुये का निकलने का ढंग है- सत्संग । अध्यात्म में प्रवृत करने का अमोघ एवं अनमोल उपाय है- सत्संग।

सत्संगति मोक्ष प्राप्ति अर्थात् जन्म-मरण के चक्र से छूटने तथा प्रभु-प्राप्ति के लिए हृदय में तड़प पैदा करती है। सत्संगति शान्ति की दाता है । सुख–शान्ति का दाता है।

एक व्यक्ति बाजार गया। फल-सब्जी की दुकान पर एक रसीला पका हुआ, अद्भुत से बड़े आकार का फल देखा। खरीद लिया। दुकानदार से कहा, ‘भारी है, और सामान खरीदकर लौटने पर उसे उठा लूँगा। कोई अन्य व्यक्ति आये, उसी फल के प्रति आकर्षित हुये, मूल्य पूछा, दुकानदार ने कहा, “बिक चुका है, अतः बिकाऊ नहीं है।”इस व्यक्ति ने पूछा, “क्या कोई ढंग है जिससे आधा या पूरा फल खरीदा जा सके ?” दुकानदार ने सुझाव दिया, “यदि जिसने खरीद रखा है, वह मान जाये तो ऐसा सम्भव हो सकता है। ”

ठीक इसी प्रकार परमेश्वर भी भक्तों-सन्तों के हाथों बिक चुका है। यदि कोई अन्य खरीदना चाहे तो उसे भक्त – सन्त की शरण में जाकर निवेदन करना होगा। उन्हीं से मिलेगा प्रभु प्रेम, ज्ञान एवं प्रभु प्राप्ति के लिए आवश्यक साधना का ढंग । यही है सत्संगति, जिसका फल है – राम-कृपा, राम-मिलन

जाइए शुभ सत्संग में, करिए निर्मल अंग । श्रद्धा भक्ति सुकर्म की, मन में लाय उमंग ॥

सत्संगति है धर्म की, ज्ञान भक्ति की खान । सेवा पर उपकार की, मेल प्रेम की प्राण ॥ (-भक्ति-प्रकाश)

 

साधना-सत्संग, ग्वालियर

पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज ने दीक्षित साधकों की उन्नति हेतु उन्हें सिधाने के लिए “साधना – सत्संग” शिविर लगाने आरम्भ किये, जो साधकों के लिए उनकी अनुपम देन है। प्रत्येक साधक को दीक्षा लेने के पश्चात् कम कम एक बार तो साधना-सत्संग में अवश्य सम्मिलित होना चाहिये। ग्वालियर में यह साधना-सत्संग पाठशाला का आयोजन विगत 60 वर्षों से किया जा रहा है।

ये सत्संग पाँच-रात्रि या तीन-रात्रि के लगाये जाते हैं, जहाँ साधक कुछ समय के लिए सांसारिक बंधनों से हटकर व परिवार से दूर जाकर क्रियात्मक (Practical) साधना करते हैं। इससे उनकी आध्यात्मिक मार्ग की बाधायें दूर होती हैं, आत्मिक जागृति होती है तथा मानसिक शान्ति लाभ होती है। यह एक पाठशाला के समान है, जहाँ हम अनुशासन व नियमों का पालन करना सीखते हैं, साथ ही भजन करने का स्वभाव बनाते हैं। ‘युक्ताहार विहारस्य, युक्त चेष्टस्य कर्मषु’ के अनुसार जीवन बनाते हैं।

ये पाँच-रात्रि या तीन-रात्रि साधना-सत्संग बड़े ही महत्वपूर्ण होते हैं। लगातार पाँच/ तीन दिन गुरु के निकट सम्पर्क में रहने से शेष 360 दिन के लिए सार्थक जीवन जीने की कला सीखने को मिलती है, जो हमारे व्यवहारिक जीवन के निर्माण में सहायक होती है। यहाँ से ही हम स्वच्छता, नियमितता, शिष्टाचार, सेवा, संयम, विनम्रता आदि मानवीय गुण सीखते हैं अर्थात् हम सच्चे मानव बनने की ओर अग्रसर होते हैं। हमारी दिनचर्या साधना-सत्संग केअनुसार होनी चाहिए।

“पर गुरु संग रहे दिन राती, शुभ संगति यह तजी न जाती ।

महापुरुष का संग सुहाना, पुण्य कर्म परिणाम बखाना ।।

संत-संग मुद मंगल देना, कहा अज्ञान तिमिर हर लेना ।

कमल-कुंज अलि तजै न जैसे, ऋषि-पद पद्म भी मम मन ऐसे ।”

( श्री वाल्मीकीय रामायणसार)

साधना – सत्संग, ग्वालियर की विशेषताएँ

  • साधना – सत्संग, ग्वालियर सन् 1950 से पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज के समय से प्रतिवर्ष निरन्तर आयोजित हो रहा है ।
  • पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज के पश्चात् परम पूज्य श्री प्रेम जी महाराज के सानिध्य में तथा उनके पश्चात् पूज्यश्री विश्वामित्र जी महाराज के सानिध्य में प्रत्येक वर्ष (कभी वर्ष में दो बार भी लगाया गया है ।
  • ग्वालियर के साधना – सत्संग, दैनिक सत्संग, रविवारीय सत्संग, जप-यज्ञ, गीता – ज्ञान-यज्ञ तथा ज्ञान गोष्ठी इत्यादि कार्यक्रम तथा अन्य सभी आध्यात्मिक गतिविधियाँ सन् 1950 से पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज द्वारा संस्थापित ‘रामसेवक संघ’ के संचालन में हुई, जो अनवरत आज तक संचालित हो रही हैं।
  • पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज, पूज्यश्री प्रेम जी महाराज तथा पूज्यश्री विश्वामित्र जी महाराज साधना – सत्संग, ग्वालियर पूर्ण करके दिल्ली पहुँचकर ग्वालियर साधना – सत्संग के अनुशासन, भजन-कीर्तन तथा भोजन की प्रशंसा किया करते थे ।
  • पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज के साधना-सत्संग का मुख्य उद्देश्य है- साधकों की आध्यात्मिक उन्नति हो, उनकी आत्म जागृति हो, जप- ध्यान करने का स्वभाव बने, एवं उनका नियम पालन करने का अभ्यास हो । अतः पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज के इन्हीं मुख्य उद्देश्यों की पूर्ति हेतु साधकों को साधना- सत्संग, ग्वालियर में शामिल होना चाहिए ।